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Allahabad High Court : राज्य विधि अधिकारियों की नियुक्ति की जांच को लेकर दाखिल याचिका खारिज

(सांकेतिक तस्वीर)
– फोटो : सोशल मीडिया

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इलाहाबाद हाईकोर्ट व लखनऊ खंडपीठ में अपर महाधिवक्ता सहित राज्य विधि अधिकारियों की नियुक्ति की जांच को लेकर दाखिल याचिका कोर्ट ने खारिज कर दी है। याचिका में कहा गया था कि सरकारी वकीलों की नियुक्ति में मानकों की अनदेखी की गई है। इसलिए सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जजों की समिति बनाकर मामले की जांच की जाए। कोर्ट ने कहा कि इसी मामले में लखनऊ पीठ में दाखिल याचिका की सुनवाई चल रही है। इसलिए यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने सुनीता शर्मा व अन्य की जनहित याचिका पर दिया है। याची अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव का कहना था कि राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में वकालत अनुभव न रखने वाले सैकड़ों वकीलों को सरकारी वकील नियुक्त किया है। जो, सुप्रीम कोर्ट के बीएस चहल केस के फैसले का खुला उल्लंघन है।

नियुक्ति करते समय उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया। सरकार अपने चहेतों की नियुक्ति कर दी। साथ ही 30 फीसदी महिला अधिवक्ताओं की नियुक्ति नियम को भी नजरअंदाज किया गया। याचिका में सेवानिवृत्त पांच न्यायाधीशों की कमेटी बनाकर वकीलों की योग्यता की जांच करने की मांग की गई थी।

अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने तर्क दिया कि वादकारी को अदालत में प्रतिनिधित्व करने के लिए अपना वकील चुनने का अधिकार है। राज्य एक वादकारी है। उसे न्यायालय के समक्ष अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए वकीलों का पैनल चुनने के लिए स्वतंत्रता है। अपर महाधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि जनहित याचिका उन अधिवक्ताओं की ओर से दायर की गई जो नियुक्ति पाने में असफल रहे। याचिका दायर करने से पहले सक्षम प्राधिकारी को प्रत्यावेदन दिया जाना चाहिए था। हालांकि, कोर्ट ने याचियों की इस चिंता से सहमति जताई कि पूरी प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और वस्तुनिष्ठ होनी चाहिए।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा यूपी राज्य व अन्य बनाम यूपी स्टेट लॉ ऑफिसर्स एसोसिएशन व अन्य में दिए गए फैसले का हवाला दिया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि राज्य सरकार महाधिवक्ता से परामर्श कर अधिवक्ता पैनल चुन सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने वादधारकों की नियुक्ति रद्द करने को सही माना था, किंतु सरकारी पैनल रद्द कर पुराने वकीलों को भुगतान करने के आदेश को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पहले से जनहित याचिका लंबित है, ऐसे में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता और याचिका खारिज कर दी।