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पुलिस अधिकारियों के मनमाने आदेशों से नाखुश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारी हाईकोर्ट द्वारा प्रतिपादित विधि सिद्धांतों की अनदेखी आदेश पारित कर रहे हैं। यह आश्चर्य का विषय है। कोर्ट ने कहा कि यह कानून प्रतिपादित हो चुका है कि निलंबन आदेश विचाराधीन जांच प्रक्रिया के दौरान किया जा सकता है। इसके बावजूद पुलिस अधिकारी इन कानूनों से बेखबर होकर मनमाने तरीके से बिना जांच व तथ्य के अपने मातहतों को निलंबित कर रहे हैं। ऐसा करके वह कोर्ट में अनावश्यक मुकदमों का बोझ बढ़ा रहे हैं। कोर्ट ने महोबा में तैनात रहे दो पुलिस इंस्पेक्टरों के निलंबन पर रोक लगा दी है तथा सरकार से जवाब मांगा है। इन दोनों पर निलंबित एसपी मणिलाल पाटीदार के लिए धन उगाही करने का आरोप है। यह आदेश जस्टिस एमसी त्रिपाठी ने इंसपेक्टर राकेश कुमार सरोज और राजू सिंह की याचिका पर दिया है। याचीगण का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम का कहना था कि एसपी महोबा ने 10 सितंबर 2020 को दोनों इंस्पेक्टरों को नकिलंबति कर दिया था। ये दोनों महोबा में अलग-अलग पुलिस स्टेशन, थाना खन्ना व थाना कुलपहाड में तैनात थे। इन्हें निलंबित कर पूर्व में पुलिस लाइंस से संबद्ध कर दिया गया था। बाद में दोनों को प्रशासनिक आधार पर एटा व आजमगढ़ सम्बद्ध कर दिया गया।
याचीगण पर आरोप है कि इन लोगों ने पीपी पांडेय इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रा लि कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर अमित तिवारी के गाडिय़ों को रोककर चालान कर दिया एवं एफआई आर दर्ज की। आरोप यह भी लगा है कि इन लोगों ने महोबा के तत्कालीन एसपी मणिलाल पाटीदार को हर माह रुपये देने को कहा और धमकी दी। इस मामले में इन दोनों के खिलाफ थाना कोतवाली नगर, महोबा में धन उगाही करने व 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत मुकदमा नितीश पांडेय ने दर्ज कराया था।
वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम व अतिप्रिया का कहना था कि हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार बनाम जय सिंह दीक्षित व सच्चिदानंद त्रिपाठी समेत तमाम केसों में यह कानून प्रतिपादित कर दिया है कि पुलिस अधिकारी के निलंबन आदेश पारित करते समय सक्षम अधिकारी के पास उसके खिलाफ निलंबन के लिए साक्ष्य होना चाहिए। याचीगण के खिलाफ अधिकारी के पास कोई ऐसा तथ्य नहीं था जिसके आधार पर निलंबित किया जा सके। चूंकि इन इंस्पेक्टरों ने शिकायतकर्ता पीपी पांडेय व इसके सहयोगियों के खिलाफ अवैध खनन को लेकर मुकदमा दर्ज कराया था, इस कारण इन्हें झूठे मामलों में फंसा कर निलंबन की कार्रवाई की गई है। कोर्ट ने निलंबन पर रोक लगाते हुए सरकार से जवाब मांगा है।
विस्तार
पुलिस अधिकारियों के मनमाने आदेशों से नाखुश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारी हाईकोर्ट द्वारा प्रतिपादित विधि सिद्धांतों की अनदेखी आदेश पारित कर रहे हैं। यह आश्चर्य का विषय है। कोर्ट ने कहा कि यह कानून प्रतिपादित हो चुका है कि निलंबन आदेश विचाराधीन जांच प्रक्रिया के दौरान किया जा सकता है। इसके बावजूद पुलिस अधिकारी इन कानूनों से बेखबर होकर मनमाने तरीके से बिना जांच व तथ्य के अपने मातहतों को निलंबित कर रहे हैं। ऐसा करके वह कोर्ट में अनावश्यक मुकदमों का बोझ बढ़ा रहे हैं। कोर्ट ने महोबा में तैनात रहे दो पुलिस इंस्पेक्टरों के निलंबन पर रोक लगा दी है तथा सरकार से जवाब मांगा है। इन दोनों पर निलंबित एसपी मणिलाल पाटीदार के लिए धन उगाही करने का आरोप है।
यह आदेश जस्टिस एमसी त्रिपाठी ने इंसपेक्टर राकेश कुमार सरोज और राजू सिंह की याचिका पर दिया है। याचीगण का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम का कहना था कि एसपी महोबा ने 10 सितंबर 2020 को दोनों इंस्पेक्टरों को नकिलंबति कर दिया था। ये दोनों महोबा में अलग-अलग पुलिस स्टेशन, थाना खन्ना व थाना कुलपहाड में तैनात थे। इन्हें निलंबित कर पूर्व में पुलिस लाइंस से संबद्ध कर दिया गया था। बाद में दोनों को प्रशासनिक आधार पर एटा व आजमगढ़ सम्बद्ध कर दिया गया।
याचीगण पर आरोप है कि इन लोगों ने पीपी पांडेय इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रा लि कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर अमित तिवारी के गाडिय़ों को रोककर चालान कर दिया एवं एफआई आर दर्ज की। आरोप यह भी लगा है कि इन लोगों ने महोबा के तत्कालीन एसपी मणिलाल पाटीदार को हर माह रुपये देने को कहा और धमकी दी। इस मामले में इन दोनों के खिलाफ थाना कोतवाली नगर, महोबा में धन उगाही करने व 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत मुकदमा नितीश पांडेय ने दर्ज कराया था।
वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम व अतिप्रिया का कहना था कि हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार बनाम जय सिंह दीक्षित व सच्चिदानंद त्रिपाठी समेत तमाम केसों में यह कानून प्रतिपादित कर दिया है कि पुलिस अधिकारी के निलंबन आदेश पारित करते समय सक्षम अधिकारी के पास उसके खिलाफ निलंबन के लिए साक्ष्य होना चाहिए। याचीगण के खिलाफ अधिकारी के पास कोई ऐसा तथ्य नहीं था जिसके आधार पर निलंबित किया जा सके। चूंकि इन इंस्पेक्टरों ने शिकायतकर्ता पीपी पांडेय व इसके सहयोगियों के खिलाफ अवैध खनन को लेकर मुकदमा दर्ज कराया था, इस कारण इन्हें झूठे मामलों में फंसा कर निलंबन की कार्रवाई की गई है। कोर्ट ने निलंबन पर रोक लगाते हुए सरकार से जवाब मांगा है।
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