Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

पुण्यतिथि पर विशेष : पशु-पक्षियों तक से प्रेम करने वाली महादेवी वर्मा जितनी महान कवयित्री थीं, उतनी ही महान इंसान

सार
स्मृतियों के पृष्ठ पलटते हुए महादेवी जी के पुत्रवत सहायक राम जी पांडेय की बेटी आरती मालवीय कहती हैं, सतना के कंचनपुर से जब मेरे पापा आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद लाए थे तो मेरे लिये इलाहाबाद  दिल्ली-मुंबई से कम न था।

ख़बर सुनें

ख़बर सुनें

‘रहने दो हे देव अरे यह मेरा मिटने का अधिकार’ कहने वाली महादेवी जितनी महान कवयित्री थीं, उतनी ही महान इंसान। पशु पक्षियों तक से प्रेम करने वाली महादेवी निजी जीवन में एक साथ जितनी आधुनिक थीं, उतनी ही पुरातन। वह घर की बड़ी, बूढ़ियों की तरह अनुचित बातों पर डांट लगाती थीं तो बड़े चाव से इलस्ट्रेटेड वीकली के पन्ने पलटना और चित्रहार देखना भी उन्हें उतना ही अच्छा लगता था। एक बार एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि पहुंचने के बावजूद महादेवी ने अंग्रेजी और अंग्रेजियत को जी भर कर फटकार लगाई थी।

स्मृतियों के पृष्ठ पलटते हुए महादेवी जी के पुत्रवत सहायक राम जी पांडेय की बेटी आरती मालवीय कहती हैं, सतना के कंचनपुर से जब मेरे पापा आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद लाए थे तो मेरे लिये इलाहाबाद  दिल्ली-मुंबई से कम न था। महादेवी आवास पर एक साथ पंत, निराला, बच्चन, अज्ञेय और फादर कामिल बुल्के सरीखे मनीषियों को देखना रोमांचित करता था। महादेवी जी के साथ रहना अपने आप में अभिभूत कर देने वाली घटना थी।

वह स्वाभाविक रूप से हम बच्चों की दादी हो गई थीं। खाने और खिलाने की शौकीन महादेवी अचार, पापड़, पराठे भी बना लेती थीं तो जरूरत पड़ने पर सिलाई मशीन लेकर भी बैठती थीं और बड़े मनोयोग से अपने कपड़े खुद ही सिल लेती थीं। वह सांसारिक रूप से जीवन से लगाव रखने वाली महिला थीं। कुत्ते, बिल्ली से घिरी रहकर भी वह ‘तोड़ दो वह क्षितिज मैं भी देख लूं उस ओर क्या है’ जैसी कविताएं लिख लेती थीं।

चाट, चटपटे, डोसे, हलुवा, पूड़ी, नमकीन की शौकीन महादेवी जी को यह पता होता था कि सिविल लाइंस में कहां अच्छी कुल्फी मिलेगी और पैलेस के पास कौन सा ठेले वाला सबसे अच्छी चाट लगाता है। शादी के प्रसंग पर वह कहती थीं कि नीलामी पर चढ़े लड़के से शादी हरगिज मत करना। खूब पढ़ो, आत्म निर्भर बनो।

उन्होंने ही मेरे विवाह का आमंत्रण पत्र लिखा था। दो आत्मीय साहित्यिक परिवार एक हो रहे थे। स्वागतोत्सुक के नीचे अमृत राय जी ने भी हस्ताक्षर किए थे। महादेवी आवास पर साहित्यिक मेला सा लग गया था। रघुवंश, रामस्वरूप चतुर्वेदी, डॉ. जगदीश गुप्त, अमृत राय, डॉ. रामकुमार वर्मा, नर्मदेश्वर उपाध्याय, नीलाभ, वीरेन डंगवाल, कैलाश गौतम यानी कि इलाहाबाद की हर पीढ़ी के रचनाकार मौजूद थे ।
अशोक नगर आवास से विदाई के दिन वह जैसा कातर थीं, वैसा मैंने दोबारा कभी नहीं देखा। उनके धैर्य का बांध टूट गया था। वह आम महिला की तरह बिलख-बिलख कर रोये जा रहीं थीं। दादी मेरे विदा होने के बाद दुखी जरूर थीं पर आश्वस्त भी थीं कि वह अपनी बिटिया को कवि उमाकांत मालवीय के घर भेज रही हैं। आज भी उनकी यही छवियां मेरे लिए संबल बनी हुई हैं।

विस्तार

‘रहने दो हे देव अरे यह मेरा मिटने का अधिकार’ कहने वाली महादेवी जितनी महान कवयित्री थीं, उतनी ही महान इंसान। पशु पक्षियों तक से प्रेम करने वाली महादेवी निजी जीवन में एक साथ जितनी आधुनिक थीं, उतनी ही पुरातन। वह घर की बड़ी, बूढ़ियों की तरह अनुचित बातों पर डांट लगाती थीं तो बड़े चाव से इलस्ट्रेटेड वीकली के पन्ने पलटना और चित्रहार देखना भी उन्हें उतना ही अच्छा लगता था। एक बार एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि पहुंचने के बावजूद महादेवी ने अंग्रेजी और अंग्रेजियत को जी भर कर फटकार लगाई थी।


स्मृतियों के पृष्ठ पलटते हुए महादेवी जी के पुत्रवत सहायक राम जी पांडेय की बेटी आरती मालवीय कहती हैं, सतना के कंचनपुर से जब मेरे पापा आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद लाए थे तो मेरे लिये इलाहाबाद  दिल्ली-मुंबई से कम न था। महादेवी आवास पर एक साथ पंत, निराला, बच्चन, अज्ञेय और फादर कामिल बुल्के सरीखे मनीषियों को देखना रोमांचित करता था। महादेवी जी के साथ रहना अपने आप में अभिभूत कर देने वाली घटना थी।

वह स्वाभाविक रूप से हम बच्चों की दादी हो गई थीं। खाने और खिलाने की शौकीन महादेवी अचार, पापड़, पराठे भी बना लेती थीं तो जरूरत पड़ने पर सिलाई मशीन लेकर भी बैठती थीं और बड़े मनोयोग से अपने कपड़े खुद ही सिल लेती थीं। वह सांसारिक रूप से जीवन से लगाव रखने वाली महिला थीं। कुत्ते, बिल्ली से घिरी रहकर भी वह ‘तोड़ दो वह क्षितिज मैं भी देख लूं उस ओर क्या है’ जैसी कविताएं लिख लेती थीं।

चाट, चटपटे, डोसे, हलुवा, पूड़ी, नमकीन की शौकीन महादेवी जी को यह पता होता था कि सिविल लाइंस में कहां अच्छी कुल्फी मिलेगी और पैलेस के पास कौन सा ठेले वाला सबसे अच्छी चाट लगाता है। शादी के प्रसंग पर वह कहती थीं कि नीलामी पर चढ़े लड़के से शादी हरगिज मत करना। खूब पढ़ो, आत्म निर्भर बनो।

महादेवी वर्मा

उन्होंने ही मेरे विवाह का आमंत्रण पत्र लिखा था। दो आत्मीय साहित्यिक परिवार एक हो रहे थे। स्वागतोत्सुक के नीचे अमृत राय जी ने भी हस्ताक्षर किए थे। महादेवी आवास पर साहित्यिक मेला सा लग गया था। रघुवंश, रामस्वरूप चतुर्वेदी, डॉ. जगदीश गुप्त, अमृत राय, डॉ. रामकुमार वर्मा, नर्मदेश्वर उपाध्याय, नीलाभ, वीरेन डंगवाल, कैलाश गौतम यानी कि इलाहाबाद की हर पीढ़ी के रचनाकार मौजूद थे ।
अशोक नगर आवास से विदाई के दिन वह जैसा कातर थीं, वैसा मैंने दोबारा कभी नहीं देखा। उनके धैर्य का बांध टूट गया था। वह आम महिला की तरह बिलख-बिलख कर रोये जा रहीं थीं। दादी मेरे विदा होने के बाद दुखी जरूर थीं पर आश्वस्त भी थीं कि वह अपनी बिटिया को कवि उमाकांत मालवीय के घर भेज रही हैं। आज भी उनकी यही छवियां मेरे लिए संबल बनी हुई हैं।