Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

Akhilesh Yadav With Owaisi: यूपी में ओवैसी को गले लगाएंगे अखिलेश यादव? कितना नफा, कितना नुकसान

उत्‍तर प्रदेश में चुनावी शतरंज की बिसात बिछ चुकी है। सभी खिलाड़ी अपनी चाल खेलने में जुट गए हैं। 19 फीसदी मुस्लिम वोटों पर अभी तक अखिलेश यादव एकाधिकार का दावा करते रहे हैं पर अब उनको ओवैसी के रूप में एक बाहरी खिलाड़ी टक्‍कर दे रहा है।

लखनऊ
उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Election 2022) में जीत हासिल करने के लिए सभी पार्टियों की नजर विभिन्‍न धर्मों और जातियों के वोट बैंक पर है। हैदराबाद और बिहार समेत कुछ राज्‍यों में अपनी धमक दिखा चुके ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी भी इस बार यूपी की धरती पर ताल ठोंक रहे हैं। धड़ाधड़ चुनावी सभाएं और रैलियां कर रहे ओवैसी का साफ कहना है कि वह बीजेपी और कांग्रेस को छोड़कर किसी भी पार्टी से गठबंधन करने के लिए तैयार हैं। हालांकि, उन्‍होंने सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के साथ पहले ही भागीदारी संकल्प मोर्चा बना रखा है।

गाजियाबाद के मसूरी में रविवार को हुई एक सभा में ओवैसी ने इशारों ही इशारों में अखिलेश यादव की तरफ दोस्‍ती का पासा फेंका है। ओवैसी ने कहा- ‘यूपी में मुस्लिम-यादव कॉम्बिनेशन से बीजेपी को हराया नहीं जा सकता। बीजेपी को हराने के लिए A से Z कॉम्बिनेशन तैयार करना होगा। अगर वे (अखिलेश यादव) सोचेंगे कि 19 प्रत‍िशत मुसलमान उनको वोट देता रहेगा और वे इन्हीं वोटों पर राजनीति करेंगे तो ऐसा नहीं हो सकता।’ गौरतलब है कि मुलायम सिंह यादव के जमाने से ही सपा MY(मुस्लिम+यादव) समीकरण के सहारे वोट हासिल करती आई है। इन दोनों वर्गों को सपा का मजबूत वोटर तबका माना जाता है।

ओवैसी का दावा- बड़ा मुस्लिम तबका उनके साथ
अब ओवैसी मुस्लिम वोटरों में सेंध लगाने का दावा कर रहे हैं। अपनी सभाओं में AIMIM चीफ लगातार यह कह रहे हैं कि यूपी के मुस्लिमों का एक बड़ा तबका उनके साथ है। अब तक मुसलमानों को कोई ढंग का ऐसा नेता नहीं मिला जो उनकी समस्‍याओं को प्रभावी तरीके से उठाए और उनका समाधान करे। कानपुर की एक सभा में तो ओवैसी ने कहा था कि मुसलमानों की हालत शादियों में बैंड-बाजा वालों की तरह हो गई है जिन्‍हें काम खत्‍म होने के बाद समारोह के बाहर ही रोक लिया जाता है। यहां यह बात ध्‍यान देने वाली है कि ओवैसी यूपी के हर कोने में रैलियां कर रहे हैं और अच्‍छी खासी भीड़ भी जुटाने में सफल हो रहे हैं।

ओवैसी बोले- मुसलमान होने के कारण लोगों को जेल भेज रही यूपी सरकार, BJP ने दिया जवाब

‘अखिलेश और ओवैसी जैसे नदी के दो किनारे’
अब यहां सवाल उठता है कि क्‍या मुस्लिम समुदाय में ओवैसी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अखिलेश यादव एआईएमआईएम के साथ गठबंधन कर सकते हैं? इस बारे में वरिष्‍ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं- ‘ओवैसी और अखिलेश यादव का मिलना नदी के दो किनारों के मिलने जैसा है। अखिलेश जिस आधार पर यूपी में अपनी राजनीति कर रहे हैं, वही आधार ओवैसी का भी है यानी मुस्लिम वर्ग। जब अखिलेश अन्‍य पिछड़े वर्गों को भी साधने में सफल रहते हैं, तभी उन्‍हें जीत हासिल होती है। ओवैसी के साथ गठबंधन करने का मतलब है कि अपनी जमीन का हिस्‍सा उनको देना, जो अखिलेश यादव कभी नहीं चाहेंगे।’

मुसलमानों की हालत शादियों में बैंड-बाजा वालों की तरह हो गई है जिन्‍हें काम खत्‍म होने के बाद समारोह के बाहर ही रोक लिया जाता है

ओवैसी

‘गठबंधन हमेशा गिव एंड टेक फॉर्म्‍यूले पर’
औवैसी का यह कहना कि अखिलेश सिर्फ मुस्लिम और यादवों के सहारे राजनीति नहीं कर पाएंगे, इसके पीछे क्‍या वजह है? इस पर सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं- ‘हो सकता है कि ओवैसी 2019 लोकसभा चुनाव का उदाहरण सामने रख रहे हों। उस समय सपा ने मुस्लिम और यादव के अलावा दलितों का कॉम्बिनेशन बनाया था पर वह बीजेपी को नहीं हरा पाए थे। यहां तक कि बीजेपी का वोट शेयर 40 प्रतिशत तक पहुंच गया था। ओवैसी का यूपी में कोई संगठन नहीं है और न ही उन्‍होंने यहां कोई काम किया है। गठबंधन हमेशा गिव एंड टेक फॉर्म्‍यूले पर किया जाता है यानी दोनों पार्टियों को एक-दूसरे से कुछ फायदा होता हो पर ओवैसी से गठबंधन कर अखिलेश को कोई फायदा नहीं होने वाला है।’

‘अखिलेश अपने साथ नहीं जोड़ेंगे कोई बाहरी खिलाड़ी’
एआईएमआईएम से गठबंधन करने पर सपा को क्‍या फायदा हो सकता है? इस पर वरिष्‍ठ पत्रकार अतुल चौरसिया कहते हैं- ‘आखिर अखिलेश यादव ओवैसी की पार्टी से हाथ क्‍यों मिलाएंगे? इसमें उनको कोई फायदा नहीं है। अखिलेश को जिस वोट वर्ग में अपना एकाधिकार लगता रहा है, उसमें वह एक पार्टनर क्‍यों जोड़ेंगे? एक बाहरी खिलाड़ी को अपने साथ क्‍यों खिलाएंगे? जब तक कि ओवैसी यूपी में अपने आपको साबित ना कर दें, तब तक सपा ही नहीं, अन्‍य पार्टियां भी एआईएमआईएम के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। अखिलेश को विश्‍वास है कि वह अकेले दम पर मुस्लिमों का पूरा वोट हासिल कर सकते हैं तो ऐसी परिस्थिति में मुझे नहीं लगता कि वह ओवैसी को भाव देंगे। इसके बावजूद यह राजनीति है और राजनीति में संभावनाएं कभी खत्‍म नहीं होती हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में आखिरी दो महीनों के दौरान सपा और कांग्रेस ने कैसे गठबंधन किया था, यह हम सबने देखा है।’

‘बड़े दलों के लिए अछूत AIMIM, तन्‍हा रह जाएंगे ओवैसी’
क्‍या आगामी चुनाव में ओवैसी किसी भी बड़ी पार्टी के साथ गठबंधन कर पाने में सफल रहेंगे ? इस सवाल पर वरिष्‍ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस का कहना है- ‘बिहार में बसपा ने एआईएमआईएम के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था पर यूपी में उसने ओवैसी से किनारा कर लिया है। इसी तरह, तेलंगाना में औवेसी की लड़ाई कांग्रेस से होती है। कांग्रेस और ओवैसी का गठजोड़ होगा नहीं। इसके अलावा बीजेपी के साथ ओवैसी जाएंगे नहीं। ऐसे में एआईएमआईएम यूपी में सभी दलों के लिए अछूत है। ज्‍यादा संभावना इसी बात की है कि ओवैसी की पार्टी के साथ कोई बड़ा दल गठबंधन नहीं करेगा और वह तन्‍हा रह जाएंगे।’

‘चंद्रशेखर को माया ने नकार दिया तो अखिलेश क्‍यों देंगे ओवैसी को हिस्‍सा’
वहीं, वरिष्‍ठ पत्रकार अतुल चौरसिया ने अपनी बात स्‍पष्‍ट करने के लिए बसपा प्रमुख मायावती और आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद का उदाहरण दिया। वह कहते हैं- ‘चंद्रशेखर को लोगों ने इस तरह पेश किया कि वह दलित समाज के नए चेहरे बन गए हैं। यहां तक कहा जाने लगा कि मायावती को उनके साथ मिलकर काम करना चाहिए पर बसपा सुप्रीमो ने चंद्रशेखर को सिरे से नकार दिया। पिछले 30-40 सालों के दौरान मायावती ने दलितों के बीच जिस तरह अपना वोट बैंक तैयार किया है, उसे वे चंद्रशेखर के साथ क्‍यों बांटने के लिए तैयार होंगी? चंद्रशेखर को अपनी जमीन खुद बनानी होगी। इसी तरह ओवैसी का मामला भी है। सपा ने भी इतने सालों में मुस्लिमों के बीच अपनी जो पैठ बनाई है, उसमें वह किसी से हिस्‍सा नहीं बांटेंगी।’