गाजियाबादअशोक कश्यप (48) चाय बेचते थे। गाजियाबाद के रावली मार्ग पर चुंगी नंबर 3 के पास उनकी दुकान थी। वे कई दिनों से बीमार चल रहे थे। सोमवार सुबह उनकी मौत हो गई। दुकान के पास में ही उनका परिवार रहता है। पत्नी और एक बेटा अंशुल कश्यप है। रिश्तेदार दूर हैं, इस वजह से अंतिम संस्कार के लिए नहीं पहुंच सके।आसपास के लोगों ने कोरोना के डर से दूरी बना ली। घर में शव रखा था, लेकिन पत्नी और बेटा लाचार थे। अशोक के यहां चाय पीने कई मुस्लिम युवक भी आते थे। उन्हें इसकी जानकारी हुई तो घर 30-40 युवक पहुंच गए। फिर पूरे रीति-रिवाज के साथ अशोक की अर्थी को कंधा दिया और उनके बेटे से अंतिम संस्कार कराया।मुस्लिमों ने नहीं बताया नाम भीअर्थी उठाकर चल रहे युवकों से उनका नाम पूछा तो वे टाल गए। अंतिम संस्कार के बाद एक व्यक्ति ने कहा कि सबसे बड़ी यही मानवता है। सभी धर्मों में किसी लाचार की मदद करना सबसे बड़े सवाब का काम है। लोग थोड़ी सी मदद करके खुद की ब्रांडिंग में करने लगते हैं। मानवता यह नहीं है। हमने बस अपना धर्म निभाया है, ऐसे में नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता।बेटे ने बताई मजबूरी तो आए आगेअर्थी लेकर चल रहे एक व्यक्ति ने कहा कि अंशुल ने अपनी मजबूरी बताई थी। उसके आंसू देखे नहीं गए। कोरोना तो कल को चला जाएगा। लेकिन, हम आज मदद से पीछे हट जाते तो कभी भी उस बच्चे से नजरें मिलाने लायक नहीं रहते।’इलाज न मिलने से हुई मौत’अशोक की पत्नी ने इलाज न मिलने पर मौत का आरोप लगाया है। उनका कहना था कि कई दिनों से अशोक इलाज के लिए अस्पतालों के चक्कर काट रहे थे। किसी ने देखने की भी जहमत नहीं उठाई।
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