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इलाहाबाद हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ने मुकदमों की लिस्टिंग में सोमवार से ऑड-इवेन फार्मूला लागू किया है। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इस पर असहमति व्यक्त करते हुए इसका विरोध करने की बात कही है। 28 जून से अदालतों में लगने वाले सभी मुकदमे ऑड-इवेन नंबर से लिस्ट होंगे। जारी आदेश के अनुसार एकल पीठ के समक्ष प्रतिदिन 100 नए दाखिल केस और अतिरिक्त वाद सूची में 30 मुकदमों से अधिक नहीं लगेंगे।इसी तरह दो जजों की खंडपीठ के समक्ष 60 नए मुकदमें और अतिरिक्त सूची में 20 केस ही लगेंगे। सभी मुकदमें ऑड-इवेन नंबर से लगेंगे। जहां बंच केसेस होंगे, वहां पहले लीडिंग केस के ऑड-इवेन नंबर देखे जाएंगे। किसी मुकदमे की सात दिन के भीतर तिथि लगी है तो उसे उसी जज की पीठ में लगाया जाएगा, जिसने तिथि निर्धारित की है। इस नियम के वाबजूद कोर्ट अपने आदेश से किसी केस की तिथि तय कर सुनवाई कर सकेगी।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरेन्द्र नाथ सिंह का कहना है कि मुकदमों की सुनवाई में ऑड-इवेन फार्मूले का बार विरोध करेगी। वकीलों को लिंक नहीं मिल रहा है। महीनों पहले दाखिल मुकदमे कब सुने जाएंगे, पता नहीं चल रहा है। बहस की बजाय तारीख लग रही है। घूम-फिर कर कोर्ट में वही मुकदमे आ रहे हैं। नया फार्मूला पहले से परेशान वकीलों की कठिनाई ही बढ़ाने वाला है। पूर्व अध्यक्ष अनिल तिवारी का कहना है कि बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों व वरिष्ठ अधिवक्ताओं से परामर्श कर मुख्य न्यायाधीश को उचित निर्णय लेना चाहिए।
बार को विश्वास में लिए बगैर योजना लागू करने से समाधान की बजाय परेशानी ही बढ़ेगी।हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राधाकांत ओझा का कहना है कि बार-बेंच का मधुर रिश्ता बेमानी हो गया है। बिना बार एसोसिएशन को विश्वास में लिए नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं। ऐसी परंपरा उचित नहीं है।कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफार्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता एएन त्रिपाठी का कहना है कि बार एसोसिएशन को विश्वास में लेकर ही सुनवाई प्रक्रिया तय करने से न्याय देना सुलभ होगा। दाखिले की अवधि के अनुसार केस लगाए जाएं और पीठों को उचित संख्या में मुकदमों का वितरण कर वादकारी को न्याय दिलाया जाए।
हाईकोर्ट बार के पूर्व संयुक्त सचिव प्रशासन संतोष कुमार मिश्र कहते है कि हाईकोर्ट का रोस्टर कोरोना वेरिएंट की तरह बदल रहा है। एक परेशानी खत्म होती है तो दूसरी शुरू हो जाती है। पूर्व उपाध्यक्ष सदस्य एसके गर्ग का कहना है कि हाईकोर्ट की पुरानी परंपरा रही है कि बार और बेंच के बीच मधुर रिश्ते रख वादकारी हित को सर्वोच्च मानकर न्याय प्रक्रिया चलाई जाए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ने मुकदमों की लिस्टिंग में सोमवार से ऑड-इवेन फार्मूला लागू किया है। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इस पर असहमति व्यक्त करते हुए इसका विरोध करने की बात कही है। 28 जून से अदालतों में लगने वाले सभी मुकदमे ऑड-इवेन नंबर से लिस्ट होंगे। जारी आदेश के अनुसार एकल पीठ के समक्ष प्रतिदिन 100 नए दाखिल केस और अतिरिक्त वाद सूची में 30 मुकदमों से अधिक नहीं लगेंगे।
इसी तरह दो जजों की खंडपीठ के समक्ष 60 नए मुकदमें और अतिरिक्त सूची में 20 केस ही लगेंगे। सभी मुकदमें ऑड-इवेन नंबर से लगेंगे। जहां बंच केसेस होंगे, वहां पहले लीडिंग केस के ऑड-इवेन नंबर देखे जाएंगे। किसी मुकदमे की सात दिन के भीतर तिथि लगी है तो उसे उसी जज की पीठ में लगाया जाएगा, जिसने तिथि निर्धारित की है। इस नियम के वाबजूद कोर्ट अपने आदेश से किसी केस की तिथि तय कर सुनवाई कर सकेगी।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरेन्द्र नाथ सिंह का कहना है कि मुकदमों की सुनवाई में ऑड-इवेन फार्मूले का बार विरोध करेगी। वकीलों को लिंक नहीं मिल रहा है। महीनों पहले दाखिल मुकदमे कब सुने जाएंगे, पता नहीं चल रहा है। बहस की बजाय तारीख लग रही है। घूम-फिर कर कोर्ट में वही मुकदमे आ रहे हैं। नया फार्मूला पहले से परेशान वकीलों की कठिनाई ही बढ़ाने वाला है। पूर्व अध्यक्ष अनिल तिवारी का कहना है कि बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों व वरिष्ठ अधिवक्ताओं से परामर्श कर मुख्य न्यायाधीश को उचित निर्णय लेना चाहिए।
बार को विश्वास में लिए बगैर योजना लागू करने से समाधान की बजाय परेशानी ही बढ़ेगी।हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राधाकांत ओझा का कहना है कि बार-बेंच का मधुर रिश्ता बेमानी हो गया है। बिना बार एसोसिएशन को विश्वास में लिए नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं। ऐसी परंपरा उचित नहीं है।कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफार्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता एएन त्रिपाठी का कहना है कि बार एसोसिएशन को विश्वास में लेकर ही सुनवाई प्रक्रिया तय करने से न्याय देना सुलभ होगा। दाखिले की अवधि के अनुसार केस लगाए जाएं और पीठों को उचित संख्या में मुकदमों का वितरण कर वादकारी को न्याय दिलाया जाए।
हाईकोर्ट बार के पूर्व संयुक्त सचिव प्रशासन संतोष कुमार मिश्र कहते है कि हाईकोर्ट का रोस्टर कोरोना वेरिएंट की तरह बदल रहा है। एक परेशानी खत्म होती है तो दूसरी शुरू हो जाती है। पूर्व उपाध्यक्ष सदस्य एसके गर्ग का कहना है कि हाईकोर्ट की पुरानी परंपरा रही है कि बार और बेंच के बीच मधुर रिश्ते रख वादकारी हित को सर्वोच्च मानकर न्याय प्रक्रिया चलाई जाए।
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