प्रकृति से रिश्ता जोड़ने चिंतनदादू मैं हूं ना- करंज – Lok Shakti

Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

प्रकृति से रिश्ता जोड़ने चिंतनदादू मैं हूं ना- करंज

क्रूर कोरोना वायरस के कालचक्र में फंसने से बचने की मेरी तमाम कोशिश बेकार गई।पता ही नहीं चला और मैं इस घाघ वायरस की चपेट में आ ही गया। तेज बुखार ,सर्दी -खांसी के साथ कोरोना वायरस ने जब मेरे बूढ़े शरीर को जकड़ा तो  तरह तरह  की शंकाओं से घिरा मेरा मन मुझे जीते जी मारने लगा किसी रोगग्रसित ब्यक्ति की प्राण रक्षा करने के लिए ईश्वर स्वरूप चिकित्सक ही आगे आते हैं। मुझे भी ऐसे समय में हमेशा की भांति डाक्टर छाबड़ा का साथ और हाथ मिला। उन्होंने कोरोना वायरस को मात देने वाली असरकारी दवाओं के साथ साथ टेम्प्रेचर, आक्सीजन लेबल ,पल्स रेट,सुगर और ब्लड प्रेशर पर नजर रखने की  सख्त हिदायत दी। जानलेवा गंभीर रोगग्रस्त मरीजों के लिए रात्रिकाल को अधिक खतरनाक माना जाता है।इसका जीवंत अहसास उस रात मुझे भी रह रह कर कोरोना वायरस करा रहा था। कहीं दूर कुत्ते की रोने की आवाज से मेरी रूह कांप उठती थी।           

ऐसी जानलेवा घड़ी में भी कोई तीमारदार पास नहीं था, चिकित्सा गाइड लाईन के मुताबिक कोरोना वायरस संक्रमित के पास  कोई नहीं रह सकता। मुझे उस वक्त कोमल बिस्तर भी कांटों से भरे बिछौना की भांति चुभ रहा था। डाक्टर के परामर्श का अनुशरण करते हुए मैंने आक्सीजन लेबल जांचने  उंगली में आक्सीमीटर को लगाया तो उसके स्क्रीन पर आक्सीजन लेबल नब्बे प्रतिशत अंकित हुआ। इसे देखकर मैं सिहर उठा,क्योंकि चिकित्सकों के अनुसार चैरान्बे प्रतिशत से नीचे आक्सीजन लेबल का होना प्राणघातक होने का संकेत है। मुझे लगा मेरा जीवन दीप बुझ जाएगा।  मुझे यकीन ही नहीं हुआ,अतः कुछ समय बाद मैंने पुनः आक्सीमीटर अपनी उंगली में लगाया।तब उसके स्क्रीन पर आक्सीजन लेबल पहले तो तिरानबे प्रतिशत दर्ज हुआ,पर धीरे धीरे बढ़कर छियान्बे प्रतिशत तक जा पहुंचा। जिसे देखकर मेरी उखड़ती सांसों में नई जान आ गई।मैं आंखें बंद करके बिस्तर पर लेट गया। तभी किसी ने बड़ी मीठी आवाज में मुझे पुकारा-दादू ओ दादू। अपने मन को भारी मत करना। निराश हताश मत होना। हां दादू, अगर खुद से नहीं हारे तो आपकी जीत सुनिश्चित है।ऐसी मधुर वाणी के साथ-साथ मन में आत्मविश्वास की प्रबल ज्योति प्रज्ज्वलित करने वाली उसआवाज से मैं मोहित हो गया।उस ष्महाबलीष्को देखने बिस्तर से उठ कर मैं खिड़की के बाहर झांकने लगा।   तभी खिड़की से कुछ दूरी पर उगे एक करंज के पेड़ से किलकारी सुनाई दी।मेरी आंखें अपलक उस करंज पेड़ को ताकने लगी। करंज के पेड़ पर हल्की सी सरसराहट हुई और फिर आवाज आई -दादू ,मैं ही तुमसे बात कर रहा हूं। तुम्हारा अपना करंज ,जिसे दस वर्ष पूर्व अपने ही हाथों से तुमने रोपा था।

करंज की बातें सुनकर दस वर्ष पुरानी धुंधली हो चली यादों को पुनर्जीवित करने  मैंने दिमाग पर जोर दिया,तो याद आया कि मॉर्निंग वॉक के दौरान करंज का नन्हा बिरवा मुझे सड़क पर पड़ा मिला था। जिसे मैंने लाकर अपने आंगन में रोप दिया था।     खिड़की की सलाखों को कसकर पकड़े मैं करंज की यादों में खोया था, तभी मेरी सांसे फिर से तेजी से चलने लगी।मेरे हाथ पैर थरथराने लगे। मुझे लगा मैं धड़ाम से गिरने ही वाला हूं। मैं बुदबूदाया लगता है मेरा आक्सीजन लेबल पुनः तेजी से गिर रहा है। तभी करंज की टहनियां मेरी उंगलियों को स्पर्श करने लगी। मुझे अहसास हुआ मानों किसी नन्हे शिशु की हथेलियों ने मुझे अपने भीतर कस लिया है ।करंज ने कहा- दादू ,तुम बिल्कुल चिंता मत करो ।ऑक्सीजन का भंडार तो मेरे पास है ना। बस तुम मेरी उंगलियों को थामे रखना। तुम्हारे भीतर ऑक्सीजन का लेबल कभी कम नहीं होगा। करंज की बातों ने मेरे भीतर चमत्कारिक ऊर्जा का संचार किया ।मैंने उसकी टहनियों को यूं कसकर थाम लिया, जैसे एक मासूम बच्चा अपनी मां की साड़ी के छोर को थामे रहता है।     

करंज ने शीतल हवा के झोंकें मुझ पर बहाते हुए कहा- दादू, मैं सड़क पर लावारिस बच्चे की तरह पड़ा था ।याद है, तुमने मुझे संरक्षण दिया ।अपने बच्चे की तरह पाल पोस कर बड़ा किया ।तुम नहीं होते तो आज इस दुनिया में मेराअस्तित्व नहीं रहता। मैं आजीवन तुम्हारा ऋणी रहूंगा दादू। करंज की बातें मेरे दिल में घर कर गईं।मेरा हृदय द्रवित हो गया। मैंने करंज की टहनियों को सहलाते हुए रूंधे गले से कहा-नहीं मेरे बच्चे ,सच तो यह है कि मैंने तुम्हेंअपने बच्चे की तरह कभी पाला ही नहीं है। मेरा बच्चा तो बिस्तर पर मल -मूत्र का त्याग करता था। उसकी सफाई कर कर के उसी गीले बदबूदार बिस्तर में मैं कई रातें सोकर गुजारता था। मैंने ऐसी उम्दा परवरिश तुम्हारी कभी नहीं की ।आज वही बच्चे मुझसे दूर विदेशों में बसे हैं।इस महामारी के दौर में अवसाद से घिरा मैं अकेला अपनी जिंदगी बचाने के लिए कोरोना वायरस से जूझ रहा हूं। नहीं नहीं,ऐसा मत कहो दादू,। तुमने मुझे भी जीवन दान दिया है।मेरे होते हुए स्वयं को कभी अकेले मत समझना। अभी तो मैं हूं न। कहते हुए करंज मेरी ओर ऐसे झुका मानो वह मेरा चरण स्पर्श करने ब्याकुल है।     

इसे देखकर डबडबाई मेरीआंखों से आंसू की बूंदे गालों पर बह चली। मैंने करंज के पत्तों से उन्हें पोंछा और लम्बी सांस छोड़ते  हुए कहा-नहीं मेरे बच्चे मैंने तुम्हें नहीं, तुमने मुझे जीवन दान दिया है। तुमने बता दिया कि मानव निर्मित कल -कारखाने कभी भी पेड़- पौधे ,प्रकृति की तरह शुद्ध प्राणवायु आक्सीजन की आपूर्ति नहीं कर सकते हैं। तुमने इस बात को भी फिर से सिद्ध कर दिखाया है कि ष्पौधों को पालें इंसान बस एक बार ,फिर इंसानों को पौधे पालेंगे बारम्बार। तब एक आज्ञाकारी सुपुत्र की तरह मेरी सेहत  के प्रति चिंता ब्यक्त करते हुए करंज ने कहा- रात बहुत हो गई है दादू। ।अब सो जाइए। आपके भीतर आक्सीजन लेबल को मैं गिरने नहीं दूंगा। भरोसा रखिए।इस पर विजयी मुस्कान के साथ करंज को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देते हुए मैंने कहा- हां मेरे बच्चे ,मुझे पूरा भरोसा है। मेरा आक्सीजन लेबल अब कभी कम नहीं होगा ,क्योंकि मैंने प्रकृति से प्रगाढ़ रिश्ता जोड़ लिया है।   

मेरी बातें सुनकर करंज झूम उठा और नर्तकी जैसी थिरकतीं अपनी टहनियों को मेरे होंठों पर रख दिया।तब कोमल टहनियों में लगे सफेद  पुष्पों से संचारित मदमस्त खुशबू का आंनद मेरी घ्राणेन्द्रियां लेने लगी। मैं अचंभित हो उठा, क्यों कि कुछ देर पहले तक  गंध पहचानने की मेरी शक्ति समाप्त हो गई थीं।मुझे लगा करंज की महिमा से मैं कोरोना वायरस की कैद से बाहर आ रहा हूं। मैं करंज की टहनियों को गले लगा  खिलखिला कर हंस पड़ा।   विजय मिश्रा (अमित)     

अतिरिक्त महाप्रबंधक (जनसंपर्क),  छत्तीसगढ़ स्टेट पावर कम्पनी, एम-8, सेक्टर 2, अग्रोहा सोसाइटी, पोस्ट आफिस-सुन्दर नगर,    रायपुर छत्तीसगढ।