सतीश कौशिक और सलमान खान
– फोटो : सोशल मीडिया
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जीवित मृतकों के जीवन पर बनी फिल्म ‘कागज’को लेकर चल रहा विवाद अब न्यायालय में पहुंच गया है। जीवित मृतकों की लड़ाई लड़ने वाले लाल बिहारी मृतक ने फिल्म के निर्माता सलमान खान व निर्देशक सतीश कौशिक पर उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद में दीवानी न्यायालय में वाद दाखिल किया है। जिसमें उन्होंने फिल्म का नाम बिना उनकी अनुमति के बदलने समेत तमाम आरोप लगाए हैं।जिले के लाल बिहारी मृतक को सरकारी रिकार्ड में मुर्दा घोषित कर दिया गया था। मुर्दा से जिंदा होने के लिए लाल बिहारी ने लंबी लड़ाई लड़ी। वर्षों की लड़ाई के बाद सरकारी रिकार्ड में उन्हें जिंदा घोषित किया गया। फिल्म निर्माता सतीश कौशिक ने उनके जीवन पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया। इस संबंध में सतीश कौशिक व लाल बिहारी मृतक के बीच कई समझौते भी हुए। ‘मैं जिंदा हूं’ के स्थान पर ‘कागज’ नाम से बना दी फिल्म
लालबिहारी के अनुसार निर्माता सलमान खान व निर्देशक सतीश कौशिक ने फिल्म का नाम ‘मैं जिंदा हूं’ रखने का वादा किया था, किंतु फिल्म को ‘कागज’ नाम से रिलीज कर दिया गया। मैं बुनकर व किसान का बेटा हूं जबकि फिल्म में मुझे बैंडबाजा वाला दिखाया गया है। इसके अलावा कुछ और भी आरोप लगाए गए हैं। लाल बिहारी ने बुधवार को विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी कोर्ट ध्रुव राय की अदालत में मुकदमा दर्ज करने के लिए वाद दाखिल किया। जिस पर न्यायाधीश ने सुनवाई के लिए 30 मार्च की डेट निर्धारित की है।क्या है फिल्म कागज की कहानी
मशहूर अभिनेता सलमान खान द्वारा प्रोड्यूस की गई फिल्म ‘कागज’ की गांव छितौनी थाना चौबेपुर वाराणसी निवासी संतोष मूरत सिंह की जिंदगी पर आधारित है। जब वह 18 साल के थे तब वर्ष 1995 में उनके गांव में फिल्म आंच की शूटिंग के लिए अभिनेता नाना पाटेकर आए थे। वह उन्हें अपने साथ मुंबई ले गए और अपना कुक बना लिया। लगभग तीन साल बाद संतोष गांव वापस आए तो यहां राजस्व अभिलेखों में उन्हें मृतक दिखाकर उनकी 12 एकड़ से ज्यादा जमीन को गांव के ही लोगों ने अपने नाम करा लिया था।
संतोष के मां बाप नहीं रहे और वह तभी से ‘मैं जिंदा हूं’ बताकर संघर्ष कर रहे हैं। लोग उन्हें डेडमैन के नाम से जानते हैं। वहीं, यह फिल्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के खलीलाबाद में रहने वाले लाल बिहारी पर बनाई गई है। दरअसल, लाल बिहारी 1975 में जब एक बैंक लोन का आवेदन देने राजस्व विभाग पहुंचे, तो पता चला कि दफ्तर के कागजों में वह मर चुके हैं। उनकी सारी प्रॉपर्टी घूस लेकर उनके रिश्तेदारों के नाम कर दी गई थी। यहीं से लाल बिहारी की लड़ाई शुरू हुई और उन्होंने 20 साल बाद उन्हें इंसाफ मिला।
जीवित मृतकों के जीवन पर बनी फिल्म ‘कागज’को लेकर चल रहा विवाद अब न्यायालय में पहुंच गया है। जीवित मृतकों की लड़ाई लड़ने वाले लाल बिहारी मृतक ने फिल्म के निर्माता सलमान खान व निर्देशक सतीश कौशिक पर उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद में दीवानी न्यायालय में वाद दाखिल किया है। जिसमें उन्होंने फिल्म का नाम बिना उनकी अनुमति के बदलने समेत तमाम आरोप लगाए हैं।
जिले के लाल बिहारी मृतक को सरकारी रिकार्ड में मुर्दा घोषित कर दिया गया था। मुर्दा से जिंदा होने के लिए लाल बिहारी ने लंबी लड़ाई लड़ी। वर्षों की लड़ाई के बाद सरकारी रिकार्ड में उन्हें जिंदा घोषित किया गया। फिल्म निर्माता सतीश कौशिक ने उनके जीवन पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया। इस संबंध में सतीश कौशिक व लाल बिहारी मृतक के बीच कई समझौते भी हुए।
‘मैं जिंदा हूं’ के स्थान पर ‘कागज’ नाम से बना दी फिल्म
लालबिहारी के अनुसार निर्माता सलमान खान व निर्देशक सतीश कौशिक ने फिल्म का नाम ‘मैं जिंदा हूं’ रखने का वादा किया था, किंतु फिल्म को ‘कागज’ नाम से रिलीज कर दिया गया। मैं बुनकर व किसान का बेटा हूं जबकि फिल्म में मुझे बैंडबाजा वाला दिखाया गया है। इसके अलावा कुछ और भी आरोप लगाए गए हैं। लाल बिहारी ने बुधवार को विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी कोर्ट ध्रुव राय की अदालत में मुकदमा दर्ज करने के लिए वाद दाखिल किया। जिस पर न्यायाधीश ने सुनवाई के लिए 30 मार्च की डेट निर्धारित की है।क्या है फिल्म कागज की कहानी
मशहूर अभिनेता सलमान खान द्वारा प्रोड्यूस की गई फिल्म ‘कागज’ की गांव छितौनी थाना चौबेपुर वाराणसी निवासी संतोष मूरत सिंह की जिंदगी पर आधारित है। जब वह 18 साल के थे तब वर्ष 1995 में उनके गांव में फिल्म आंच की शूटिंग के लिए अभिनेता नाना पाटेकर आए थे। वह उन्हें अपने साथ मुंबई ले गए और अपना कुक बना लिया। लगभग तीन साल बाद संतोष गांव वापस आए तो यहां राजस्व अभिलेखों में उन्हें मृतक दिखाकर उनकी 12 एकड़ से ज्यादा जमीन को गांव के ही लोगों ने अपने नाम करा लिया था।
संतोष के मां बाप नहीं रहे और वह तभी से ‘मैं जिंदा हूं’ बताकर संघर्ष कर रहे हैं। लोग उन्हें डेडमैन के नाम से जानते हैं। वहीं, यह फिल्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के खलीलाबाद में रहने वाले लाल बिहारी पर बनाई गई है। दरअसल, लाल बिहारी 1975 में जब एक बैंक लोन का आवेदन देने राजस्व विभाग पहुंचे, तो पता चला कि दफ्तर के कागजों में वह मर चुके हैं। उनकी सारी प्रॉपर्टी घूस लेकर उनके रिश्तेदारों के नाम कर दी गई थी। यहीं से लाल बिहारी की लड़ाई शुरू हुई और उन्होंने 20 साल बाद उन्हें इंसाफ मिला।
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