पंकज मिश्रा, हमीरपुरउत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में यवनों पर विजय का प्रतीक झंडा शोभायात्रा आज भी अहसास कराता है। झंडा शोभायात्रा में कई गांवों के बड़ी संख्या में क्षत्रिय शामिल होते हैं। जानिये झंडा शोभायात्रा क्यों निकाली जाती है।जिले के कुरारा कस्बे में प्रति वर्ष की भांति ऐतिहासिक विजय का प्रतीक गरुण ध्वज (झंडा) डोल-नगाड़ों के साथ मंगलवार को निकाला गया। गरुण ध्वज की शोभायात्रा में आसपास के कई गांवों के क्षत्रिय बड़ी संख्या में शामिल हुए। शोभायात्रा में वाहनों पर सजी झांकियां आकर्षक का केन्द्र रहीं। राजस्थान के अलवर के हमीरदेव ने बसाया था हमीरपुरराजस्थान के अलवर से निष्काषित हमीरदेव को यहां ग्यारहवीं शताब्दी में शरण मिली थी। उन्हीं के नाम पर हमीरपुर का विस्तार हुआ था। प्राचीन काल में यह भूभाग घने जंगलों से आच्छादित था, जिसमें विभिन्न जन जातियां रहती थीं। गुप्त साम्राज्य के बाद महाराज हर्षवर्धन का भी यहां शासन रहा है। गहरवार, परिहार और चंदेल राजाओं ने भी इस भूभाग में लम्बे समय तक शासन किया है।हमीरदेव और यवनों में हुआ था भीषण संग्रामकुरारा कस्बे के वयोवृद्ध धर्मपाल सिंह गौर ने बताया कि हमीरपुर में जब हमीरदेव का शासन था तब यवनों ने उन पर चढ़ाई कर दी थी। हमीरदेव ने राजगढ़ स्टेट राजस्थान से मदद मांगी थी। तब वहां के युवराज सिंहलदेव और बीसलदेव ने अपनी सेना के साथ यहां आकर हमीरदेव के पक्ष में युद्ध किया था। युद्ध में हमीरदेव को विजय मिली। राजा हमीरदेव ने विजय निशान गरुण ध्वज सिंहलदेव को तथा नगाड़ा बीसलेदव को उपहार स्वरूप दिया था।युद्ध के बाद हमीरदेव ने बीसलदेव को बनाया था दामादयुद्ध के बाद राजा हमीरदेव ने अपनी बेटी रामकुंवर की शादी बीसलदेव के साथ की थी, जबकि सिंहलेदव को हमीरपुर जिले के कुरारा क्षेत्र के 12 गांव भी उपहार में दिए थे। इनमें कोडार्क देव ने कुरारा, रिठारी, जल्ला, चकोठी, पारा, कण्डौर, पतारा, झलोखर, टीकापुर, वहदीना, कुम्हपुर, बेजेइस्लामपुर आदि गांवों में शासन किया था। ये गांव गौर वंश के हैं।गौर वंश में नौ पीढ़ी तक हुई थी एक ही संतानगौर वंश के वंशज वयोवद्ध धर्मपाल सिंह गौर ने बताया कि पूर्वजों से सुना गया है कि सिंहलेदव ने अपनी राजधानी बेतवा नदी के किनारे कुम्हूपुर को बनाया था। इस वंश में नौ पीढ़ी तक एक ही संतान हुई थी। इसके बाद नौ पीढ़ी में राजा हरिहर देव की नौ संतानें हुई थीं। इनमें 9 गांव का संचालन पुत्रों को दिया गया, जिसमें सबसे बड़े पुत्र कोडार्क देव को कुरारा दिया गया था।गरुण ध्वज को यमुना नदी में स्नान कराकर होती है विशेष पूजापूर्व में गौर वंश के समस्त गांव के लोग होली के बाद दूज को हरेहटा गांव में जसला कार्यक्रम में शामिल होने जाते थे। इसमें नौ गांव के गौर क्षत्रिय भी भाग लेते थे। इसके बाद यह विजय ध्वज कोडार्क के यहां आ गया, तभी से कुरारा में हर साल विजय के प्रतीक ध्वज निकालकर जलसा मनाया जाता है। इसे सुबह यमुना नदी में स्नान कराकर विशेष पूजा भी की जाती है। नये वस्त्र धारण कर गौर वंश के क्षत्रिय लोग कुरारा कस्बे में शोभायात्रा निकालते हैं।गौर वंश के प्रत्येक गांवों में 8 दिन तक होता है विजय पर्वकण्डौर गांव के डॉ. देवेन्द्र सिंह गौर ने बताया कि कोडार्क देव की दो संतानें महलदेव और खान देव थी। इनमें महलदेव के चार पुत्र बलभद्र, नीर, हमीर, भीखम और खान देव के एक पुत्र रावदेव थे। इन्हीं के वंशज आज भी सैकड़ों साल पुरानी इस परम्परा को जीवित किए हुए हैं। प्रति वर्ष होली के बाद दूज को इस विजय निशान ध्वज को धूमधाम के साथ निकालकर विजय उत्सव मनाते हैं। रात्रि में संगीत महोत्सव होता है।गौर वंश के क्षत्रिय कण्डौर में अष्टमी के दिन मनाएंगे विजय पर्वबताया कि कुरारा क्षेत्र के कण्डौर गांव बेतवा नदी किनारे बसा है। इस गांव में गौर वंश के क्षत्रिय रहते हैं। इस गांव की परम्परा है कि होली के बाद अष्टमी को होली का जलसा मनाया जाता है। होली की परेवा को यहां गांव में होली नहीं खेली जाती है। धर्मपाल सिंह गौर ने बताया कि होली के बाद गौर वंश के शासनकाल में प्रत्येक गांव में 8 दिनों तक विजय पर्व मनाया जाता है। इसमें क्षेत्र के 9 गांव हैं। कण्डौर में होली के आठवें दिन जलसा मनाने की परम्परा में सभी क्षत्रिय शामिल होते हैं।
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