पीसीएस परीक्षाओं के परिणाम लगातार संशोधित होने से उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। आयोग को पिछली तीन परीक्षाओं के दौरान दो परीक्षाओं के परिणाम विभिन्न कारणों से तीन बार संशोधित करने पड़े और हर बाद संशोधित परिणाम जारी होने के कारण बड़ी संख्या में अभ्यर्थी छंटकर बाहर हो गए।
पीसीएस-2018 की परीक्षा में क्षैतिज आरक्षण के मसले पर हाईकोर्ट के आदेश पर उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने प्रारंभिक परीक्षा का संशोधित परिणाम जारी किया था और इसमें दूसरे राज्यों की 160 महिला अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा के लिए सफल घोषित किया था। पीसीएस-2018 में ही आयोग को प्रधानाचार्य पद का संशोधित परिणाम जारी करना पड़ा, जिसमें 14 अभ्यर्थियों का चयन निरस्त करते हुए उनकी जगह अन्य 14 अभ्यर्थियों को चयनित किया गया है। इसके अलावा आयोग ने पीसीएस-2020 की प्रारंभिक परीक्षा का भी परिणाम संशोधित किया था।
परिणाम संशोधित होने के कारण 1131 अभ्यर्थी छंटकर बाहर हो गए थे। विज्ञापन और आवेदन में अर्हता के क्रम में अंतर आने से यूपीपीएससी को संशोधित परिणाम जारी करना पड़ा था। इसके तहत सीडीपीओ और श्रम प्रवर्तन अधिकारी पद का रिजल्ट निरस्त करते हुए नया परिणाम जारी किया गया था। प्रतियोगी छात्रों का अरोप है कि प्रदेश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा के परिणाम को लेकर आयोग गंभी नहीं है और नतीजा कि पिछली तीन परीक्षाओं में दो परीक्षा के परिणाम तीन बाद संशोधित किए गए। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी प्रशांत पांडेय ने आयोग के अध्यक्ष से मांग की है कि इन गलतियों के लिए दोषियों को चिह्नित किया जाए और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।
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