मणिपुर के छोटे से गांव से निकलकर ओलिंपिक तक का सफर साईकोम मीराबाई चानू के लिए आसान न था। 26 साल की वेटलिफ्टर चानू ने तोक्यो ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीता। उनकी इस उपलब्धि में कोच विजय कुमार का अहम रोल था।
विजय सोमवार को अपने घर मोदीनगर पहुंचे तो उनका कई जगह स्वागत किया गया। देश में खेल की स्थिति, चुनौतियां, दिक्कतें, ओलिंपिक की तैयारी, युवाओं के लिए गुरुमंत्र जैसे तमाम मुद्दों पर हुई बातचीत के प्रमुख अंश…
ओलिंपिक जैसे मंच की तैयारी के लिए कौन सी चुनौतियों से सामना हुआ?
कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है। हमारे वक्त में खिलाड़ी मामूली अंतर से पदक से चूक जाते थे। अपने खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करते समय उन गलतियों पर पूरा फोकस रखता हूं। ओलिंपिक के लिए केवल शारीरिक तैयारी ही नहीं, मानसिक मजबूती पर भी ध्यान देता हूं।
ओलिंपिक की तैयारी के लिए सरकारी स्तर पर किस तरह की सहायता मिली?
मौजूदा सरकार खेल को लेकर बहुत गंभीर है। पीएम मोदी ने खेलो इंडिया अभियान शुरू किया। गांव और कस्बों की प्रतिभाओं को खोजकर उन्हें तराशा गया। अपने 3 दशक के खेल जीवन में कभी ऐसी सुविधाएं देते हुए किसी सरकार को नहीं देखा। प्रदेश स्तर पर तैयारी के लिए 10 हजार, राष्ट्रीय के लिए 25 हजार और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लिए 50 रुपये देती है। सरकार के इसी सहयोग का असर खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर दिख रहा है।
क्रिकेट, कबड्डी की तरह वेटलिफ्टिंग में लीग शुरू होने की क्या संभावनाएं हैं?
किसी भी खेल में लीग का शुरू होना, उससे जुड़े दर्शकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी की तुलना में वेटलिफ्टिंग जटिल खेल है। इसे देखने में लोग इतनी रुचि नहीं दिखाते। अब वेटलिफ्टिंग खिलाड़ी लगातार शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में उम्मीद है कि दर्शक इससे जुड़ेंगे और भविष्य में लीग का आयोजन देखने को मिल सकता है।
राष्ट्रमंडल और विश्व प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन करके भी हम ओलिंपिक में क्यों चूक जाते हैं?
पहले ही बताया कि मानसिक मजबूती अहम रोल निभाती है। खराब प्रदर्शन की दूसरी वजह खेल संस्कृति का अपने देश में अभाव। पड़ोसी देश चीन में वेटलिफ्टिंग में पंजीकृत खिलाड़ी 5 लाख हैं। हमारे देश में 5 हजार भी नहीं हैं। जब प्रशिक्षित खिलाड़ी ही नहीं होंगे तो पदकों की संख्या पर असर तो दिखेगा ही। स्कूल स्तर पर ही इसके लिए प्रयास करने की जरूरत है।
हॉकी और दूसरे खेलों के प्रति घटते रुझान की वजह क्या है?
कोई भी खेल अपने खिलाड़ियों से बड़ा बनता है। क्रिकेट ने सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी पैदा किए तो क्रिकेट हमारे देश में जुनून बन गया। इसी तरह दूसरे खेलों में भी खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करेंगे तो जागरूकता जरूर पैदा होगी। बॉक्सिंग में मैरीकॉम और वेटलिफ्टिंग में मीराबाई चानू के प्रदर्शन ने निश्चित तौर पर लोगों का नजरिया बदला है।
जो बेटियां खेल में करियर बनाना चाहती हैं, उनके मां-बाप के लिए क्या संदेश देंगे?
हर क्षेत्र में बेटियां अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। सही माहौल और ठीक तैयारी से लड़कियां अपने परिवार के साथ ही देश की पहचान बन सकती हैं। मेरी शिष्या मीराबाई चानू ने इसे साबित करके दिखाया है। तोक्यो ओलिंपिक में कई महिला खिलाड़ी मेडल जीत सकती हैं। वक्त बदल चुका है। बेटियों को मां-बाप कंधे का बोझ न समझें। वे सिर का ताज हैं।
मोबाइल में खोये युवाओं को खेल के मैदान तक कैसे लाया जाए?
सच तो यह है कि सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में हमारे युवा गुम होते जा रहे हैं। अज्ञात लोगों के कुछ लाइक्स पाने की चाहत ने युवाओं की मानसिकता को दूषित कर दिया है। वे एकाकीपन के शिकार हो रहे हैं। ऐसे वक्त में खेलों का महत्व और बढ़ गया है। अभिभावकों को चाहिए कि अपने बच्चे को किसी भी एक खेल से जरूर जोड़ें। इससे उनकी सेहत अच्छी होगी। खेल के मैदान में जाएंगे तो टीमवर्क, आपसी सहयोग, विरोधियों का सम्मान करना जैसे संस्कार भी सीखेंगे।
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