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कसपुर को कहते हैं शिव की नगरी, यहां खेत-खलिहानों में भी मिलते हैं शिवलिंग

झारखंड जंगलों और पहाड़ों का राज्य है। प्रारंभिक समय से ही यह तपोभूमि रही है। साधु-संतों ने इस क्षेत्र को तपस्या के लिए चुना है। इस क्षेत्र में शिव और शक्ति की अराधना के प्रमाण मिलते रहे हैं। दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र के लोहरदगा में शिव साधना के कई ऐतिहासिक प्रमाण मिलते रहे हैं। मुंडा, खेरवार जैसी जातियां शिव की साधक रही है।

यही कारण है कि इस क्षेत्र में शिव साधना यहां की पहचान रही है। शिव साधना के प्रमाण का आलम यह रहा है कि यहां शिवलिंग सिर्फ मंदिरों में नहीं, बल्कि खेत और खलिहान में भी मिलते रहे हैं। इतिहास के जानकार बताते हैं कि इस क्षेत्र में पाए जाने वाले शिवलिंग छठी शताब्दी से लेकर 14 शताब्दी तक के रहे हैं। लोहरदगा जिले के भंडरा, कुडू, लोहरदगा, सेन्हा, किस्को आदि क्षेत्र में कई ऐतिहासिक शिव साधना स्थल रहे हैं।

लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के कसपुर गांव में खेत खलिहान, पहाड़ों में शिवलिंग मिल जाते हैं। इस क्षेत्र को शिव की नगरी कहा जाता है। जाने कब कहां से शिवलिंग मिल जाए, यह कोई नहीं जानता। सदियों से यहां शिव की पूजा होती आई है। लोगों का मानना है कि कण-कण में यहां शिव का वास है। इस क्षेत्र को लोग शिव की नगरी कहते हैं। यह कभी शिव साधकों की प्रमुख स्थली रही होगी। आज भी यहां पर शिव नाम का ही जाप होता है। भंडरा गांव के कसपुर, भंडरा के खेत, खलिहान और पहाड़ों में भी शिवलिंग बिखरे पड़े हैं।

यही कारण था कि यहां पर शिव की साधना के प्रमाण हर स्थान पर मिलते हैं। इतिहास के जानकारों का कहना है कि लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड में भगवान राम की माता कौशल्या के राज्य की राजधानी थी। भंडरा के कसपुर गांव में आज भी पुराने जमाने के किले के अवशेष व खेतों की जुताई में पुराने जमाने के सिक्के व बर्तनों के अवशेष मिलते हैं।

कसपुर गांव में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु के हिरण्यकश्यप अवतार की पत्थर में उकेरी प्रतिमा देखने को मिलती है। इसके साथ ही भंडरा के ऐतिहासिक अखिलेश्वर धाम का तीन फीट व नीले रंग के शिवलिंग शेष स्थानों पाए जाने वाले शिवलिंग से अलग है।