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PM Modi ने ‘मन की बात’ में की गुमला के कुड़ुख स्कूल की चर्चा, कहा- आदिवासियों को मातृभाषा में शिक्षा देना अनूठी पहल

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ में कहा कि बदलते समय में हमें अपनी भाषाएं बचानी भी और उनका संवर्द्धन भी करना है। इस दौरान उन्होंने गुमला के सिसई प्रखंड के मलगो गांव में कुड़ुख स्कूल की चर्चा की जो मातृभाषा में बच्चों को शिक्षा दे रहा है। इस स्कूल में 300 बच्चे पढ़ते हैं।

01 Jan 2024

सिसई (गुमला) : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ में गुमला के सिसई प्रखंड के मलगो गांव में कुड़ुख भाषा में बच्चों को शिक्षा देने के लिए चल रहे स्कूल की सराहना की। कहा- बदलते समय में हमें अपनी भाषाएं बचानी भी और उनका संवर्द्धन भी करना है। कहा कि अब मैं आपको झारखंड के एक आदिवासी गांव के बारे में बताना चाहता हूं। इस गांव ने अपने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने के लिए एक अनूठी पहल की है। गुमला के मलगो गांव में स्थित कार्तिक उरांव आदिवासी कुड़ुख स्कूल नाम के इस विद्यालय में बच्चों को वहां की मातृभाषा शिक्षा दी जा रही है।

कुडुख भाषा की लिपि

यहां 300 बच्चे पढ़ते हैं। कुडुख भाषा की अपनी लिपि भी है, जिसे ‘तोलोंग सिकी’ के नाम से जाना जाता है। यह भाषा विलुप्त होती जा रही थी, जिसे बचाने के लिए इस समुदाय ने अपनी भाषा में बच्चों को शिक्षा देने का फैसला किया। स्कूल को शुरू करने वाले अरविंद उरांव कहते हैं कि गांव के बच्चों को अंग्रेजी और कई को हिंदी भाषा समझने में भी दिक्कत होती थी।इसलिए उन्होंने गांव के बच्चों को मातृभाषा में पढ़ाना शुरू किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे देश में कई बच्चे भाषा की मुश्किलों की वजह से पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते थे। ऐसी परेशानियों को दूर करने में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से भी मदद मिल रही है। बता दें कि कुड़ुख उरांव जनजाति समुदाय के बीच बोली जानेवाली भाषा है। यह झारखंड के गुमला, सिमडेगा, रांची, समेत कुछ अन्य इलाकों में भी बोली जाती है।

चंदे से निजी तौर पर चलता है स्कूल

प्रधानमंत्री द्वारा कुड़ुख स्कूल की चर्चा किए जाने से मलगो समेत पूरे सिसई औऱ गुमला क्षेत्र के लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। आदिवासी शिक्षक अरविंद उरांव भी बेहद प्रसन्न हैं। दूसरी ओर कुड़ुख भाषा बोलने वाले समाज के लोग भी खुश हैं कि पीएम ने उनकी सुध ली। मलगो गांव में निजी तौर पर संचालित इस विद्यालय की स्थापना 2008 में अरविंद उरांव ने की थी। इसके लिए ग्रामीणों ने ढाई एकड़ भूमि दान में दी थी। उन्होंने विद्यालय चलाने के लिए फंड की व्यवस्था भी अगल-बगल के ग्रामीणों से चंदा इकट्ठा कर की है। वर्तमान में यहां आठवीं तक की पढ़ाई होती है।