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पारंपरिक मिट्टी के दीये के साथ-साथ अब बाजार में मिल रहे गोबर के दीये

अनलाक-5 में मिली राहत के बीच मजदूर और मेहनतकश वर्ग के लोग अपनी आर्थिक स्थिति को संभालने में जुटे है। दीपावली त्योहार को लेकर इन दिनों कुम्हार मिट्टी के दीये बनाने में जुटे हुए है। बीते छह महीनों से लाकडाउन में ग्राहकों को तरसे कुम्हार अब बाजार में बिकने के लिए पहुंचे गोबर से दीयों को लेकर चिंतित है। अंचल के कुम्हार पहले चाइना के उपकरणों की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता के चलते अपने वजूद को बचाने जूझ रहे थे, अब उन्हें गोबर के दीयों से प्रतिस्पर्धा करनी होगी।

टाटीबंध निवासी बसंत प्रजापति ने कि शासन की गोठान योजना के तहत स्व सहायता समूह की महिलाएं बड़ी संख्या में गोबर के दीये बना रही है। ऐसे में दीपावली त्योहार में यह दीये बाजार में बिकने के लिए पहुंचेंगे। हम पारंपरिक रुप से मिट्टी के दीये बनाते है। हमें इन गोबर के दीयों से बाजार में मुकाबला करना होगा। इससे पहले की दीपावली में हमें चाइना बाजार की आकर्षक और रंगबिरंगी लाइटों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती थी। भारत-चाइना में उपजे विवाद के बाद केंद्र सरकार ने चाइनीज एप पर प्रतिबंध लगा दिया। वहीं व्यापारियों ने चीनी उत्पादों से तौबा कर ली। ऐसे में कुम्हारों को उम्मीद थी कि इस बार दीपावली में अच्छा व्यापार होगा। मिट्टी के दीयों का कारोबार राजधानी में व्यापार स्तर पर होता है। राजधानी रायपुर के प्रमुख बाजारों में आसपास के दर्जनों गांवों के कुम्हार मिट्टी के दीये बिकने के लिए पहुंचते है। पुरानी बस्ती, मंगलबाजार, आमापारा बाजार, स्टेशन रोड, गुढ़ियारी, कुशालपुर, बूढ़ातालाब, कालीबाड़ी चौक में गांवों से कुम्हार मिट्टी के दीये लेकर पहुंचे है।