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खटिक और तुरी जाति पर शोध करायेगी सरकार

कार्मिक विभाग ने जनजातीय शोध संस्थान को भेजा पत्र
संस्थान जल्द करायेगी मानवशास्त्रीय खोज
फिलहाल तुरी एससी और खटिंग जाति ओबीसी-वन सूची में शामिल है

Kaushal Anand

Ranchi :  झारखंड सरकार राज्य में निवास करने वाले खटिक और तुरी जाति पर शोध करायेगी. इसको लेकर कार्मिक विभाग ने डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान को एक पत्र भेजा है. इसको लेकर संस्थान ने एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट निकाला है.  जिसमें शोध के लिए आवेदन आमंत्रित किये गये हैं. जल्द ही एजेंसी संस्था का चयन करेगी और शोध शुरू करायेगी. दरअसल इन जातियों को एसटी सूची में शामिल करने की मांग विभिन्न स्तरों से उठती रही है. फिलहाल खटिक राज्य में ओबीसी-वन और तुरी अनुसूचित जाति में शामिल है. शोध की रिपोर्ट आने के बाद सरकार इसको लेकर आगे का निर्णय लेगी. (पढ़ें, पीएम मोदी का अजमेर दौरा, पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर के दर्शन करेंगे, कायड़ विश्राम स्थली में विशाल जनसभा का भी संबोधन)

तीन महीने में आयेगी रिपोर्ट

खटिक और तुरी जाति  का संपूर्ण मानवशास्त्रीय विषयों पर शोध होगा. जिसमें इन जातियों के आर्थिक, सामाजिक, रहन-सहन, पूजा-पाठ, पेशा-व्यवसाय, निवास स्थान, शिक्षा, शादी-विवाह पद्वति आदि चीजें शामिल रहेंगी. तीन महीने में इसकी संपूर्ण रिपोर्ट जनजातीय शोध संस्थान को सरकार को सौंपनी है.

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बांस के अदभुत कलाकार होते हैं तुरी

तूरी जाति के लोग शिल्प कला से जुडे रहे हैं. मिट्टी कला के बाद यदि कोई कला आयी तो वह थी बांस की कला. तुरी जाति के लोग बांस के दक्ष कलाकार होते हैं. ये जाति कला के प्रेमी रही है. बांस से एक बढ़ कर एक कलाकृति बनाना इनका मुख्य पेशा रहा है. इतना ही नहीं यह जाति आवश्यकता अनुसार घरेलू कार्य, कृषि कार्य, पर्व त्योहार या संस्कार, शादियों में बांस के समान की जरूरतें पूरी करती है. तुरी के अनेक गोत्र हैं. जिसमें मइलवार, हांसदा, चरहन, बागे, सुरईन, तमगड़िया, अईद, लकड़वार, जाडी, इंदवार, सांवर आदि शामिल हैं. समाज में गोत्र के आधार पर इनका काम बंटा हुआ है. जैसे मइलवार राजा हैं. तो सुरईन ठाकुर, जो अपने समाज में कार्यों का निष्पादन करते हैं. यह छोटानागपुर के लगभग सभी तरह के पर्व-त्योहार मनाते हैं. ये अपने कुल देवता की पूजा करते हैं. सावन सप्तमी के दिन ये पूजा करते हैं. बड़ पहाडी अर्थात खूंटी पूजा, देवत्थान, सोहराई आदि मनाते हैं. ये बकरे, मुर्गे की बलि और पूर्वजों को तपावन यानी हड़िया बनाते और चढ़ाते हैं. ये भूत और देव में यकीन रखते हैं. ये वैसे स्थानों पर निवास करना पंसद करते हैं, जो जगह जंगल के समीप हो. बाजार और बस्तियां भी दूर न हों, ताकि बांस के समान को बना कर बेचे जा सकें और इनकी जीविका चल सके.

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झटके से बलि देने में माहिर है खटिक जाति

खटिक झारखंड सहित राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और गुजरात में पाये जाते हैं. खटिक जाति मूल रूप से वह जाति है जिसका काम आदि काल से याज्ञिक पशु बलि देना होता है. आदि काल में यज्ञ के बकरे की बलि दी जाती थी. खटिक पहले वामामार्गी मंदिरों में पशु बलि देने का काम करते थे. पुराणों मं खटिक ब्राह्मणों का उल्लेख है. इनके हाथों से दी गयी पशु बलि स्वीकार होती थी. खटिक शब्द खटक से बना है. यानी जो खटका काटे यानी खटका मांस, एक झटके से सिर काटने से हुआ. खटिकों के बहुत से गोत्र हैं. जिसमें सोयल, खटिक, बघेरवाल आदि प्रमुख हैं. सोनकर भी खटिक जाति के अंतर्गत ही आता है.

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