किल कोरोना’ महासर्वे अभियान के तहत भोपाल में शनिवार व रविवार को पांच हजार कोरोना संदिग्धों के सैंपल लिए गए। इनमें ज्यादा जोखिम वाले लोग जैसे गैस पीड़ित, डायबिटीज व फेफड़े की बीमारी के मरीजों को शामिल किया गया। कोरोना का सर्वे करने वाली टीम ने शहर के 85 हजार घरों में करीब चार लाख लोगों का सर्वे कर बुखार व अन्य बीमारियों के बारे में जानकारी ली। इस दौरान त्वरित जांच किट से मलेरिया की जांच भी की गई।
इसमें दो दिन में मलेरिया के 370 मरीज मिले हैं। इन्हें मौके पर ही दवाएं दी गई हैं। मलेरिया व डेंगू के संक्रमण का जून-जुलाई में सबसे ज्यादा खतरा रहता है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग का पूरा अमला कोरोना की रोकथाम में लगा है। इस कारण मच्छरजनित बीमारियों पर किसी का ध्यान नहीं है। मलेरिया की जांच के लिए स्लाइड भी नहीं बनाए जा रहे हैं। कोरोना के डर से मरीज भी अस्पताल नहीं पहुंच पा रहे हैं।
पिछले साल के इंटीग्रेटेड डिसीज सर्विलांस प्रोग्राम (आईडीएसपी) के आंकड़ों के अनुसार जून-जुलाई में भोपाल में कोरोना मरीजों की संख्या हर हफ्ते 17 से 18 रहती थी। एक महीने में भी मरीजों की अधिकतम संख्या 100 के नीचे रहती थी। पहली बार ऐसा है जब मलेरिया के मरीजों इतना बड़ा आंकड़ा सामने आया है।
सर्वे में सिर्फ खानापूर्ति
सर्वे में 1500 कर्मचारियों की 500 टीमें लगी थीं। इस टीम में आशा और ऑगनबाड़ी कार्यकर्ता शामिल थीं। इन्होंने घरों में जाकर बाहर से ही सदस्यों की संख्या पूछी। हाई रिस्क वाले मरीज जैसे डायबिटीज, गैस पीड़ित आदि की जानकारी ली। बुखार की जांच के लिए थर्मल स्क्रीनिंग नहीं की गई। भोपाल कलेक्टर अविनाश लवानिया ने भी महासर्वे अभियान का निरीक्षण किया। उन्होंने कहा कि गैस प्रभावित इलाकों में 60 साल से ऊपर के लोग हाई रिस्क में हैं। इन सबकी फिर से जांच कराई जाएगी। इसके लिए अलग से अभियान चलाया जाएगा।
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