4 May 2019
5 महीनों में कांग्रेस के हाथ से निकलते क्यों दिख रहे 3 अहम राज्य?
प्रियंका गांधी ने पत्रकार द्वारा पूछे गये प्रश्र के उत्तर में कहा था कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में वोटकटवा पार्टी है। अपनी बहन की इस प्रतिक्रिया को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इंडोर्स कर दिया है।
जिन प्रांतों में या जिन सीटों मेें लोकसभा के चुनाव संपन्न हो चुके हैं उन स्थानों के कांग्रेस नेता अमेठी और रायबरेली की धोक खाने जरूर जा रहे हैं। उनके लिये ये दोनों स्थान सर्वाधिक पवित्र स्थल है, अयोध्या या जेरूसलम से भी अधिक महत्व के पूजनीय स्थल उनके लिये बन चुके हैं।
5 महीनों में कांग्रेस के हाथ से निकलते क्यों दिख रहे 3 अहम राज्य?
- 5 महीनों में ही राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़ में स्थितियां बदलती दिखाई दे रही हैं
- असेंबली चुनाव में जो सत्ता विरोधी लहर थी, वह रुस् चुनाव आते–आते काफी खत्म हुई है
- वैसे भी हिंदी पट्टी के इन तीनों राज्यों में बीजेपी का आधार हमेशा मजबूत रहा है
- बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद बना माहौल, राष्ट्रवाद जैसी मुद्दे चुनाव में फैक्टर बन रहे हैं
कुछ ‘गणित विशेषज्ञÓ राज्यों में बने गठबंधनों के ‘वोट–गणितÓ के हिसाब से बताते हैं कि इतने वोट सपा के इतने बसपा के बराबर इतने गठबंधन के यानी कि यूपी में भाजपा गई समझो। हर राज्य में स्थानीय क्षत्रप अपनी ताकत बनाए रखने के लिए अस्थायी गठबंधन बनाकर अपने वोट एक दूसरे को ट्रांसफर कर मुख्य स्पर्धी यानी भाजपा को हराना चाहते हैं। और अपनी जीती सीटों के हिसाब से चुनाव के बाद हिसाब–किताब करना चाहते हैं।
मोदी पक्ष मानता है कि विपक्ष के पास न एक निश्चित पीएम चेहरा है, न कोई अखिल भारतीय गठबंधन है, न केंद्रीय कमान सिस्टम है।
रही वोट के गणितीय प्रमेय की बात तो हमारा मानना है कि दो जमा दो बराबर चार की तरह लोग व्यवहार नहीं करते। फिर जातिगत अस्मिताओं के गणित सतत गतिशील यानी अवसरवादी होते हैं। और, अपने चुनावों में सिर्फ गणित ही नहीं, केमेस्ट्री भी काम किया करती है। मोदी का समर्थक हुए बिना भी हम इसे ‘मोदी रसायनÓ कह सकते हैं। इस चुनाव में केमेस्ट्री पिछले चुनाव से कुछ अधिक काम कर रहा है।
पिछले पांच साल में मीडिया में जिस अनुपात में मोदी देशभक्ति, राष्ट्रवाद, ताकत, मजबूती और मजबूत सरकार के प्रतीक बने और बनाए गए हैं, उसी अनुपात में विपक्ष देशविरोधी, राष्ट्रविरोधी और टुकड़े–टुकड़े गैंग का प्रतीक बनाया गया है। यह धार्मिक ध्रुवीकरण से अलग राजनीतिक ध्रुवीकरण है। मोदी माने एकता, अखंडता, मजबूती! मोदी माने छप्पन इंच का सीना, ताकत, सुरक्षा, सर्जिकल स्ट्राइक, घर में घुस के मारा, मोदी की सेना यानी मोदी ने मारा यानी सुरक्षा की गारंटी।
‘मोदी केमेस्ट्रीÓ इसी तरह की ‘सांस्कृतिक राजनीतिÓ से बनने वाले ‘भावनात्मक रसोंÓ से बना है। इसके साथ जोडि़ए पांच साल में मोदी द्वारा टारगेटेड समूहों के लिए चलाई गई हितकारी योजनाएं जैसे जनधन योजना, मुद्रा लोन योजना, उज्वला योजना, घर तथा टॉयलेट योजना तथा हर चार महीने में दो हजार रुपये गरीब किसान तक पहुंचाना और आयुष्मान योजना आदि इत्यादि। ऐसी योजनाओं के लाभ उठाने वाले लोगों का आंकड़ा हमारे हिसाब से करीब बीस करोड़ बैठता है, इसमें आप भाजपा के सदस्यों की संख्या दस करोड़ को मिला दें, तो यह तीस करोड़ हो जाती है। अगर इनमें से बीस फीसदी डिफाल्टर निकाल दें, तो भी पच्चीस करोड़ के करीब लोग भाजपा की योजनाओं के सीधे लाभार्थी कहे जा सकते हैं, भले रोजगार न बढा़ हो या किसान परेशान हों! जिनको लाभ हुआ है, वे मोदी को अपने वोट से ‘थैंक्स गिविंगÓ तो कर ही सकते हैं।
इस कड़वे सत्य से आंख मूंद कर कब तक काम चलेगा? इन योजनाओं पर मोदी का देशप्रेमी छाप केमेस्ट्री उन तमाम नाराजियों को नरम कर देता है, जो बेरोजगार युवाओं या किसानों के बीच मौजूद कहा जाता है। लेकिन मोदी के प्रति हमारा क्रोध और घृणा हमें इस कदर अंध कर चुकी है कि हम उनके किए धरे को भी जीरो मानकर चलते हैं और देशप्रेम या राष्ट्रवाद या धार्मिक विमर्शों की हम सिर्फ अंधष्ट्रवादी, पिछड़ा पुराणवादी और रिग्रेसिव मानकर निंदा कर देते हैं। हम यह नहीं देख पाते कि हमारे बरक्स भी कोई विचार है, जो दिनरात काम कर रहा है और इन दिनों वही लोकप्रिय है, क्योंकि कमजोर जनता हमेशा ताकतवर और मजबूत आदमी पसंद करती है! उक्त सांस्कृतिक राजनीति की काट अभी तक किसी के पास नहीं नजर आती। मोदी केमेस्ट्री का यह अतिरिक्त एडवांटेज है।