पर प्रकाश डाला गया
- धनतेरस पर होती है धन के देवता कुबेर की पूजा-आरती
- बेस नदी से दूसरी शताब्दी की यह अद्भुत मूर्ति मिली
- कभी विदिशा के धनाढ्य व्यापारी करते थे अनोखी पूजा
अजय जैन, विदिशा (धनतेरस 2024)। देश के सबसे प्राचीन शहरों में से एक विदिशा में धन के देवता कुबेर की 12 फीट ऊंची बलुआ पत्थर की प्रतिमा शिखर मुद्रा में है। स्थानीय पुरातत्व संग्रहालय के मुख्य द्वार पर स्थापित यह प्रतिमा अब तक सबसे प्राचीन प्रतिमाओं में से एक है।
पुरातत्वविद् के अनुसार, दूसरी शताब्दी की यह प्रतिमा देश की सबसे उत्तम प्रतिमा है। धनतेरस पर कुबेर देवता के दर्शन का विशेष फल माना गया है। करीब 12 फुट ऊंचा और ऊंचा फुट चौड़ा कुबेर की यह मूर्ति एक ही पत्थर से बनी है।
इस प्रतिमान में कुबेर सिर पर पगड़ी पहने नजर आती हैं। उनका कंधा उत्तर की ओर, कानों में कुंडल और गले में कंठा धारण किये हुए हैं। प्रतिमा के एक हाथ में भी डंडा है, जिसे धन की पोटली माना जाता है।
मूर्तियों के संग्रहालय में रखे जाने के कारण यहां पूजा की अनुमति नहीं है, इसलिए घर में पूजा के बाद कुबेर की मूर्तियों के दर्शन संग्रहालय में रखे जाते हैं। कुबेर की पूजा का विशेष फलदायक मंत्र बताया गया है।
प्रतिमा की पूजा पर कपड़े धोते थे लोग
प्रोफेसरविद डॉ. नारायण व्यास इस प्रतिमा के मिलन का एक दिलचस्प किस्सा हैं। उनका कहना है, सैकड़ों वर्षों से यह प्रतिमा शहर से लेकर नदी के पेट वाले बेस में स्थापित की गई थी। आस-पास के लोग इसे सामान्य सॉलिड रॉक समझकर इस पर कपड़े धोते थे।
1954 में नदी का पानी कम हुआ तो मूर्ति का कुछ हिस्सा साफ नजर आया। पुरातत्व विभाग की टीम प्रतिमान को सर्किट हाउस ले आई। बाद में जब संग्रहालय संग्रहालय बनाया गया तो इसके मुख्य द्वार पर प्रतिमा स्थापित की गयी।
कभी कुबेर के उपासक थे विदिशा के व्यापार
प्रोफेसरविद डॉ. नारायण व्यास का कथन है कि प्राचीन काल में विदिशा व्यापार का बड़ा केन्द्र था। यहां हाथी दांत और लोहे का बड़ा कारोबार होता था। उस समय के लोग धन के देवता कुबेर की पूजा के लिए यह मूर्ति बनवाते थे।
उनका कहना था कि यह प्रतिमा दूसरी शताब्दी की है। ऐसी ही एक यक्षिणी की प्रतिमा भी विदिशा में मिली थी, जो कोलकाता के संग्रहालय में दर्ज की गई है।
कुबेर का ज़िक्र रामायण में भी है, जिसमें कुबेर को रावण का भाई बताया गया है। पुष्पक विमान कुबेर का था, जिसे रावण ने छीन लिया था।
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