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Jitin Prasada news: सिर्फ जितिन प्रसाद को ही कैबिनेट रैंक क्यों? क्या ब्राह्मण तय करेंगे यूपी का अगला सीएम

हाइलाइट्सकांग्रेस से बीजेपी में आए जितिन प्रसाद बने योगी सरकार में कैबिनेट मंत्रीजितिन के बीजेपी जॉइन करने के साथ ही मंत्री बनाने की अटकलें जोरों पर थीं बड़ा सवाल कि BJP को ब्राह्मण चेहरा बने जितिन प्रसाद से कितना फायदा होगाविपक्षी दलों ने बीजेपी को ‘ब्राह्मण विरोधी’ बताकर लामबंदी शुरू कर दी हैलखनऊ
योगी सरकार का बहुप्रतीक्षित कैबिनेट विस्तार (Yogi Cabinet expansion) कई महीनों की अटकलों के बाद आखिरकार हो गया। जैसा कि हर बार कयास लगते आ रहे थे, वैसा ही हुआ और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए जितिन प्रसाद (Jitin Prasad news) को कैबिनेट मंत्री का पद मिल गया। यह कयास इसलिए भी लगाए जा रहे थे क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को एक तेज-तर्रार ब्राह्मण (Brahmin Politics) चेहरे को आगे रखने की जरूरत थी। इसी रणनीति के तहत इस साल जून में जितिन को कांग्रेस से बीजेपी में लाया गया था।

जितिन के बीजेपी जॉइन करते ही उन्हें सरकार में मंत्री बनाए जाने की अटकलें जोरों पर थीं। बीते महीने ही जितिन प्रसाद परिवार समेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर आए थे। तब भी यह कयास लगाए गए कि उन्हें सरकार में एमएलसी और फिर मंत्री बनाया जा सकता है। आखिर ये कयास सही साबित हुए और जितिन प्रसाद को मंत्री पद मिल गया है। बड़ा सवाल यह है कि क्या जितिन बीजेपी की उस जरूरत को पूरा कर पाएंगे जिसके तहत उन्हें बड़ा पद दिया गया है? आखिर क्या वजह है कि ब्राह्मणों को खुश रखने की कोशिश करती दिख रही है? आखिर क्यों रविवार को शपथ लेने वाले मंत्रियों में से सिर्फ जितिन प्रसाद को ही कैबिनेट रैंक दी गई?

बीजेपी पर लगे ब्राह्मणों पर ‘अत्याचार’ करने के आरोप
दरअसल विपक्षी पार्टियों ने योगी सरकार में ब्राह्मणों पर ‘अत्याचार’ के आरोप लगाते हुए इस तबके के वोटरों को लुभाना शुरू कर दिया है। बीएसपी और समाजवादी पार्टियों ने अलग-अलग जिले में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन कर बीजेपी की टेंशन बढ़ा रखी है। ऐसे समय जितिन प्रसाद को कैबिनेट मंत्री का पद देना बीजेपी के जवाब के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि कैबिनेट विस्तार से पहले 53 मंत्रियों के मंत्रीमंडल में 9 मंत्री (17 फीसदी) ब्राह्मण समुदाय से ही आते हैं। इनमें उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा और कानून मंत्री बृजेश पाठक का नाम प्रमुख है।

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चुनाव से पहले ‘ब्राह्मण विरोधी’ छवि बदलने की कोशिश में BJP
विपक्षी दलों ने बीते कुछ महीनों में जिस तरह बीजेपी को ‘ब्राह्मण विरोधी’ बताकर लामबंदी शुरू की, उसको देखते हुए बीजेपी ने पहले खीरी से सांसद अजय मिश्र टेनी को केंद्र में गृह राज्य मंत्री जैसा भारी-भरकम पद दिया और अब जितिन प्रसाद को योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया है। जितिन प्रसाद कांग्रेस में रहकर ब्राह्मणों के कल्याण के लिए बेहद सक्रिय थे। उन्होंने ब्राह्मण चेतना परिषद नाम का संगठन बनाकर ब्राह्मण युवाओं को अपने साथ जोड़ा। उन्होंने तो बाकायदा यूपी में ब्राह्मण कल्याण बोर्ड के गठन का मुद्दा भी उठाया था।

क्यों पड़ी ब्राह्मणों को लुभाने की जरूरत?
2017 के चुनावों तक ब्राह्मण वोटर एक वोटबैंक से ज्यादा कुछ नहीं थे। यूपी में ब्राह्मण वोटरों की संख्या करीब 10 फीसदी है। राज्य में आखिरी ब्राह्मण मुख्यमंत्री 30 साल पहले नारायण दत्त तिवारी बने थे। 2017 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से ही विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि राजपूत समुदाय से आने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राज में ब्राह्मणों पर अत्याचार हो रहे हैं। विपक्ष पूरी कोशिश में है कि चुनाव को किसी तरह राजपूत बनाम ब्राह्मण किया जा सके और ब्राह्मण वोटों का अपने पाले में जोड़ने के लिए मायावती से लेकर समाजवादी पार्टी-कांग्रेस ने जोर-आजमाइश शुरू कर दी है।

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पिछड़ों और दलितों की पार्टियों में भी जागा ब्राह्मण प्रेम
बीएसपी सुप्रीमो मायावती की पहचान दलितों की नेता के तौर पर रही है, तो वहीं अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को यादव-मुस्लिमों की पार्टी माना जाता है। मगर इन दोनों बड़े नेताओं ने बीते महीने ब्राह्मणों पर फोकस शिफ्ट कर दिया है। बीएसपी ने अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन शुरू कर अपने सियासी समीकरण दुरुस्त करने की कोशिश की है। मायावती ने ब्राह्मणों को साधने की जिम्मेदारी पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र और पूर्व मंत्री नकुल दुबे को दे रखी है। बीएसपी की सक्रियता को देखते हुए समाजवादी पार्टी ने भी अपनी रणनीति बदली और ब्राह्मण सम्मेलन करने का फैसला किया। समाजवादी पार्टी ने ब्राह्मणों के उत्पीड़न को सियासी हथियार बनाते हुए एक पांच सदस्यीय कमिटी तक का गठन कर दिया है।

क्या सिर्फ जितिन का आना ब्राह्मणों की नाराजगी कम करने के लिए काफी?
बीजेपी ने अब जब जितिन प्रसाद को कैबिनेट मंत्री बनाकर बड़ा दांव खेल दिया है, तो सवाल बनता है कि क्या जितिन को योगी सरकार में बड़ा पद देना ही ब्राह्मणों को खुश करने के लिए काफी होगा? यह सवाल इसलिए बनता है क्योंकि जितिन प्रसाद की चुनावी यात्रा देखें तो वह अपनी परंपरागत सीटों से लगातार 3 चुनाव हार चुके हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें धौरहरा सीट से हार मिली, तो 2017 के विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाने पर उन्हें हार ही मिली थी। जितिन के विरोधी भी उन पर आरोप लगाते रहे हैं कि सिर्फ ब्राह्मण जाति से होने से उनके नाम पर कोई वोट नहीं मिलने वाले।

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जितिन को ‘ब्राह्मण चेहरा’ बनाने का दांव उल्टा तो नहीं पड़ेगा?
बीजेपी ने जिस ब्राह्मण तबके को खुश करने के लिए अजय मिश्र टेनी को केंद्रीय मंत्री और जितिन प्रसाद को राज्य में कैबिनेट मंत्री बनाया, कहीं उसकी नाराजगी ही न मोल लेनी पड़ जाए! दरअसल पार्टी के वरिष्ठ नेता, पूर्व बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और चार बार के विधायक रहे लक्ष्मीकांत बाजपेई की उपेक्षा करने के आरोप बीजेपी पर लगते रहे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि साफ छवि के लक्ष्मीकांत बाजपेई को सरकार के साढ़े चार साल के दौरान MLC तक बनाना सही नहीं लगा और आज दूसरी पार्टी से आए जितिन प्रसाद उनसे बड़े ब्राह्मण नेता हो गए। जितिन के मंत्री बनने के बाद से अचानक लक्ष्मीकांत बाजपेई का नाम भी चर्चा में आ गया। अगर यह नैरेटिव सही बैठ गया कि बीजेपी ने इतने लंबे समय तक ब्राह्मणों को नदरअंदाज किया और चुनाव से 4 महीने पहले ब्राह्मणों की याद आई है, तो फायदे की जगह पार्टी को नुकसान भी हो सकता है।