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भारत में कोरोनावायरस का आंकड़ा 6 लाख को पार कर गया है अगले 6 से 12 महीनों में देश में चिंता, डिप्रेशन और आत्महत्या के मामले बढ़ सकते हैं, बच्चों को ज्यादा खतरा

हालांकि, केवल कोविड 19 के मरीजों की संख्या ही चिंता का कारण नहीं है। हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक, लॉकडाउन के बाद भारतीयों की मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ है। कम से कम हर पांच में से एक भारतीय मानसिक बीमारी से जूझ रहा है। 

बेरोजगारी और तनाव हो सकते हैं बड़े कारण
भारत में 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा हो गई थी। इस लॉकडाउन ने 130 करोड़ से ज्यादा लोगों के जीवन को प्रभावित किया था। इस दौरान कई बेरोजगार हुए और कई गंभीर तनाव से जूझने लगे। हालात यह हैं कि जिन लोगों ने जीवन में कभी भी मानसिक बीमारी से नहीं जूझे, वो भी इस दौरान परेशानियों का सामना कर रहे हैं। साइकेट्रिस्ट ने चेतावनी दी है कि महामारी के कारण बच्चे भी मानसिक रूप से प्रभावित होंगे।

भारत में आ जाएगा नया मानसिक संकट
हाल ही में इंडियन साइकेट्री सोसाइटी (IPS) के सर्व में पता चला है कि लॉकडाउन के बाद से मानसिक बीमारी के मामले 20 प्रतिशत तक बढ़े हैं। देश में हर पांच में से एक व्यक्ति मानसिक बीमारी से जूझ रहा है। आईपीएस ने चेतावनी दी है कि आर्थिक परेशानियों का बढ़ना, आइसोलेशन और घरेलू हिंसा के बढ़ते मामले देश में नया मानसिक संकट पैदा कर सकते हैं। इसके साथ ही आत्महत्या का जोखिम भी बढ़ जाता है। 

सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ लॉ एंड पॉलिसी की डायरेक्टर सौमित्र पठारे कहते हैं “मुझे संदेह है कि हम अब मानसिक स्वास्थ्य का असर देखना शुरू करेंगे। यह संकट काफी देर से चल रहा है और लोग भटकते जा रहे हैं।” वे कहते हैं “हम सभी में एक हद तक लचीलापन होता है, अगर तनाव ज्यादा रहा और ज्यादा वक्त तक चलता रहा तो हम इससे निपटने की हमारी क्षमता खो देंगे।”

बच्चे ज्यादा जोखिम में
मनोवैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि बढ़ती घरेलू हिंसा और आइसोलेशन के कारण बच्चों में मानसिक बीमारी बढ़ने का ज्यादा जोखिम है। सौमित्र के मुताबिक, हम जानते हैं कि बचपन में हुई परेशानियां बड़े होकर मानसिक स्वास्थ्य बिगाड़ने का कारण बनती हैं। उदाहरण के लिए, बच्चों के साथ हिंसा के मामले बढ़ सकते हैं। अगर बड़े ज्यादा तनाव में होंगे तो हो सकता है वो बच्चों के प्रति भी ज्यादा हिंसक हों।

हाल ही में हुए एक शोध में पता चला है कि लॉकडाउन के दौरान कोविड 19 के कारण आत्महत्या से सबसे ज्यादा मौत हुई हैं। सर्वे के मुताबिक, इस साल मार्च में 343 लोगों ने खुदकुशी की। इनमें से 125 लोगों की मौत का कारण संक्रमण का डर, अकेलापन, घर में कैद होना और घर वापस न जा पाना था।

एक कहानी गुरुग्राम में रहने वाली शगुन की
गुरुग्राम में रहने वाली 23 साल की शगुन कोरोनावायरस महामारी के दौरान गंभीर क्लीनिकल डिप्रेशन से जूझ रहीं थीं। हालात ऐसे थे कि उन्होंने तीन महीनों तक बाहर की हर खबर को नजरअंदाज किया और सोशल मीडिया के उपयोग से भी डर रही थीं। शगुन के लिए लॉकडाउन का मतलब था ऐसी इंटर्नशिप का मौका गंवा देना, जो उनके भविष्य के लिए जरूरी थी। 

वे बताती हैं कि मेरे लक्षण हर वक्त ऊपर नीचे जा रहे थे। अचानक मुझे कुछ पता नहीं था कि आगे क्या करना है। इसने मुझे फंसा हुआ महसूस कराया। सब कुछ बंद था और ध्यान को भटकाने का कोई रास्ता नहीं था, जिसके कारण ज्यादा नेगेटिव इमोशन पैदा हुए।

कई दिनों तक खाना नहीं खाया, दिन में 20 बार तक हाथ धोने लगीं
शगुन ने बताया कि ऐसा वक्त भी आया था जब उन्हें भूख लगना बंद हो गई थी। यहां तक कि उन्होंने 10-11 दिन तक कुछ नहीं खाया और ठीक से सोईं भी नहीं। शगुन के लिए नोवल कोरोनावायरस की चपेट में आने के डर ने परेशानियों को और भी बढ़ा दिया था। 

शगुन कहती हैं कि इसने मेरे पागलपन को और बढ़ा दिया। मैं दिन में करीब 20 बार हाथ धोने लगी और बाहर जाना बंद कर दिया। इस दौरान उनका चश्मा भी टूट गया, लेकिन कोरोना की चपेट में आने के डर के चलते वे घर से बाहर नहीं निकलीं। वे इतनी बेचेन थी कि लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार कर रही थीं, लेकिन हर बार लॉकडाउन बढ़ाने की खबर के साथ उनकी उम्मीद भी टूटती जाती थी।

भारत में शराब न मिलने के कारण भी लोगों ने की आत्महत्या
स्टडी के मुताबिक, आर्थिक परेशानी और शराब न मिलना भी मौत के बड़े कारण हैं। सौमित्र के अनुसार, जो लोग शराब न मिलने के कारण संघर्ष कर रहे हैं उनकी खुदकुशी करने की संभावना है। शुरुआती दो हफ्तों में काफी मामले ऐसे थे जहां लोगों ने शराब न मिलने के कारण सुसाइड की थी।

आगामी 6 से 12 महीनों में बिगड़ेंगे भारत के मानसिक हालात 
सौमित्र के मुताबिक, आने वाले 6 से 12 महीनों में मेंटल हेल्थ भारत में एक बड़ा संकट होगी। आर्थिक परेशानी के कारण ज्यादा लोग आत्महत्या करेंगे, शराब संबंधित परेशानियां बढ़ेंगी और कई मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े समस्याएं होंगी। हमें यह सब पहले हुए आर्थिक संकट से पता है। उन्होंने चेताया कि 2008 का काफी डाटा है जो बताता है कि आर्थिक संकट के बाद मेंटल हेल्थ के साथ क्या होता है। 

भारत में मेंटल हेल्थ केयर
2017 में पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार ने मेंटल हेल्थकेयर एक्ट की शुरुआत की थी। इसके तहत नागरिक सरकारी मदद से अपना मानसिक इलाज करा सकते हैं। सौमित्र बताते हैं कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बहुत प्रगतिशील कानून और पॉलिसी है। हमारी समस्या है इन पॉलिसी का ठीक तरह से लागू होना, खासकर सोशल सेक्टर में।

सौमित्र मेंटल हेल्थ केयर में सरकार के उठाए कदम की सराहना करते हैं। कहते हैं कि भारत में अभी भी कई लोगों को इलाज नहीं मिला है। भारत में निसंदेह बीते 10 साल में मेंटल हेल्थ केयर को लेकर काफी सुधार हुआ है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है? नहीं।