भाजपा के साथ चुनावी राजनीति में उतरने वाले छोटे राजनीतिक दलों की हमेशा से यह शिकायत रही है कि गठबंधन में उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता जिसके वे हकदार हैं। आरोप है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की छोटे दलों के प्रति इसी लापरवाही का परिणाम है कि एक-एक कर छोटे दल उससे दूर होते चले गए और कभी दो दर्जन से ज्यादा दलों का गठबंधन एनडीए आज महज चार-पांच दलों तक सीमित होकर रह गया है। अब जब कि उत्तर प्रदेश चुनाव सिर पर हैं, और बिना छोटे दलों का साथ पाए यह किला फतह करना मुश्किल दिख रहा है, भाजपा को फिर से छोटे दलों की याद आई है। लेकिन खबर है कि इन दलों को दोबारा साधने में भाजपा नेताओं को पसीने छूट रहे हैं क्योंकि बदले माहौल में वे अपने लिए ज्यादा बड़ी हिस्सेदारी चाहते हैं।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष और उत्तर प्रदेश प्रभारी राधामोहन सिंह ने जब उत्तर प्रदेश के नेताओं से मुलाकात की थी, उस समय भी उन्हें यह जानकारी दी गई थी कि छोटे दलों की उपेक्षा भाजपा को भारी पड़ सकती है। इसी के बाद केंद्रीय नेतृत्व के ईशारे पर पार्टी के एमएलसी एके शर्मा ने पूर्वांचल के छोटे दलों को साथ लेने की कोशिश शुरू की। अपना दल (एस) नेता अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद से अमित शाह की मुलाकात को छोटे दलों को फिर से साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। इस कोशिश से इतर, एनडीए के एक वर्तमान घटक के एक नेता ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा नेतृत्व सहयोगी दलों को उनकी उचित भूमिका देने में संकोच करता रहा है। केवल इसी सोच का ही परिणाम हुआ कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ओमप्रकाश राजभर भाजपाई खेमे से दूर हो गये।पूर्वांचल में कुर्मी समुदाय के वोटरों पर अच्छी पकड़ रखने वाली पार्टी अपना दल (एस) की नेता अनुप्रिया पटेल की याद भाजपा को तब आई है जब उत्तर प्रदेश चुनाव सर पर आ गये हैं, जबकि उन्हें केवल केंद्र सरकार में एक कैबिनेट बर्थ देने से इनकार करने की सोच में साल भर पहले किनारे लगा दिया गया था।निषाद पार्टी की भी भाजपा से नाराजगी भी सामने आ चुकी है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से बात न बनने के कारण ही निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद के पुत्र प्रवीण निषाद ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और भारी जीत हासिल कर भाजपा को अपमानजनक स्थिति में खड़ा कर दिया। सूत्र बताते हैं कि अमित शाह की संजय निषाद से मुलाकात के बाद भी अगर पार्टी को उचित जगह नहीं मिली तो उत्तर प्रदेश चुनाव में साथ जाने की भाजपा की कोशिशों को झटका लग सकता है।
लोकजनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान इस समय अपनी पार्टी में ही अपनी जगह सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लोजपा के कुछ नेता पार्टी के अन्दर हुई इस फूट के पीछे भी भाजपा-जेडीयू की सोची-समझी चाल को ही कारण बता रहे हैं। पार्टी के एक नेता के मुताबिक़, भाजपा नेतृत्व ने रामविलास पासवान के चेहरे का लाभ उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक हर जगह उठाया। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद पार्टी नेताओं ने एक बार भी चिराग पासवान से संपर्क नहीं किया, जबकि वे हमेशा से स्वयं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते रहे हैं।बता दें कि, पूर्वांचल में लोकजनशक्ति पार्टी के भारी संख्या में मजबूत समर्थक रहे हैं। इनकी बदौलत वह उत्तर प्रदेश की विधानसभा में भी दखल रखती रही है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 के पहले चिराग पासवान पार्टी को उत्तर प्रदेश में खड़ा करना चाहते थे। इसके लिए रामविलास पासवान ने वाराणसी में एक बड़े कार्यक्रम का भी आयोजन किया था। लेकिन बाद में भाजपा के ही इशारे पर लोजपा ने अपना यह अभियान रद्द कर दिया था। पार्टी नेता बताते हैं कि इस त्याग के बाद भी भाजपा नेतृत्व ने लोजपा नेता चिराग पासवान को उचित सम्मान नहीं दिया।
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