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सात जून को ही प्रयागराज को लियाकत अली ने 10 दिन के लिए अंग्रेजों से कराया थ आजाद

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाकर आजादी का झंडा फहराने वाले मौलवी लियाकत अली की तलवार और कुर्ता सोमवार को इलाहाबाद संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया। इस संग्रहालय में वीर सेनानी लियाकल अली की निशानियां नई पीढ़ी के लिए संजो कर रखी गई हैं। सात जून 1857 को आज के ही दिन मौलवी लियाकत अली ने प्रयागराज को अंग्रेजों से आजाद कराया था। आगे की स्लाइड में देखें लियाकत अली की तलवार और उनका कुर्ता।
इस शहर के 10 दिन तक अंग्रेजों से मुक्त कराकर आजादी का एलान करने वाले मौलवी लियाकत अली के पराक्रम को याद कर सोमवार को लोगों की आंखें भर आईं। इस खास मौके को यादगार बनाने के लिए इलाहाबाद संग्रहालय में मौलवी लियाकत अली की तलवार और उनके कैदी जीवन के सहेज कर रखे गए वस्त्रों को प्रदर्शित किया गया। इतिहास के पन्ने पलटे गए। निदेशक संग्रहालय डॉ सुनील गुप्ता ने बताया कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कौशांबी के महगांव निवासी मौलवी लियाकत अली ने इस शहर को अंग्रेजों के कब्जे से मुक्त करा लिया था।
आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने उन्हें ही यह जिम्मेदारी सौंपी थी। इसकी बड़ी वजह यह थी कि लियाकत अली व्यूह रचना के माहिर खिलाड़ी थे। तब खुसरोबाग से उन्होंने अंग्रेजों के समानांतर सरकार चलाई थी।शहर को आजाद कराने के बाद 10 दिनों तक मौलवी लियाकत अली के क्रांतिकारी साथी तहसीलदार, नायब और कोतवाल की भूमिका में तैनात रहे। खुसरोबाग में रहकर लियाकत ने शहर और आसपास के इलाकों में अपने अधिकारी नियुक्त कर दिए थे। सैफुल्ला और सुखराम को चायल का तहसीलदार बनाया तो कासिम अली और नियामत अशरफ  को कोतवाल की जिम्मेदारी दी थी। पहली आजादी की इस वर्षगाठ पर मौलवी लियाकत अली की निशानियों को प्रदर्शित कर उनकी यादों को ताजा किया गया।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाकर आजादी का झंडा फहराने वाले मौलवी लियाकत अली की तलवार और कुर्ता सोमवार को इलाहाबाद संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया। इस संग्रहालय में वीर सेनानी लियाकल अली की निशानियां नई पीढ़ी के लिए संजो कर रखी गई हैं। सात जून 1857 को आज के ही दिन मौलवी लियाकत अली ने प्रयागराज को अंग्रेजों से आजाद कराया था। आगे की स्लाइड में देखें लियाकत अली की तलवार और उनका कुर्ता।

इस शहर के 10 दिन तक अंग्रेजों से मुक्त कराकर आजादी का एलान करने वाले मौलवी लियाकत अली के पराक्रम को याद कर सोमवार को लोगों की आंखें भर आईं। इस खास मौके को यादगार बनाने के लिए इलाहाबाद संग्रहालय में मौलवी लियाकत अली की तलवार और उनके कैदी जीवन के सहेज कर रखे गए वस्त्रों को प्रदर्शित किया गया। इतिहास के पन्ने पलटे गए। निदेशक संग्रहालय डॉ सुनील गुप्ता ने बताया कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कौशांबी के महगांव निवासी मौलवी लियाकत अली ने इस शहर को अंग्रेजों के कब्जे से मुक्त करा लिया था।

आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने उन्हें ही यह जिम्मेदारी सौंपी थी। इसकी बड़ी वजह यह थी कि लियाकत अली व्यूह रचना के माहिर खिलाड़ी थे। तब खुसरोबाग से उन्होंने अंग्रेजों के समानांतर सरकार चलाई थी।शहर को आजाद कराने के बाद 10 दिनों तक मौलवी लियाकत अली के क्रांतिकारी साथी तहसीलदार, नायब और कोतवाल की भूमिका में तैनात रहे। खुसरोबाग में रहकर लियाकत ने शहर और आसपास के इलाकों में अपने अधिकारी नियुक्त कर दिए थे। सैफुल्ला और सुखराम को चायल का तहसीलदार बनाया तो कासिम अली और नियामत अशरफ  को कोतवाल की जिम्मेदारी दी थी। पहली आजादी की इस वर्षगाठ पर मौलवी लियाकत अली की निशानियों को प्रदर्शित कर उनकी यादों को ताजा किया गया।