उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। अब 10 मार्च को होने वाली विधायक दल की बैठक में नए मुख्यमंत्री के नाम पर विचार-विमर्श किया जाएगा। अपने ही मंत्रिमंडल के चार मंत्रियों, एक दर्जन से ज्यादा विधायकों और कार्यकर्ताओं की भारी नाराजगी को रावत संभाल नहीं पाए और आखिरकार उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। कथित तौर पर पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी की वजह त्रिवेंद्र सरकार में उनका कोई काम नहीं होने को माना जा रहा है। रावत से नाराज पार्टी कार्यकर्ताओं ने उनके खिलाफ झंडा बुलंद कर रखा था और पार्टी आलाकमान को लगातार इस बात की जानकारी दी जा रही थी कि अगर रावत को नहीं हटाया गया तो चुनाव में पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है। अंततः पार्टी ने उन्हें हटाने का निर्णय कर लिया।
हर जगह यही शिकायत
लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं की यह परेशानी केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं है। केंद्र से लेकर भाजपा शासित लगभग हर राज्य के कार्यकर्ताओं की यही शिकायत रहती है कि उनकी ही सरकार में उनकी बात नहीं सुनी जाती है। वे अपनी ही सरकार के मंत्रियों, सांसदों या विधायकों से कोई काम करवाना चाहते हैं तो उनकी अनदेखी की जाती है। अगर किसी आवश्यक काम के लिए भी मंत्रियों से संपर्क किया जाता है तो उनकी गहरी उपेक्षा की जाती है।कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिस जनता से उन्होंने चुनाव के समय पार्टी के लिए वोट मांगा होता है, सरकार आने पर उनकी अपेक्षा होती है कि उनकी उचित शिकायतों पर पार्टी या सरकार से उन्हें सहयोग मिलेगा। लेकिन जब इन मतदाताओं को उचित सहयोग नहीं मिल पाता है, तो उन्हें भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है और वे बाद में उनसे कुछ कहने के काबिल नहीं बचते।उत्तर प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता का कहना है कि योगी आदित्यनाथ सरकार शीर्ष स्तर पर बहुत अच्छा काम कर रही है और जनता के बीच इनकी खूब प्रशंसा भी हो रही है। लेकिन जहां तक कार्यकर्ताओं की बात है, यहां भी उनकी जमकर उपेक्षा की जा रही है।पार्टी कार्यकर्ताओं के द्वारा किसी काम के लिए कहे जाने पर उन्हें गलत दृष्टि से देखा जाता है। नेता के मुताबिक, इस मामले में अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ता समाजवादी पार्टी को ज्यादा बेहतर दृष्टि से देखते हैं, जो किसी भी स्थिति में अपने कार्यकर्ताओं के साथ खड़ी रहती हैं। लेकिन यहां अपनी ही पार्टी की सरकार में अपनी ही बात नहीं सुनी जाती है, इससे कार्यकर्ताओं के मन में भारी निराशा पैदा होती है।हालांकि, उत्तर प्रदेश के ही एक प्रवक्ता स्तर के नेता ने को बताया कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा न हो, इसके बारे में संगठन के उच्च स्तर से निर्देश दिए गए हैं। हर कार्यकर्ता के सही काम को कराने की कोशिश की जाती है, लेकिन पार्टी किसी भी कीमत पर राज्य में ‘ट्रांसफर उद्योग’ नहीं पनपने देना चाहती और इसी मामले में पिछली सरकारों से खुद को अलग दिखाना चाहती है, यही कारण है कि कई बार कार्यकर्ताओं को लगता है कि उनकी बात नहीं सुनी जा रही है। लेकिन यह बात पूरी तरह सही नहीं है। उन्होंने कहा कि सही मामलों में कार्यकर्ताओं के काम को कराने की कोशिश की जाती है।
अमित शाह के सामने भी रखी थी बात
पार्टी कार्यकर्ताओं की यह शिकायत नई नहीं है। इसके पहले भी यह बात उठती रही है। वर्तमान गृहमंत्री और तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के सामने एक बैठक में पार्टी के एक कार्यकर्ता ने यह बात रखी थी कि सरकार के हर काम अधिकारियों के माध्यम से किये जा रहे हैं और नौकरशाही भारी पड़ रही है। अगर उन कार्यकर्ताओं के कहने से किसी गरीब व्यक्ति को एक आवास या गैस कनेक्शन तक नहीं दिया जाता है तो बाद में वे उन्हीं मतदाताओं के सामने वोट मांगने किस मुंह से जाएंगे। शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं की इस बात को गंभीरता से सुना और इस पर उचित निर्देश देने का आश्वासन भी दिया था।इस नेता का कहना है कि कार्यकर्ताओं की इस नाराजगी को दूर करने के लिए शीर्ष स्तर से निर्देश भी दिया गया था, लेकिन यह निर्देश जमीन पर नहीं उतरा। यही कारण है कि कार्यकर्ताओं में भारी निराशा पैदा हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व के कारण सभी कार्यकर्ता चुप हैं, लेकिन यह स्थिति उत्तराखंड की तरह कभी भी विस्फोटक बन सकती है।
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