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Editorial : रूस ने लगाए भारत माता की जय के नारे भारतीय सैनिकों के पाक को वॉलीबॉल मैच में हराने पर

स्वामी विवेकानंद को प्रमुख रूप से 11 सितंबर 1893 में शिकागो में अपने भाषण की शुरूआत ‘मेरे अमेरिकी भाईयों और बहनों ‘ के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।
अफसोस है कि हमारे यहॉ के कांग्रेस ने और कुछ विपक्षी नेताओं ने हमारी सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर भी प्रश्र चिन्ह लगाये थे। मणिशंकर अय्यर और नवजोत सिद्धू सोनिया गंाधी और राहुल गांधी के संदेशवाहक बनकर किस प्रकार से भारत का भारत की सरकार का भारत की सेना का अपमान किये हैं इसकी चर्चा मीडिया में हो चुकी है।
हमारे देश में जेएनयू तथा अन्य कुछ वामपंथी प्रभावित शिक्षण संस्थाओं में वंदे मातरम और राष्ट्रध्वज फहराने का भी विरोध होते रहा है।
कश्मीर में पाकिस्तान और आईएसआई के झण्डे लहराये जाते हैं। उनसे संबंधित आतंकवादी घटनाएं भी हो रही है। बावजूद इसके राहुल गांधी ने जर्मनी में आईएस को सर्टीफिकेट देते हुए कहा था कि भारत में बेरोजगारी होने से इसका जन्म हुआ है।
क्या हमने कभी सुना है कि भारत का तिरंगा पाकिस्तान में भी फहराया गया है? सिर्फ १९६५ में ही भारत की सेना ने लाहौर की धरती पर भारत का तिरंगा ध्वज फहराया था।
उन्होंने अपने भाषण में कहा था अमेरिकी भाईयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है। मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं। सभी जातियों और संप्रदायों की तरफ से लाखों करोड़ो हिन्दुओं का आभार व्यक्त करता हूं।
ठीक इसके विपरीत कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी अमेरिका में जाकर भारत में हो रहे स्त्रियों पर     अपराधिक घटनाओं का दोष भारतीय संस्कृति को देते हुए कहा कि इससे समझा जा सकता है कि इसके लिये भारतीय संस्कृति जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस प्रमुख ने ‘विदेशी धरती पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब की है और उसे नीचा दिखाया है.Ó
आज का एक समाचार है : भारतीय सैनिकों के पाक को वॉलीबॉल मैच में हराने पर रूस ने किया चीयर, लगाए भारत माता की जय के नारे। ठीक इसके विपरीत हमारे यहॉ कांग्रेस के और कुछ विपक्षी पार्टियों के नेता तुष्टिकरण की नीति पर चलते हुए भारत माता की जय के नारे को भी सांप्रदायिक करार देते हैं।
2 मार्च को बंगलादेश में हुए एशिया कप क्रिकेट मैच में भारत-पाक टीमों का मुकाबला हुआ था। इस मैच के दौरान बाईपास स्थित स्वामी विवेकानंद सुभारती यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में कश्मीरी स्टूडेंट्स पर आरोप था कि उन्होंने मिठाई बांटी और पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाए। इस दौरान कश्मीरी स्टूडेंट्स की यूनिवर्सिटी के दूसरे छात्रों के साथ हल्की झड़प भी हुई थी। यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन को जब इस घटना की खबर मिली तो घटना में आरोपित सभी 66 कश्मीरी छात्रों को निलंबित कर हॉस्टल से निकाल दिया गया था। उन पर देशद्रोह का भी मुकदमा दायर हुआ था और ११ स्टूडेंट को कॉलेज से निकाल भी दिया गया था।
इसके बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उन कश्मीरी छात्रों का बचाव करने का दुस्साहस कुछ नेताओं ने शुरू कर दिया। इसके बाद लोकसभा के चुनाव भी आने वाले थे। इसके मद्देनजर उन कश्मीरी छात्रों पर से मुकदमे भी वापस ले लिये गये। उत्तरप्रदेश भाजपा के उस समय के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा भी था कि चुनाव के पहले अखिलेश सरकार ने यह  कदम वर्ग विशेष का वोट हासिल करने के उद्देश्य से उठाया है।
वंदे मातरम और राष्ट्रगान का अपमान करने का  एक चलन सा अलगाववादी तत्वों ने ही नहीं बल्कि हमारे यहॉ के कुछ विपक्षी नेताओं में भी हो गया है।
7 सितंबर २००६ को वंदे मातरम शताब्दी समारोह का आयोजन उस समय के मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने ही किया था। परंतु तुष्टिकरण के वशीभूत होकर उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी जानबूझकर उस समय संसद से अनुपस्थित रहे थे।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दरमियान एक रैली के दौरान राहुल गांधी ने वंदे मातरम को एक लाइन में खत्म करने का आदेश रैली के आयोजक कांग्रेस के नेताओं को दिया था।
हमारे यहॉ के नेताओं को यह समझ लेना चाहिये कि भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अब राष्ट्रवादी जनता सहन नहीं करेगी। इसलिये  रूस के लोगों ने भारत माता के जो नारे लगाये उससे राहुल गांधी को सबक लेना चाहिये और विदेश की धरती पर या भारत में भारत का भारत की संस्कृति का, भारत की एकता के प्रतीको को अपमान नहीं करना चाहिये।