गंगा जल से बनी कोविड 19 की वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति देने की मांग में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। कोर्ट ने याचिका पर इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च एवं भारत सरकार की इथिक्स कमेटी सहित अन्य सभी पक्षकारों को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता और गंगा मामले की जनहित याचिका में एमिकस क्यूरी अरुण गुप्ता की याचिका पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमएन भंडारी तथा न्यायमूर्ति राजेन्द्र कुमार की खंडपीठ ने सुनवाई की। गुप्ता का कहना है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डा. विजय नाथ मिश्र के नेतृत्व में डाक्टरों की टीम ने गंगा जल पर रिसर्च कर नोजल स्प्रे वैक्सीन तैयार की है। जो मात्र 30 रुपये में लोगों को कोरोना से राहत दे सकती है। इसकी रिपोर्ट तैयार कर इथिक्स कमेटी को भेजी गई है और क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति मांगी गई है। किन्तु कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है। बीएचयू के डाक्टर का दावा है कि वायरो फेज थिरेपी से कोरोना का खात्मा किया जा सकता है।
अभी तक जितनी भी वैक्सीन हैं वे वायरस को डी ऐक्टीवेट करती है जब कि गंगा जल से प्रस्तावित वैक्सीन कोरोना को खत्म कर देगी। बी एच यू के डाक्टरों की टीम ने आईसीएमआर व आयुष मंत्रालय को क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति के लिए शोध प्रस्ताव भेजा है। इनके द्वारा कोई रूचि नहीं ली जा रही है। याचिका मे मांग की गई है कि आयुष मंत्रालय व आईसीएमआर को डॉ. वीएन मिश्र की टीम को क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति देने का समादेश जारी किया जाए तथा पुणे के वायरोलाजी लैब में गंगा जल से तैयार वैक्सीन का टेस्ट कराया जाए। शोध प्रस्ताव राष्ट्रपति को भी भेजा गया है, जिसमें दावा किया गया है कि गंगा जल का क्लिनिकल ट्रायल कर कोरोना को जड़ से खत्म करने की वैक्सीन तैयार की जा सकती है।
याची का कहना है कि 1896 मे ब्रिटिश वैक्टीरियोलाजिस्ट अनेस्ट हाकिंस ने गंगा जल पर शोध किया था। उनकी रिपोर्ट ब्रिटिश मेडिकल जनरल मे छपी थी।गंगोत्री के जल मे सेल्फ प्यूरीफाइंग क्वालिटी पाई गई थी। अन्य कई देशों की मैग्जीन मे भी शोध पत्र छपे हैं। याची अरूण कुमार गुप्ता ने 28 अप्रैल 2020 को सभी शोधपत्र नेशनल क्लीन गंगा मिशन को भेजा है और महानिदेशक आईसीएमआर को भी देकर क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति देने की मांग की है। याची गंगा प्रदूषण मामले मे कायम जनहित याचिका मे न्यायमित्र है। वह गंगा जल की बेहतरी के लिए लगा हुआ है। ऐसी ही रिपोर्ट भरत झुनझुनवाला ने भी भेजी है। आईसीएमआर ने मनमाने पर सारी रिसर्च को नकार दिया है।
राष्ट्रपति के सचिव ने रिपोर्ट आयुष मंत्रालय को भेजी थी, जिसने साइंटिफिक अध्ययन के अभाव के कारण इस पर विचार ही नहीं किया। साइंटिफिक अध्ययन आयुष मंत्रालय व आईसीएमआर की अनुमति बगैर संभव नहीं है। जबकि बीएचयू के डॉक्टर की टीम ने जो नोजल स्प्रे वैक्सीन तैयार की। लगभग तीन सौ लोगों पर प्रयोग के सकारात्मक परिणाम आए हैं। एक लेख हिन्दी इंटरनेशनल जर्नल आफ माइक्रोबायोलॉजी मे 19 मार्च 2020 को प्रकाशित भी हुआ है। इस पर यह याचिका दाखिल की गई है और गंगा जल पर शोध से तैयार वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल कराने की माग की गई है।
गंगा जल से बनी कोविड 19 की वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति देने की मांग में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। कोर्ट ने याचिका पर इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च एवं भारत सरकार की इथिक्स कमेटी सहित अन्य सभी पक्षकारों को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता और गंगा मामले की जनहित याचिका में एमिकस क्यूरी अरुण गुप्ता की याचिका पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमएन भंडारी तथा न्यायमूर्ति राजेन्द्र कुमार की खंडपीठ ने सुनवाई की।
गुप्ता का कहना है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डा. विजय नाथ मिश्र के नेतृत्व में डाक्टरों की टीम ने गंगा जल पर रिसर्च कर नोजल स्प्रे वैक्सीन तैयार की है। जो मात्र 30 रुपये में लोगों को कोरोना से राहत दे सकती है। इसकी रिपोर्ट तैयार कर इथिक्स कमेटी को भेजी गई है और क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति मांगी गई है। किन्तु कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है। बीएचयू के डाक्टर का दावा है कि वायरो फेज थिरेपी से कोरोना का खात्मा किया जा सकता है।
अभी तक जितनी भी वैक्सीन हैं वे वायरस को डी ऐक्टीवेट करती है जब कि गंगा जल से प्रस्तावित वैक्सीन कोरोना को खत्म कर देगी। बी एच यू के डाक्टरों की टीम ने आईसीएमआर व आयुष मंत्रालय को क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति के लिए शोध प्रस्ताव भेजा है। इनके द्वारा कोई रूचि नहीं ली जा रही है। याचिका मे मांग की गई है कि आयुष मंत्रालय व आईसीएमआर को डॉ. वीएन मिश्र की टीम को क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति देने का समादेश जारी किया जाए तथा पुणे के वायरोलाजी लैब में गंगा जल से तैयार वैक्सीन का टेस्ट कराया जाए। शोध प्रस्ताव राष्ट्रपति को भी भेजा गया है, जिसमें दावा किया गया है कि गंगा जल का क्लिनिकल ट्रायल कर कोरोना को जड़ से खत्म करने की वैक्सीन तैयार की जा सकती है।
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याची का कहना है कि 1896 मे ब्रिटिश वैक्टीरियोलाजिस्ट अनेस्ट हाकिंस ने गंगा जल पर शोध किया था। उनकी रिपोर्ट ब्रिटिश मेडिकल जनरल मे छपी थी।गंगोत्री के जल मे सेल्फ प्यूरीफाइंग क्वालिटी पाई गई थी। अन्य कई देशों की मैग्जीन मे भी शोध पत्र छपे हैं। याची अरूण कुमार गुप्ता ने 28 अप्रैल 2020 को सभी शोधपत्र नेशनल क्लीन गंगा मिशन को भेजा है और महानिदेशक आईसीएमआर को भी देकर क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति देने की मांग की है। याची गंगा प्रदूषण मामले मे कायम जनहित याचिका मे न्यायमित्र है। वह गंगा जल की बेहतरी के लिए लगा हुआ है। ऐसी ही रिपोर्ट भरत झुनझुनवाला ने भी भेजी है। आईसीएमआर ने मनमाने पर सारी रिसर्च को नकार दिया है।
राष्ट्रपति के सचिव ने रिपोर्ट आयुष मंत्रालय को भेजी थी, जिसने साइंटिफिक अध्ययन के अभाव के कारण इस पर विचार ही नहीं किया। साइंटिफिक अध्ययन आयुष मंत्रालय व आईसीएमआर की अनुमति बगैर संभव नहीं है। जबकि बीएचयू के डॉक्टर की टीम ने जो नोजल स्प्रे वैक्सीन तैयार की। लगभग तीन सौ लोगों पर प्रयोग के सकारात्मक परिणाम आए हैं। एक लेख हिन्दी इंटरनेशनल जर्नल आफ माइक्रोबायोलॉजी मे 19 मार्च 2020 को प्रकाशित भी हुआ है। इस पर यह याचिका दाखिल की गई है और गंगा जल पर शोध से तैयार वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल कराने की माग की गई है।
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