योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल का विस्तार जल्दी कभी भी हो सकता है। इसे देखते हुए अभी से ही अटकलबाजियां तेज हो गई हैं कि मंत्रिमंडल में किन नये चेहरों को मौका मिल सकता है और कौन सरकार से बाहर जा सकता है। लेकिन माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल विस्तार में सरकार पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समीकरण को साधने की कोशिश के साथ-साथ निषाद, पटेल, राजभर और दलित समुदाय को साधने की कोशिश कर सकती है। ये सभी वर्ग अगले साल होने वाले चुनावों की दृष्टि से सरकार के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण माने जा रहे हैं। बसपा और युवा दलित उभार के प्रतीक चंद्रशेखर आजाद की काट के लिए बिहार की तर्ज पर किसी दलित चेहरे को उप-मुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता है।
भाजपा सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई बैठक के बाद जिस फॉर्मूले पर विचार किया गया, उसके मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार और प्रदेश संगठन में कई बड़े बदलाव किए जा सकते हैं। कोरोना संकट, किसान आंदोलन और पंचायत चुनावों के कारण प्रदेश में भाजपा के खिलाफ जो माहौल बना है, अगले छह महीनों में पार्टी की लोकप्रियता का ग्राफ फिर से वापस ऊपर लाना एक कठिन चुनौती है। जबकि विधानसभा चुनावों में अब महज आठ महीने ही बचे हैं और सरकार के कामकाज के लिए सिर्फ छह महीने की अवधि ही शेष है।पार्टी रणनीतिकारों का मानना है ऐसे में छोटी-मोटी सर्जरी की नहीं बल्कि बड़े आपरेशन की जरूरत है। इसे देखते हुए पार्टी के योगी विरोधी खेमे ने मुख्यमंत्री बदलने का दबाव भी बनाया, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया क्योंकि उसके लिए न तो संघ से हरी झंडी है और न ही भाजपा योगी और उनके समर्थकों की नाराजगी का जोखिम मोल लेना चाहती है। इसलिए सरकार और संगठन में जातीय और क्षेत्रीय संतुलन ठीक करने की रणनीति पर काम हो रहा है। इसके लिए एक सुझाव है उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को फिर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बना दिया जाए। उनकी जगह किसी दलित को उप मुख्यमंत्री बनाया जाए और इसी तरह मौजूदा दूसरे उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को विधान परिषद अध्यक्ष बनाकर उनके स्थान पर गुजरात कैडर के पूर्व आईएएस और विधान परिषद सदस्य अरविंद कुमार शर्मा को उप मुख्यमंत्री बनाकर कुछ अहम विभाग उन्हें सौंपे जाएं जिससे राज्य सरकार के कामकाज में अपेक्षित सुधार और गति को अंजाम दिया जा सके।
इसी कड़ी में एक चर्चा ये भी है कि केंद्रीय नेतृत्व उत्तर प्रदेश के मौजूदा प्रभारी राधा मोहन सिंह के कामकाज से संतुष्ट नहीं है। इसलिए उनके स्थान पर केंद्रीय नेतृत्व के बेहद भरोसेमंद महासचिव भूपेंद्र यादव को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया जाए। यादव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तीनों के ही विश्वस्त हैं और वह बिहार, प. बंगाल समेत कई राज्यों के प्रभारी रहकर अपेक्षित परिणाम दे चुके हैं। भाजपा को भरोसा है कि इससे अखिलेश यादव के जनाधार यादवों में भी सेंध लगाने में मदद मिल सकती है।भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में पूर्वांचल और अवध क्षेत्र का दबदबा है। स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से आते हैं, तो उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या इलाहबाद से और दिनेश शर्मा अवध क्षेत्र से आते हैं। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह भी मूल रूप से मिर्जापुर से संबंध रखते हैं। इनके आलावा सूर्यप्रताप शाही, स्वामी प्रसाद मौर्या, सतीश महाना, ब्रजेश पाठक, सिद्धार्थनाथ सिंह, आशुतोष टंडन, नंद गोपाल नंदी और नीलकंठ तिवारी इसी क्षेत्र से आते हैं। वहीं, पश्चिम से मथुरा से श्रीकांत शर्मा, गाजियाबाद से अतुल गर्ग, थाना भवन से सुरेश राणा और बिजनौर क्षेत्र से आने वाले एमएलसी अशोक कटारिया जैसे चंद नाम ही प्रभावी हैं।सूत्रों के मुताबिक सरकार पश्चिम से कुछ दमदार चेहरों को साथ लाकर सरकार पश्चिमी बेल्ट में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की कोशिश कर सकती है। इस क्षेत्र में किसानों की नाराजगी दूर करना योगी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है, लिहाजा ऐसी ही चेहरों पर दांव लगाया जा सकता है जो जाटों-किसानों को अपने साथ जोड़ सकें।
फिर अपना दल को साधने की कवायद
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