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काशी के इस मोहल्ले में 90 साल पहले लगी थी संघ की पहली शाखा, प्रथम सर संघचालक ने रखीं थी नींव

वाराणसी के धनध्यानेश्वर मोहल्ले में 90 वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पहली शाखा का शनिवार को को वार्षिकोत्सव मनाया गया। यहां प्रथम सर संघ चालक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने इसकी नींव रखी थी। गंगातट से लगे इस स्थान पर शनिवार को स्थापना दिवस मनाया गया।संघ के काशी प्रांत प्रचारक रमेश भाई के साथ संघ की टोली इकट्ठा हुई और विविध कार्यक्रम हुए। प्रांत प्रचारक ने कहा कि यह स्थान हमारे लिए तीर्थ है। इसी स्थान से काशी संघ का केंद्र बना और मराठा क्षेत्र से पूरे उत्तर भारत का संबंध और प्रगाढ़ हुआ। फिर पूरे उत्तर भारत में एक एक कर संघ की शाखाएं विस्तार लेती गईं।उन्होंने बताया कि वीर सावरकर एवं उनके भाई बाबू राव सावरकर डॉ. साहब के विचारों से बहुत प्रभावित थे। बाबू राव सावरकर चिकित्सा के लिए काशी आए। यहां तब के प्रख्यात वैद्य त्रयंबक शास्त्री का नाम देश के कोने कोने में था। कुछ दिन प्रवास के दौरान सावरकर का संपर्क समाज के विभिन्न वर्गों से होने लगा और संघ की शाखा के संस्कारों से लोगों को अवगत कराया। स्थानीय लोगों की जिज्ञासा देख उन्हें प्रसन्नता हुई। लोग शाखा प्रारंभ करने को उतावले होने लगे। सावरकर ने पत्राचार कर डॉ. हेडगेवार को काशी आने का आमंत्रण भेजा। डॉ. साहब 1931 में काशी पहुंच गए। 13 मार्च को रतन फाटक स्थित अमृत भवन के निकट धनध्यानेश्वर मंदिर के पास के मैदान में शाखा लगी।बाढ़ आ जाने के कारण शाखा कभी ब्रह्माघाट या बिंदु माधव माधव मैदान और अब फणनवीस बाड़ा में लगती है। द्वितीय सर संघ चालक गुरुजी, भाऊराव देवरस, माधवराव देशमुख भी इस शाखा में आते रहे। कार्यक्रम में भाग संचालक वीरेन्द्र, मोहन, माधव जनार्दन रटाटे, प्रांत सर कार्यवाह राकेश तिवारी, जयंतीलाल शाह, रजत प्रताप, रत्नदीप, आशीष, जितेंद्र, धर्मराज मान आदि मौजूद रहे।

वाराणसी के धनध्यानेश्वर मोहल्ले में 90 वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पहली शाखा का शनिवार को को वार्षिकोत्सव मनाया गया। यहां प्रथम सर संघ चालक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने इसकी नींव रखी थी। गंगातट से लगे इस स्थान पर शनिवार को स्थापना दिवस मनाया गया।

संघ के काशी प्रांत प्रचारक रमेश भाई के साथ संघ की टोली इकट्ठा हुई और विविध कार्यक्रम हुए। प्रांत प्रचारक ने कहा कि यह स्थान हमारे लिए तीर्थ है। इसी स्थान से काशी संघ का केंद्र बना और मराठा क्षेत्र से पूरे उत्तर भारत का संबंध और प्रगाढ़ हुआ। फिर पूरे उत्तर भारत में एक एक कर संघ की शाखाएं विस्तार लेती गईं।