प्रदीप मिश्र, मेरठ
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Sun, 04 Apr 2021 02:19 AM IST
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भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के काफिले पर अलवर में हमले के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के समीकरण बदल सकते हैं। वेस्ट यूपी के पांच उन जिलों में पहले चरण में चुनाव है, जहां बीते चार महीने से किसान आंदोलन का ज्यादा प्रभाव दिखा है।आज गाजीपुर बॉर्डर पर हमले को लेकर पंचायत बुलाई गई है। इसमें कृषि कानूनों का विरोध तेज करने का फैसला संभावित है। विपक्ष इसमें अपना राजनीतिक फायदा देख रहा है। इसके मद्देनजर उसने एजेंडा बना लिया है। दूसरी ओर घटना के बाद अंदरूनी तौर पर चिंतित भाजपा खुले तौर पर ‘सब ठीक’ बताने की तैयारी में जुट गई है।पश्चिमी यूपी का किसान और जाट समुदाय खेती-बाड़ी के मामलों में अपनी आवाज उठाने के लिए भाकियू के साथ है, जबकि राजनीतिक दलों को समर्थन में उनमें एक राय नहीं है। हालांकि भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत कह चुके हैं कि संगठन का चुनाव से लेना-देना नहीं है। पंचायत चुनाव में मतदाता अपनी पसंद के प्रत्याशी को वोट करें। फिर भी रालोद और सपा के साथ-साथ कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी भाकियू कार्यकर्ताओं से अपने पक्ष में मतदान की उम्मीद पाले हैं। पिछले कुछ समय से जाट बिरादरी या तो भाजपा के विरोध में खुलकर आ गई या फिर भाजपा से उसका जुड़ाव गहरा हो गया है। ऐसे में भाजपा ने जहां जाटों के अलावा अन्य जाति के किसानों को साधने की पूरी योजना बना ली है, वहीं विपक्ष कृषि कानून और किसान आंदोलन के साथ-साथ महंगाई और बेरोजगारी को जोर-शोर से उठाना तय कर चुकी है। रालोद, सपा और कांग्रेस के अलावा बसपा और आसपा ने जाट और अन्य जातियों के अलावा मुसलमानों का गठजोड़ बनाने के लिए मुसलमान उम्मीदवारों को तरजीह दी है। भाजपा इसे ध्रुवीकरण से बदलना चाहती है। यही नहीं, भाजपा पहले चरण के चुनाव में शामिल पश्चिम के जिलों में मतदान तक ऐसा माहौल बनाना चाहती है, जिसका प्रभाव पूर्वांचल तक पहुंचे। भाजपा नहीं चाहती कि किसान आंदोलन उसके लिए चुनावी चुनौती बने। इसके लिए पश्चिम यूपी में मंत्रियों और प्रदेश स्तरीय पदाधिकारियों के ताबड़तोड़ दौरे सोमवार से शुरू हो सकते हैं। दरअसल, भाजपा पंचायत चुनाव के बाद ब्लॉकों और जिला पंचायत में दबदबा कायम कर 2022 के विधानसभा चुनाव की राह आसान करना चाहती है।
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भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के काफिले पर अलवर में हमले के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के समीकरण बदल सकते हैं। वेस्ट यूपी के पांच उन जिलों में पहले चरण में चुनाव है, जहां बीते चार महीने से किसान आंदोलन का ज्यादा प्रभाव दिखा है।
आज गाजीपुर बॉर्डर पर हमले को लेकर पंचायत बुलाई गई है। इसमें कृषि कानूनों का विरोध तेज करने का फैसला संभावित है। विपक्ष इसमें अपना राजनीतिक फायदा देख रहा है। इसके मद्देनजर उसने एजेंडा बना लिया है। दूसरी ओर घटना के बाद अंदरूनी तौर पर चिंतित भाजपा खुले तौर पर ‘सब ठीक’ बताने की तैयारी में जुट गई है।
पश्चिमी यूपी का किसान और जाट समुदाय खेती-बाड़ी के मामलों में अपनी आवाज उठाने के लिए भाकियू के साथ है, जबकि राजनीतिक दलों को समर्थन में उनमें एक राय नहीं है। हालांकि भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत कह चुके हैं कि संगठन का चुनाव से लेना-देना नहीं है। पंचायत चुनाव में मतदाता अपनी पसंद के प्रत्याशी को वोट करें। फिर भी रालोद और सपा के साथ-साथ कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी भाकियू कार्यकर्ताओं से अपने पक्ष में मतदान की उम्मीद पाले हैं।
पिछले कुछ समय से जाट बिरादरी या तो भाजपा के विरोध में खुलकर आ गई या फिर भाजपा से उसका जुड़ाव गहरा हो गया है। ऐसे में भाजपा ने जहां जाटों के अलावा अन्य जाति के किसानों को साधने की पूरी योजना बना ली है, वहीं विपक्ष कृषि कानून और किसान आंदोलन के साथ-साथ महंगाई और बेरोजगारी को जोर-शोर से उठाना तय कर चुकी है। रालोद, सपा और कांग्रेस के अलावा बसपा और आसपा ने जाट और अन्य जातियों के अलावा मुसलमानों का गठजोड़ बनाने के लिए मुसलमान उम्मीदवारों को तरजीह दी है। भाजपा इसे ध्रुवीकरण से बदलना चाहती है।
यही नहीं, भाजपा पहले चरण के चुनाव में शामिल पश्चिम के जिलों में मतदान तक ऐसा माहौल बनाना चाहती है, जिसका प्रभाव पूर्वांचल तक पहुंचे। भाजपा नहीं चाहती कि किसान आंदोलन उसके लिए चुनावी चुनौती बने। इसके लिए पश्चिम यूपी में मंत्रियों और प्रदेश स्तरीय पदाधिकारियों के ताबड़तोड़ दौरे सोमवार से शुरू हो सकते हैं। दरअसल, भाजपा पंचायत चुनाव के बाद ब्लॉकों और जिला पंचायत में दबदबा कायम कर 2022 के विधानसभा चुनाव की राह आसान करना चाहती है।
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