आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले 98 साल के विद्या सागर शुक्ल आज भी उन दिनों को याद कर भावुक हो उठते हैं। शुक्ल बताते हैं कि तब से लेकर अब तक के समय में बहुत फर्क आ गया है। आम आदमी से लेकर नेता तक स्वार्थी हो गए हैं। उनका कहना है कि उन दिनों की बात अलग थी। लोगों में देश को आजाद कराने को लेकर जोश था, ईमानदारी थी लेकिन अब देशवासियों में इसकी कमी देखने को मिल रही है।
16 साल की उम्र में शामिल हुए थे आजादी की लड़ाई में
मूल रूपसे उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में छानबे गांव के पाली गांव में रहने वाले विद्या सागर शुक्ल का जन्म 1923 में हुआ था। स्कूली शिक्षा के दौरान ही वह अपने गुरु ब्रह्मदत्त दीक्षित की अगुआई में आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए थे। उन्हें 1939 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पर्चा बांटते और वंदे मातरम का गीत गाते हुए राबर्टसगंज (सोनभद्र) से गिरफ्तार कर लिया गया था और जेल में डाल दिया गया था।
राष्ट्रपति ने किया है सम्मानित
असहयोग आंदोलन में लिया था भाग
विद्यासागर शुक्ला ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाने में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने जीत नारायण पाण्डेय, पुष्कर नाथ पाण्डेय और नरेश चंद श्रीवास्तव के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंकते हुए पहाड़ रेलवे स्टेशन को तहस-नहस करने में अहम भूमिका अदा की। पहाड़ा कांड में नेरशचंद श्रीवास्तव जल जाने की वजह से शहीद हो गए थे। जीत नारायण पाण्डेय और पुष्कर नाथ पाण्डेय को गिरफ्तार कर लिया गया था और विद्यासागर शुक्ल घटना के बाद फरार हो गए थे।
राष्ट्रपति ने अंगवस्त्र भेज कर किया सम्मान
स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्हें जिले से लेकर दिल्ली तक सम्मानित किया जा चुका है। 9 अगस्त को उन्हें दिल्ली बुलाया गया था लेकिन बीमार होने के कारण वे दिल्ली नहीं जा सके। ऐसे में 9 अगस्त 2021 को राष्ट्रपति के भेजे गए अंगवस्त्र को नगर मैजिस्ट्रेट ने उनके घर आकर भेंट किया था।
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