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ईमानदार प्रयास हो

नक्सली हिंसा प्रभावित राज्य के रूप प्रदेश की पहचान छत्तीसगढ़ वासियों के लिए सबसे गंभीर चुनौती है। सरकार के विकासोन्मुखीकार्य भी इस छवि को नहीं बदल पा रहे हैं। राज्य सरकार या सुरक्षा बलों की ओर से जब भी यह दावा किया जाता है कि वह नक्सलियों पर हावी हो चुके हैं या प्रदेश नक्सल हिंसा से मुक्ति की ओर बढ़़ रहा है, तो यहां सक्रिय नक्सली बड़ी वारदात को अंजाम देकर अपनी मजबूत स्थिति का प्रमाण दे देते हैं।

इसके बाद नेताओं का निंदा करने का रटा-रटाया बयान गूंजने लगता है। राज्य की जनता की भावना पर गौर किया जाए तो उन्हें नेताओं के दिखावे के संवेदना की नहीं, बल्कि उनके ऐसे संकल्प और दृढ़़ इच्छा शक्ति की जरूरत है, जो नक्सली हिंसा से मुक्ति दिला सके। बिस्तर संभाग के नारायणपुर जिले में मंगलवार को नक्सलियों ने आइइडी ब्लास्ट कर सुरक्षा बलों को फिर निशाना बनाया।

इस हमले में पांच जवान शहीद हो गए। महत्वपूर्ण बात यह है कि नक्सलियों ने हर वर्ष मार्च-अप्रैल में ही बड़़ी वारदातों को अंजाम दिया है। इस बार भी संकेत मिल रहे थे कि कारतूस समाप्त होने के कारण नक्सली अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए विस्फोटों का सहारा लेंगे। इधर सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के मजबूत गढ़़ों में घुसकर स्थायी कैंप बना लिए हैं।

इसकी वजह से नक्सलियों का दायरा सिमटता जा रहा है और बार-बार उनमें काफी बेचैनी के संदेश मिल रहे हैं। ऐसी स्थिति में सतर्कता की जरूरत और अधिक बढ़ जाती है। नक्सल विचारधारा के समर्थक चुनावी राजनीति में पूरी तरह खारिज किए जा चुके हैं। केंद्र सरकार की सख्ती के कारण शहरी नक्सली ज्यादा सहयोग नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में उनके पास हिंसा का ही सहारा है।