19-10-2021
महात्मा गांधी ने कहा था, “पृथ्वी के संसाधन मानव की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, परंतु उसके लोभ के लिए नहीं।” यही लोभ प्रकृति को क्षति पहुंचाता है और जब प्रकृति अपने सब्र का बांध तोड़ती है, तब विनाश आता है। ठीक वैसा ही जैसा पिछले कुछ वर्षों से केरल अनुभव कर रहा है। केरल के कई हिस्सों में भारी बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन में कम से कम 26 लोगों की जान चली गई और कई अन्य लापता हैं। केरल की विजयन सरकार इस विनाश की ‘भागीÓ है और जनता ‘भोगीÓ। आइये, हम आपको समझाते हैं आखिर कैसे?
केरल में शनिवार से हो रही भारी बारिश के कारण कई हिस्सों में भूस्खलन देखने को मिला। इस भूस्खलन में दो पहाड़ी जिले कोट्टायम और इडुक्की सबसे ज्यादा प्रभावित हुए जहां सात से अधिक लोगों की जान चली गई जबकि कई लापता हैं।
इस पर भारत के शीर्ष पारिस्थितिकी वैज्ञानिक माधव गाडगिल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि, “ये आपदाएं उच्च आर्थिक गतिविधियों जैसे चट्टान उत्खनन, नई इमारतों और सड़कों के निर्माण तथा आर्थिक क्षेत्रों में प्राकृतिक वन के विनाश के कारण हुई है। हमने 2011 की रिपोर्ट में इसका विशेष रूप से उल्लेख किया था। 2018 में भूस्खलन पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में हुआ था, जिन्हें हमने पहले ही चिन्हित कर दिया था और इस वर्ष के भूस्खलन भी अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र में होने की संभावना है।”
अगस्त 2016 में आई बाढ़ के दौरान 10 जिलों से लगभग 341 बड़े भूस्खलन की सूचना मिली थी, जबकि गाडगिल द्वारा चिन्हित अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र इडुक्की में 143 भूस्खलन हुए थे। 2018 की बाढ़ ने करीब 500 लोगों की जान ले ली थी।
विजयन सरकार ने अपनी अक्षमता, अदूरदर्शिता और लोभ के वशीभूत हो कर इस विनाश को आमंत्रित किया है जिसका कोप जनता भोग रही है।
अब यहां सवाल ये उठता है कि क्या केरल सरकार का उत्तरदायित्व सिर्फ मदद लेना है? बिलकुल नहीं! एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे उत्कृष्ट उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्यों की पूर्ति के साथ-साथ कल्याणकारी राज्य की स्थापना है, जबकि केरल विघटनकारी और प्रलयंकारी राज्य बनने की ओर अग्रसर दिखाई दे रहा है। चाहे कोविड हो, या पर्यावरण संरक्षण, या फिर आतंक मर्दन, विजयन सरकार हर क्षेत्र में नाकाम रही है। केरल को देवभूमि कहा जाता है, लेकिन विजयन सरकार की नीतियां इसे कुरूप बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं।
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