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17 माह से वेतन नहीं, कर्ज तले दबे एचईसी कर्मी

Shubham Kishore

Ranchi: भारत के सबसे बड़े औद्योगिक कॉम्प्लेक्स के कर्मचारियों का 17 माह का वेतन लंबित है. लगभग 3500 परिवार इसके कारण आर्थिक संकट में हैं. एचईसी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा हर सप्ताह पोस्टकार्ड मुहिम के माध्यम से राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को लंबित वेतन भुगतान एवं कंपनी के भविष्य पर यथाशीघ्र निर्णय लेने कि गुहार लगाई जा रही है. शभम संदेश से बातचीत में वहां के श्रमिक संघ ने बताया कि यहां ना तो वर्क ऑर्डर मिल रहा है ना ही वेतन. अगर पैसा आता भी है तो बंदर बांट हो रहा है. साथ ही उनका कहना है की अगर लंबित वेतन पर कोई निर्णय नहीं लिया गया तो वो सरकार को काला झंडा दिखाएंगे, राजभवन घेरेंगे, अनशन पर भी बैठ सकते हैं. फिर भी बात नहीं बनी तो 2024 के इलेक्शन में विरोध करेंगे.

उदय शंकर – महामंत्री एचईसी सप्लाई ठेका श्रमिक संघ

उधार लेकर जैसे-तैसे घर चल रहा है. मैनेजमेंट के साथ सरकार को भी मदद करनी चाहिए थी, लेकिन केंद्र सरकार भी कोई मदद नहीं कर रही है. बच्चों का फीस तक नहीं भर पा रहे हैं. सरकार औद्योगिक क्षेत्र में स्मार्ट सिटी कैसे बनवा रही है, यहां तो बनना ही नहीं चाहिए था.

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रमा शंकर प्रसाद, महामंत्री एचईसी मजदूर संघ

एचईसी जो कभी पूरे देश का गौरव हुआ करता था, आज वहां के कर्मी दाने-दाने को मोहताज हैं. यहां परमानेंट सीएमडी तक नहीं हैं जिसके चलते निर्णय लेने में प्रॉब्लम होता है. आप बता दीजिए की एचईसी चलेगा या बंद होगा. कई इंजीनियर रिजाइन करके यहां से जा रहे हैं, शायद सरकार यही चाहती है कि लोग खुद ही छोड़ कर चले जाएं. जब से प्रभारी सीएमडी आए हैं तब से न तो कोई वर्क ऑर्डर आया है, और ना ही कोई माल डिस्पैच हुआ है. केवल घोटाला हो रहा है.

सुनील कुमार तिवारी, उपाध्यक्ष

इंजीनियर को 17 माह और वर्कर को 13 माह से सैलरी का भुगतान नहीं हुआ है, बहुत दिक्कत है. खाने से लेकर बच्चों की पढ़ाई तक सब प्रभावित है. इसे लेकर हम पोस्टकार्ड अभियान भी चला रहे थे, लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला.

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सुनील कुमार, कर्मचारी

एचईसी को वर्क ऑर्डर नहीं मिल रहा है. यहां के प्रभारी सीएमडी नहीं चाहते हैं कि कारखाना चले. केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक कारखाना नहीं चलाना चाहती है. सब केवल यहां की जमीन हासिल करना चाहते हैं.

ऋषिकेश कुमार – सीनियर मैनेजर

हम सांसद से लेकर राष्ट्रपति तक गुहार लगा रहे हैं. जीवन यापन बहुत मुश्किल हो गया है. यहां काम करने वाला हर कर्मचारी कर्ज में डूब चुका है.