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सात जिले, नौ नहर परियोजना, 2000 करोड़ से अधिक खर्च, मग

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Kaushal Anand

Ranchi : झारखंड में पानी एक बड़ी समस्या बन कर उभरी है. किसानों के लिए खेतों तक कृषि कार्य के लिए पानी पहुंचाना भी बड़ी समस्या है. सूबे में दशकों पहले झारखंड के खेतों तक पानी पहुंचाने के कई योजनाएं शुरू की गईं, मगर सारी योजनाएं अब तक हांफ रही हैं. झारखंड के सात जिलों की नौ बड़ी नहर परियोजना, जिस पर अब तक 2000 करोड़ से अधिक खर्च हो गए. इनमें पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा, पूर्वी व पश्चिमी सिंहभूम और जामताड़ा की नहर योजनाएं प्रमुख हैं. एक बूंद पानी खेतों तक नहीं पहुंच पाया. नहर योजना या अधूरी है या फिर सूखी पड़ी हैं. इससे पानी पहुंच ही नहीं पाया. इससे समझा जा सकता है कि झारखंड में सिंचाई परियोजना का हाल क्या है.

सात जिलों की प्रमुख नहर परियोजना और उसका हाल पर एक नजर
1977 में 129 करोड़ की लागत से स्वर्णरेखा मल्टी परपस सिंचाई परियोजना शुरू हुई. 45 साल में 15 हजार करोड़ से अधिक खर्च हो गए. इसके बाद भी प्रोजेक्ट अधूरा है. केवल नहर पर अब तक 63 करोड़ खर्च हो गए, मगर अभी योजना लंबित हैं. इससे पूर्वी सिंहभूम के एरिया में पानी पहुंचाना था.
जामताड़ा विधानसभा क्षेत्र के नाला क्षेत्र में 47 साल पहले सिंचाई परियोजना शुरू हुई. 10 करोड़ की योजना 400 करोड़ तक पहुंच गए. मगर एक बूंद पानी खेतों तक नही पहुंचा. जामताड़ा क्षेत्र में ही 10.34 करोड़ से अजय नदी से सिंचाई योजना के लिए 117 किमी लंबी नहर बननी थी. निर्माण में 400 करोड़ रुपये बहा दिए गए. 5 वर्ष की योजना 47 साल में अधूरी है.
पानी की किल्लत के मशहूर एरिया पलामू. यहां पर बिहार के समय 70 दशक पहले 3 सिंचाई परियोजना शुरू हुईं. इसमें उत्तर कोयल नहर (मंडल डैम), बटाने और कनहर सिंचाई परियोजना. इन परियोजनाओं पर अब तक 1200 करोड़ से अधिक खर्च हो गया. 600 करोड़ की लागत से सोन पाइप लाइन परियोजना भी शुरू हुई. कई सरकारें आई गईं, मगर अब तक ये योजनाएं अधूरी हैं.
स्वर्णरेखा परियोजना के तहत घाटशिला में गालूडीह बराज से बहरागोड़ा तक बायीं मुख्य नहर का निर्माण योजना शुरू हुई. 85 करोड़ की योजना में 63 करोड़ रुपए खर्च हो गए, लेकिन 10 प्रतिशत ही काम हो पाया है. 9 साल गुजर गए, 65.5 किमी में सिर्फ 7 किमी नहर बन पाई है. टुमांगडुंगरी से मऊभंडार तक नहर निर्माण नहीं हुआ. 2014 से एसईडब्ल्यू कंपनी काम कर रही थी. कुछ दिनों बाद ही काम बंद कर दिया. अब तक नई एजेंसी को काम एलॉट नहीं किया गया है.
 पलामू में 1966-67 में भंयकर अकाल पड़ने के बाद तत्काली बिहार सरकार ने बांयी बांकी जलाशय योजना शुरू की. नहर की खुदाई भी हुई. कांडी में खरौंधा व मोरबे नहर का निर्माण हुआ. करोड़ों खर्च के बाद भी नहर सूखी पड़ी है. 2021-22 से 196 करोड़ से 26 किमी लंबी नहर बन रही है.
1995-96 में मोहम्मदगंज के भीम बराज से 11 किमी लंबी नहर की खुदाई हुई, पर पानी नहीं मिला. चतरा में अंजनवा और पश्चिम सिंहभूम में ब्राह्मणी परियोजना का यही हाल है.
जलाशयों में हर साल होता है पानी का अच्छा भंडारण, इसके बाद भी खेत हैं सूखे
पिछले बार की तरह भी इस बार सामान्य मानसून रहने के आसार बताए गए हैं. इस बार भी जलाशयों में पानी का अच्छा भंडारण होगा. कुछ को छोड़ दें तो पिछले साल 2022 में बारिश में जलाशयों में पानी का अच्छा भंडारण हुआ था. इसके बाद भी खेत सुखे हैं, किसानों तक खेतों तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है.
2022 में सेंट्रल वाटर कमीशन (सीवीसी) की रिपोर्ट के अनुसार 2021 से 19 प्रतिशत अधिक पानी का भंडारण जलाशयों में हुआ.
सीवीसी के दायरे में झारखंड के तेनुघाट, मैथन, पंचेत, तिलैया और कोनार जलाशय आते हैं.
इन पांच जलाशयों में जल संग्रहण की क्षमता 1.79 बिलियन क्यूबिक मीटर. इसमें पिछले साल बारिश के बाद 1.08 बीसीएम पानी भंडारण हुआ. जबकि 2021 में यह भंडारण केवल 0.69 बीसीएम था. पिछले दस साल में सबसे अधिक 0.86 बीसीएम तक गया था. पिछले 10 साल के औसत की तुलना में करीब 19 फीसदी अधिक है.
पिछले साल बारिश के बाद पांच प्रमुख जलाशयों पानी का भंडारण (मीटर में)
जलाशय                     कुल क्षमता             गत अक्टूबर में पानी का भंडारण

तेनुघाट                                           269.14                             258.76

मैथन                                              146.3                               144.56

पंचेत हिल                                       124.97                               124.32

कोनार                                           425.82                                420.85

तिलैया                                           368.81                                367.4

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