इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने आयकर विभाग द्वारा लगभग 40 लाख रुपये कर वसूले जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। बार एसो. ने आयकर द्वारा जारी नोटिस और वसूली गई रकम को चुनौती दी है। बार एसो. का कहना है कि वह सदस्यों के लाभ के लिए गठित संस्था है, जो किसी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि में शामिल नहीं है, लिहाजा वह आयकर के दायरे में नहीं आती है। याचिका में बार एसोसिएशन ने कहा है कि आयकर विभाग ने वर्ष 2017-18 के लिए 39,68,313 रुपये आयकर के रूप में वसूले हैं। यह वसूली एकपक्षीय रूप से की गई है। बार एसोसिएशन ने इसके विरुद्ध आयकर विभाग में पुनरीक्षण अर्जी भी दाखिल की है, जिसका अब तक निस्तारण नहीं किया गया। एसोसिएशन का कहना है कि कोरोना महामारी के कारण करीब डेढ़ सौ अधिवक्ताओं की मृत्यु हुई है, जिनके परिवारों को बार एसो. की ओर से पांच लाख रुपये का मुआवजा दिया जा रहा है। ऐसे में वसूली गई रकम वापस मिलने से बार एसोसिएशन को अधिवक्ता परिवारों की मदद करने में सहूलियत होगी।एसोसिएशन के कर सलाहकार डॉ. पवन जायसवाल का कहना है कि हाईकोर्ट बार एसोसिएशन सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत संस्था है। एसोसिएशन सिर्फ अपने सदस्यों के आपसी लाभ के लिए कार्य करती है। म्यूचुअल बेनिफिट के लिए कार्य करने वाली संस्था की आय आयकर के दायरे से मुक्त होती है। एसोसिएशन की आमदनी का मुख्य स्रोत सदस्यों से मिलने वाला सदस्यता शुल्क और फोटो एफिडेविट से होने वाली आय है। इस आमदनी का कुछ हिस्सा फिक्स डिपॉजिट किया जाता है, जिसके ब्याज से अधिवक्ताओं को चिकित्सकीय सहायता देने का कार्य किया जाता है। याचिका में कहा गया है कि बार एसोसिएशन ने आयकर द्वारा जारी कर निर्धारण नोटिस के खिलाफ पुनरीक्षण अर्जी दाखिल की थी, जिसका निस्तारण न करके वर्ष 2016-17 का केस भी खोल दिया गया है। इसके खिलाफ भी अलग याचिका दाखिल की गई है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने आयकर विभाग द्वारा लगभग 40 लाख रुपये कर वसूले जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। बार एसो. ने आयकर द्वारा जारी नोटिस और वसूली गई रकम को चुनौती दी है। बार एसो. का कहना है कि वह सदस्यों के लाभ के लिए गठित संस्था है, जो किसी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि में शामिल नहीं है, लिहाजा वह आयकर के दायरे में नहीं आती है।
याचिका में बार एसोसिएशन ने कहा है कि आयकर विभाग ने वर्ष 2017-18 के लिए 39,68,313 रुपये आयकर के रूप में वसूले हैं। यह वसूली एकपक्षीय रूप से की गई है। बार एसोसिएशन ने इसके विरुद्ध आयकर विभाग में पुनरीक्षण अर्जी भी दाखिल की है, जिसका अब तक निस्तारण नहीं किया गया। एसोसिएशन का कहना है कि कोरोना महामारी के कारण करीब डेढ़ सौ अधिवक्ताओं की मृत्यु हुई है, जिनके परिवारों को बार एसो. की ओर से पांच लाख रुपये का मुआवजा दिया जा रहा है। ऐसे में वसूली गई रकम वापस मिलने से बार एसोसिएशन को अधिवक्ता परिवारों की मदद करने में सहूलियत होगी।
एसोसिएशन के कर सलाहकार डॉ. पवन जायसवाल का कहना है कि हाईकोर्ट बार एसोसिएशन सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत संस्था है। एसोसिएशन सिर्फ अपने सदस्यों के आपसी लाभ के लिए कार्य करती है। म्यूचुअल बेनिफिट के लिए कार्य करने वाली संस्था की आय आयकर के दायरे से मुक्त होती है। एसोसिएशन की आमदनी का मुख्य स्रोत सदस्यों से मिलने वाला सदस्यता शुल्क और फोटो एफिडेविट से होने वाली आय है। इस आमदनी का कुछ हिस्सा फिक्स डिपॉजिट किया जाता है, जिसके ब्याज से अधिवक्ताओं को चिकित्सकीय सहायता देने का कार्य किया जाता है। याचिका में कहा गया है कि बार एसोसिएशन ने आयकर द्वारा जारी कर निर्धारण नोटिस के खिलाफ पुनरीक्षण अर्जी दाखिल की थी, जिसका निस्तारण न करके वर्ष 2016-17 का केस भी खोल दिया गया है। इसके खिलाफ भी अलग याचिका दाखिल की गई है।
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