LagatarDesk : आज चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन है. नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. ब्रह्मचारिणी में ‘ब्रह्म’ का अर्थ होता है ‘तपस्या’ और ‘चारिणी’ का अर्थ ‘आचरण’ करने वाली है. इस तरह दोनों अर्थों को मिलाने पर ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप का आचरण करने वाली होता है. मां दुर्गा का यह रूप बेहद शांत और मोहक है. देवी के इस स्वरूप को माता पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है. इसलिए इस दिन उन कन्याओं की पूजा की जाती है जिनकी शादी तय हो गयी है. लेकिन अभी शादी नहीं हुई है. इस दिन इन्हें अपने घर बुलाकर पूजा के बाद भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट करने चाहिए. (पढ़ें, बिहार दिवस : सीएम नीतीश ने फिर मांगा विशेष राज्य का दर्जा)
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से हर मनोकामना होती हैं पूर्ण
मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल का फूल पसंद है. इन्हीं फूलों की माला मां के चरणों में अर्पित करें. मान्यता यह भी है कि मां को चीनी, मिश्री और पंचामृत बेहद पसंद है तो इसका भोग भी लगाये. माता को घी या दूध से बने पदार्थों का भोग लगा सकते हैं. ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं. ऐसी मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती हैं. हमेशा वे ऐश्वर्य का सुख भोगते हैं. मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा करने से तप, त्याग, सदाचार, संयम आदि की वृद्धि होती है.
घी या दूध से बने पदार्थों का लगाये भोग
ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप की पूजा करने से तप, त्याग, सदाचार और संयम में वृद्धि होती है. मां की पूजा करने से शत्रुओं को पराजित कर उन पर विजय प्राप्त किया जा सकता है. मां की व्रत कथा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. माता को प्रसन्न करने के लिए घी या दूध से बने पदार्थों का भोग लगाना चाहिए.
ऐसा है मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
माता ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं. इनका स्वरूप श्वेत वस्त्र में लिप्टी हुई कन्या के रूप में है. इनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है. ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है. अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली देवी हैं. देवी ब्रह्मचारिणी का यह रूप बिल्कुल सौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाला है.
ऐसे करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
सबसे पहले मां ब्रह्मचारिणी को फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पित करें. मां को दूध, दही, घृत, मधु और शर्करा से स्नान कराये. फिर भगवान को पिस्ते की मिठाई का भोग लगाये. इसके बाद माता को पान, सुपारी और लौंग चढ़ाये. फिर गाय के गोबर के उपले जलाये और उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा अर्पित करें. हवन करते समय “ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्यै नम:” मंत्र का जाप करें.
भगवान शंकर को पाने के लिए की थी घोर तपस्या
शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने उनके पूर्वजन्म में हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था. उन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी. यही कारण है कि इनका नाम ब्रह्मचारिणी रखा गया है. मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाया. इतना ही नहीं मां ने सौ सालों तक जमीन पर जीवन बिताया था. उनकी कठिन तपस्या के बाद भी जब महादेव प्रसन्न नहीं हुए तो माता ने बेल पत्र खाना भी छोड़ दिया. उन्होंने कई हजार सालों तक उन्होंने निर्जल और निराहार रहकर तपस्या की. जब मां ने पत्ते खाने भी छोड़ दिये तो इनका नाम अपर्णा पड़ गया. कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीर्ण हो गया. देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताकर सराहना की. उन्होंने कहा कि हे देवी आपकी तपस्या जरूर सफल होगी. मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है. मां की आराधना करने वाले व्यक्ति का कठिन संघर्षों के समय में भी मन विचलित नहीं होता है.
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