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हमारे देश की राजनीति में हमेशा ही श्रेय लूटने की होड़ मची रहती आई है। राजनीति को यह रोग स्वतंत्रता मिलने के बाद से ही लगा हुआ है। दरअसल, आजादी के बाद से अब तक नेता येन-केन-प्रकारेण देश की तरक्की का सेहरा अपने सिर बांधने के प्रयास करते रहे हैं। मगर ऐसे नेताओं की भीड़ में एक राजनेता ऐसे भी हुए, जिन्होंने स्वयं को श्रेय लेने से सदैव दूर रखा। यहां तक कि जब परमाणु परीक्षण के समय पूरे देश ने उनको इस साहसिक फैसले का श्रेय देना चाहा, तब भी उन्होंने भरे सदन में कह दिया- ‘यह मुझ अकेले का काम नहीं था, ये उन हजारों लोगों का काम है, जिनकी कड़ी मेहनत और असीम धैर्य से यह संभव हुआ। बधाई उन्हें दीजिए।”
किस्सा सन् 1998 का है। तब अटलबिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। उनकी साहसिक सहमति से ही उस वर्ष राजस्थान स्थित पोखरण रेंज में भारत ने जबरदस्त परमाणु परीक्षण किए थे। परीक्षण का निर्णय लेना पूरी तरह से प्रधानमंत्री की सूझबूझ, रणनीति और साहस पर ही निर्भर था, क्योंकि अमेरिका सहित दुनिया के तमाम ताकतवर देश भारत को ऐसे किसी परीक्षण से रोकना चाहते थे। अटलजी ने फैसला लिया और हमारे वैज्ञानिकों ने सफल परमाणु विस्फोट कर दुनिया को बता दिया कि भारत की क्या ताकत है।
परीक्षण के बाद 29 मई, 1998 को लोकसभा में इस पर चर्चा हुई, जिसमें सबने अटलजी को बधाई दी। इस पर अटलजी ने कहा- ‘यह परीक्षण कोई एक-दो दिन में नहीं हो गया। ऐसा भी नहीं कि मैंने कहा और रातोंरात सबकुछ तैयारी हो गई। यह पिछले पचास साल का अनुसंधान, अन्वेषण, कठोर परिश्रम और विपरीत स्थितियों में किए गए कामों का प्रतिफल है। इसका श्रेय मुझे नहीं, हमारे महान वैज्ञानिकों, सेना के जवानों और हर उस व्यक्ति को दीजिए, जिसने इसमें अपना जीवन खपा दिया।’ इस तरह अटल जी ने बड़ी विनम्रता से श्रेय लेने से इन्कार कर दिया। उनका भाषण सुनकर सदन का हर सदस्य उनके प्रति सम्मान से भर गया। विपक्षियों ने भी खड़े होकर ताली बजाई। वस्तुत: कोई व्यक्ति ऐसी उदारता से महान बनता है।
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