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टाइगर डे पर विशेषः बाघों की मांद में झांक रहा इंसान, बस्तियों का रुख कर रहे बाघ

दुधवा टाइगर रिजर्व जनपद के गौरव और राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक है। राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर बाघ संरक्षण के किए जा रहे प्रयासों के चलते टाइगर रिजर्व में बाघों की आबादी में इजाफा तो हुआ है, लेकिन बाघ और मानव के बीच संघर्ष के मामले में भी यह राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा है। हालांकि, वन विभाग इसे रोकने की पुरजोर कोशिश कर रहा है, लेकिन बाघों की बढ़ती संख्या और संकुचित होते जंगल की वजह से बाघों के प्राकृतवास का संकट पैदा हो रहा है।
2018 में हुई टाइगर स्टीमेंशन के दौरान दुधवा टाइगर रिजर्व में 107 बाघ होने का अनुमान लगाया गया था, जबकि 2014 के स्टीमेंशन में यह आंकड़ा 67 के करीब था। इस तरह चार साल में बाघों की संख्या में 40 की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। देश में बाघों की आबादी में 400 बाघों की संख्या बढ़ने का अनुमान लगाया था। राष्ट्रीय स्तर पर दुधवा टाइगर रिजर्व में ही दस फीसदी बाघों की बढ़ोतरी पाई गई, जबकि इस टाइगर रिजर्व की ग्रोथ रेट करीब 40 फीसदी रही। यह ग्रोथ रेट अपने आप में एक रिकार्ड है। हर चार साल में होने वाला टाइगर स्टीमेशन अब 2022 में होना है, जिसके लिए तैयारियां शुरू हो गई हैं।

बाघों की आबादी बढ़ने के साथ ही उनकी सुरक्षा की चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। जंगल के अंदर इंसानी घुसपैठ के कारण बाघों के प्राकृतवास में खलल पड़ रहा है। बाघ गन्ने के खेतों से होते हुए इंसानी बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं। बड़ी संख्या में बाघों ने गन्ने के खेतों में अपना बसेरा बना रखा है। हालत यह है कि इंसान बाघों की मांद में ताकझांक कर रहा तो बाघों को इंसानी बस्ती की ओर रुख करना पड़ रहा है। इस हालत में न केवल मानव जीवन पर खतरा बढ़ रहा है, बल्कि जंगल छोड़कर बाहर निकलने पर बाघों के लिए भी खतरा बढ़ रहा है। स्टीमेशन के दौरान बाघों के जंगल से बाहर रहने के कारण इनकी तस्वीरें कैमरे में ट्रैप नहीं हो पाती जिससे यह गिनती में भी छूट जाते हैं।

मानव-बाघ संघर्ष बाघों की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा

तराई खासकर खीरी और पीलीभीत जिले के जंगलों से निकलकर बाघों के गन्ने के खेतों में बसेरा बनाने के चलते मानव बाघ संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं। पिछले 10 वर्षों में ही बाघों के हमले में 60 से अधिक लोग अपनी जान गवां चुके हैं। करीब छह बाघ भी इन हमलों की प्रतिक्रिया स्वरूप मारे जा चुके हैं। इसके अलावा जंगल से बाहर रहने पर यह बाघ आसानी से शिकारियों के निशाने पर आ जाते हैं। शिकारी इनका शिकार कर लेते हैं और कभी कभी वन विभाग को इनका पता भी नहीं चल पाता।