चैत्र नवरात्र : माता कुष्मांडा की पूजा करने से बीमारियां रहेंगी दूर, मालपुआ भोग लगाने से मां होंगी खुश – Lok Shakti
November 2, 2024

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चैत्र नवरात्र : माता कुष्मांडा की पूजा करने से बीमारियां रहेंगी दूर, मालपुआ भोग लगाने से मां होंगी खुश

LagatarDesk :  चैत्र नवरात्र का आज चौथा दिन है. इस दिन मां दुर्गा के चौथे रूप माता कुष्मांडा की पूजा-अर्चना की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी कूष्मांडा ने इस सृष्टि की रचना की थी. इसलिए इन्हें सृष्टि का आदि स्वरूप (आदिशक्ति) भी कहा जाता है. अपनी मंद मुस्‍कान द्वारा ब्रह्मांड की उत्‍पत्ति करने के कारण देवी के इस रूप को कूष्मांडा कहा गया. इनकी उपासना से समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं. कूष्मांडा योग और ध्यान की देवी भी हैं.

मां कुष्मांडा को अष्टभुजा भी कहा जाता

ऐसी मान्‍यता है कि जब दुनिया नहीं थी,  तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की. इसीलिए इन्‍हें सृष्टि की आदिशक्ति कहा गया. मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहते हैं.  इनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा होता है. आठवें हाथ में जपमाला रहता है. मां कूष्मांडा सिंह का सवारी करती हैं. संस्कृत भाषा में कुष्मांडा को कुम्हड़ कहते हैं और मां कुष्मांडा को कुम्हड़ा विशेष रूप से प्रिय है. ज्योतिष में मां कुष्मांडा का संबंध बुध ग्रह से है.

देवी की अराधना से आयु, यश, बल में होती है वृद्धि

नवरात्रि में मां की पूजा करने से मनुष्य को समस्त सांसारिक सुख की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि देवी का निवास स्थान सूर्यमंडल के मध्य है. इसलिए देवी सूर्य के समान तेज है. भक्त अगर मां कुष्मांडा की आराधना करते हैं, उनपर किसी प्रकार का कष्ट नहीं आता. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां कुष्मांडा की पूजा करने से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है.

मां कुष्मांडा की पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान कर लें. इसके बाद विधि-विधान से कलश की पूजा करने के साथ मां दुर्गा और उनके स्वरूप की पूजा करें. मां को सिंदूर, पुष्प, माला, अक्षत आदि चढ़ाएं. इसके बाद मालपुआ का भोग लगाएं और फिर जल अर्पित करें. फिर घी का दीपक और धूप जलाकर ‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडा नम: मंत्र का 108 बार जाप करें.

मालपुआ का भोग लगाकर मां को करें प्रसन्न

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, कुष्मांडा एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ कुम्हड़ा होता है. कुम्हड़ा वो फल है जिससे पेठा बनता है. इसी कारण माता को कुम्हड़ा की बलि देना शुभ माना जाता है. यह भी मान्यता है कि मां कुष्मांडा को दही और हलवा अति प्रिय है. जो भक्त मां को इन चीजों का भोग लगाते हैं. उनपर मां की कृपा सदेव बनी रहती है. मां कूष्मांडा को आप हलवे या मालपुआ का भोग भी लगा सकते हैं.

इस मंत्र का करें जाप
या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्‍मांडा रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
‘ॐ कूष्मांडा देव्यै नमः’ का 108 बार जाप करें.
आप चाहें तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं.
देवी कुष्मांडा की आरती

कुष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥ पिंगला ज्वालामुखी निराली।शाकंभरी मां भोली भाली॥ लाखों नाम निराले तेरे भक्त कई मतवाले तेरे॥ भीमा पर्वत पर है डेरा।स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥ सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥ तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥ मां के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो मां संकट मेरा॥ मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥ तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥