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Ghosi Election Result: चुनावों में खाली हाथ रही बसपा, मूल वोटर छिटके, नोटा की अपील भी हवा में उड़ी

बसपा की राजनीतिक ताकत इन चुनावों में गायब दिखी।
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार

घोसी का उपचुनाव बसपा के लिए घाटे का सौदा रहा। बसपा ने वहां अपना प्रत्याशी नहीं दिया। पहले तो वह खामोश थी लेकिन चुनाव के दो दिन पहले पार्टी ने अपने वोटरों से नोटा का बटन दबाने के लिए कहा। नोटा को मिले वोट और विजयी प्रत्याशी की जीत का अंतर यह बता रहा है कि बसपा का पारंपरिक वोट सपा के पाले में खिसक गया है। हालांकि यह अलग बात है कि नोटा को 6 निर्दलीय प्रत्याशियों से ज्यादा वोट मिले। 

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पिछले विधानसभा चुनावों में महज एक सीट में सिमट गई बीएसपी के दिन अभी भी बदले नहीं हैं। कभी यूपी की राजनीति का एक ध्रुव रही बहुजन समाज पार्टी यूपी की राजनीति में हाशिए पर खड़ी है। घोसी के उपचुनाव में बसपा ने अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया था। प्रत्याशी कांग्रेस की तरफ से भी नहीं आया था लेकिन कांग्रेस ने बकायदा पत्र लिखकर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को अपना समर्थन देने की घोषण की थी। ऐसा ही राष्ट्रीय लोकदल ने भी किया था।

बसपा ने साफ किया था कि वह ना तो एनडीए के साथ है और ना ही इंडिया गठबंधन के। चुनाव के दो दिन पहले बसपा ने नया फरमान जानी किया। पार्टी ने कहा कि बसपाई या तो इस चुनाव से दूर रहें या नोटा दबाएं। बसपा ने यह फरमान पूरे भरोसे के साथ जारी किया था क्योंकि घोसी में बसपा समर्थकों की बड़ी संख्या है। 

बसपा को मिलते रहे हैं वोट

बसपा के उम्मीदवारों को यहां पिछले कई चुनावों में लगभग 50 हजार वोट मिलते रहे हैं। बीते तीन चुनाव के नतीजे बताते हैं कि करीब 90 हजार से अधिक दलित मतदाताओं वाली सीट पर बसपा की पकड़ मजबूत है। वर्ष 2022 में यहां बसपा प्रत्याशी वसीम इकबाल को 54,248 मत मिले थे।

 वर्ष 2019 के उपचुनाव में बसपा के अब्दुल कय्यूम अंसारी को 50,775 वोट और 2017 में बसपा के अब्बास अंसारी 81,295 मत मिले थे। ऐसे में बसपा के पास इस सीट पर खेल को बनाने और बिगाड़ने की पूरी क्षमता थी। लेकिन चुनाव परिणाम बताते हैं कि ऐसा हुआ नहीं। बसपा के वोटरों ने नोटा का बटन दबाने के बजाय कोई एक दल को वोट देना सही समझा। 

सपा को शिफ्ट हुए वोट

इस बात की समीक्षा आने वाले दिनों में होगी कि बसपा से छिटका हुआ वोट कहां पर किस पार्टी को गया लेकिन सपा प्रत्याशी की बड़ी जीत यह बता रही है कि बसपा का ज्यादातर वोटर सपा की तरफ शिफ्ट हुआ। अखिलेश यादव अपने पूरे चुनाव के दौरान अपने नारे पीडीए के जरिए दलितों को अपने साथ जोड़ने की पूरी कोशिश भी कर रहे थे। सुधाकर सिंह की जीत का अंतर बताता है कि वह बहुत हद तक सफल रहे हैं। 

नोटा को मिले कम वोट, पर निर्दलीयों से ज्यादा 

इस उपचुनाव में दो पार्टियों के बीच में सीधी लड़ाई थी। दो ध्रुव में बंटे इस चुनाव में तीसरे प्रत्याशी के लिए जगह वैसे भी नहीं थी। बसपा के द्वारा समर्थकों से नोटा की अपील करने के बाद मामला रोचक हो गया था। नोटा को कुछ वोट मिले भी। चुनाव परिणाम बताते हैं कि  छह प्रत्याशियों को नोटा से भी कम वोट मिले है। घोसी के 1725 मतदाताओं को किसी भी प्रत्याशी को वोट देने के बजाय नोटा का विकल्प चुना। वहीं छह निर्दलीय प्रत्याशियों विनय कुमार, प्रवेंद्र प्रताप सिंह, रमेश पांडेय, मुन्नीलाल चौहान, सुनील चौहान और राजकुमार चौहान को नोटा से भी कम वोट नसीब हुए।