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नये भारत को आकार देने के संकल्पों का गणतंत्र

ललित गर्ग

गणतंत्र दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व है, इसी दिन 26 जनवरी, 1950 को हमारी संसद ने भारतीय संविधान को पास किया। इस दिन भारत ने खुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया। तेहत्तर वर्षों में हमारा गणतंत्र कितनी ही कंटीली झाड़ियों में फँसा रहा। लेकिन अब इन राष्ट्रीय पर्वों को मनाते हुए संप्रभुता का अहसास होने लगा है। गणतंत्र का जश्न सामने हैं, जिसमें कुछ कर गुजरने की तमन्ना भी है तो अब तक कुछ न कर पाने की बेचैनी भी है। हमारी जागती आंखो से देखे गये स्वप्नों को आकार देने का विश्वास है तो जीवन मूल्यों को सुरक्षित करने एवं नया भारत निर्मित करने की तीव्र तैयारी है। अब होने लगा है हमारी स्व-चेतना, राष्ट्रीयता एवं स्व-पहचान का अहसास। जिसमें आकार लेते वैयक्तिक, सामुदायिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक अर्थ की सुनहरी छटाएं हैं।
राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस हमारी उन सफलताओं की ओर इशारा करता है जो इतनी लंबी अवधि के दौरान अब जी-तोड़ प्रयासों के फलस्वरूप मिलने लगी हैं। यह हमारी विफलताओं पर भी रोशनी डालता है कि हम नाकाम रहे तो आखिर क्यों! क्यों हम राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को सुदृढ़ता नहीं दे पाये है? क्यों गणतंत्र के सूरज को राजनीतिक अपराधों, घोटालों और भ्रष्टाचार के बादलों ने घेरे रखा है? हमने जिस संपूर्ण संविधान को स्वीकार किया है, उसमें कहा है कि हम एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यह सही है और इसके लिए सर्वप्रथम जिस इच्छा-शक्ति की आवश्यकता है, वह हमारी शासन-व्यवस्था एवं शासन नायकों में सर्वात्मना नजर आनी चाहिए और ऐसा होने लगा है तो यह सुखद अहसास है।
एक संकल्प लाखों संकल्पों का उजाला बांट सकता है यदि दृढ़-संकल्प लेने का साहसिक प्रयत्न कोई शुरु करे। अंधेरों, अवरोधों एवं अक्षमताओं से संघर्ष करने की एक सार्थक मुहिम हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्ष 2014 में शुरू हुई थी। उनके दूसरे प्रधानमंत्री के कार्यकाल में सुखद एवं उपलब्धिभरी प्रतिध्वनियां सुनाई दे रही है, भारत के लिये एक शुभ एवं श्रेयस्कर घटना है इसी एक दिसंबर को जी-20 देशों के समूह की अध्यक्षता संभालना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इस जिम्मेदारी को संभालने का अर्थ है भारत को सशक्त करने के साथ-साथ दुनिया को एक नया चिन्तन, नया आर्थिक धरातल, शांति एवं सह-जीवन की संभावनाओं को बल देना। नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा घोषित नई शिक्षा नीति की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता धीरे-धीरे सामने आने लगी है एवं उसके उद्देश्यों की परते खुलने लगी है। आखिरकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति की शुरुआत करतेे हुए अगस्त तक डिजिटल यूनिवर्सिटी के शुरू होने और विदेशों के ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज और येल जैसे उच्च स्तरीय लगभग पांच सौ श्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थानों के भारत में कैंपस खुलने शुरु हो जायेंगे। अब भारत के छात्रों को विश्वस्तरीय शिक्षा स्वदेश में ही मिलेगी और यह कम खर्चीली एवं सुविधाजनक होगी। इसका एक लाभ होगा कि कुछ सालों में भारतीय शिक्षा एवं उसके उच्च मूल्य मानक विश्वव्यापी होंगे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की यह अनूठी एवं दूरगामी सोच से जुड़ी सराहनीय पहल है। यह शिक्षा के क्षेत्र में नई संभावनाओं का अभ्युदय है।
कुछ समय पूर्व हमने मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के मन्दिर के शिलान्यास का दृश्य देखा। काशी में विश्वनाथ धाम का जो विकास हुआ है, उसे देखा। मोदी ने अपने अब तक के कार्यकाल में जता दिया है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति वाली सरकार अपने फैसलों से कैसे देश की दशा-दिशा बदल सकती है, कैसे कोरोना जैसी महाव्याधि को परास्त करते हुए जनजीवन को सुरक्षित एवं स्वस्थ रख सकती है, कैसे महासंकट में भी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त होने से बचा सकती हैं, कैसे राष्ट्र की सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए पडौसी देशों को चेता सकती है, कैसे स्व-संस्कृति एवं मूल्यों को बल दिया जा सकता है। गणतंत्र दिवस समारोह मनाते हुए भारत में धर्मस्थलों और तीर्थों के विकास की किसी भी पहल की भी प्रशंसा होनी ही चाहिए। काशी की जो चमत्कारपूर्ण एवं विलक्षण आभा सामने आयी है, इसके लिये भगवान शिव की नगरी काशी के सांसद एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पूरा श्रेय दिया जाना चाहिए।
किसी भी राष्ट्र के जीवन में चुनाव सबसे महत्त्वपूर्ण घटना होती है। यह एक यज्ञ होता है। लोकतंत्र प्रणाली का सबसे मजबूत पैर होता है। राष्ट्र के प्रत्येक वयस्क के संविधान प्रदत्त पवित्र मताधिकार प्रयोग का एक दिन। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावों में अधिकतम यानी शत-प्रतिशत मताधिकार का प्रयोग हो, इसके लिये देश में चुनाव प्रक्रिया में एक और क्रांतिकारी कदम की दिशा में अग्रसर होते हुए एक नये अध्याय की शुरुआत होने जा रही है, जिसके अन्तर्गत रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरईवीएम) का मॉडल विकसित कर चुनाव आयोग ने महत्त्वपूर्ण पहल की है। चुनावों के दौरान यह मशीन उन घरेलू प्रवासियों के लिए वरदान साबित होगी, जो शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार के सिलसिले में अपने चुनाव क्षेत्रों से बाहर रहते हैं। आरईवीएम को चुनाव प्रक्रिया में शामिल करने के बाद जो प्रवासी जहां है, वहीं से मतदान कर सकेगा। निश्चित ही इसके लागू होने से मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा एवं लोकतंत्र में जनभागीदारी अधिकतम होने लगेगी। इससे भारत का गणतंत्र एक नई आभा एवं मजबूती से चमक उठेगा।
भारत के गणतंत्र में और भी चार-चांद लग रहे हैं, जैसे काशी हो या अयोध्या या ऐसे ही धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्रांति के परिदृश्य- ये अजूबे एवं चैंकाने वाले लगते हैं। काशी से नरेन्द्र मोदी ने जो संदेश दिया है, उसे केवल चुनावी नफा-नुकसान के नजरिये से नहीं देखना चाहिए, बल्कि एक सशक्त होते राष्ट्र के नजरिये से देखा जाना चाहिए। उनका यह कहना खास मायने रखता है कि सदियों की गुलामी के चलते भारत को जिस हीनभावना से भर दिया गया था, आज का भारत उससे बाहर निकल रहा है। यह स्थिति इस वर्ष का गणतंत्र दिवस समारोह मनाते हुए विशेष रूप से गौरवान्वित करेंगी। वाकई यहां अब कोई संदेह शेष नहीं है कि यह सरकार देश व समाज को बदल रही है, लोगों का जीवनस्तर उन्नत कर रही है।
मोदी अपने आलोचकों को खूब जानते हैं, अतः उन्होंने उचित ही कहा है कि आज का भारत सिर्फ सोमनाथ के मंदिर का सौंदर्यीकरण ही नहीं कर रहा, अयोध्या में श्रीराम के मन्दिर के सदियों पूराने सपने को आकार ही नहीं दे रहा है, बाबा केदारनाथ धाम का जीर्णाेद्धार ही नहीं कर रहा, बाबा विश्वनाथ धाम को भव्य रूप ही नहीं दे रहा है बल्कि सीमाओं की सुरक्षा भी बेखूबी कर रहा है, समुंदर में हजारों किलोमीटर ऑप्टिकल फाइबर भी बिछा रहा है, हर जिले में मेडिकल कॉलेज भी बना रहा है, गरीबों को पक्के मकान भी बनाकर दे रहा है, रोजगार, चिकित्सा, शिक्षा की अनूठी व्यवस्थाएं भी कर रहा है। मतलब वर्तमान शासन-नायकों को विरासत और विकास की समन्वित चिंता है। हिंदुत्व की चिंता है, तो विकास की भी पूरी फिक्र है। अब सुधार, सुशासन, स्व-संस्कृति, स्व-पहचान के दीपक जल उठे हंै, तो उसकी रोशनी तमाम देशवासियों को नया विश्वास, सुखद जीवनशैली देगी।
भारत के संवैधानिक एवं संप्रभुता सम्पन्न राष्ट्र बनने की 73वीं वर्षगांठ मनाते हुए  हम अब वास्तविक भारतीयता का स्वाद चखने लगे हैं, आतंकवाद, जातिवाद, क्षेत्रीयवाद, अलगाववाद की कालिमा धूल गयी है, धर्म, भाषा, वर्ग, वर्ण और दलीय स्वार्थों के राजनीतिक विवादों पर भी नियंत्रण हो रहा है। इन नवनिर्माण के पदचिन्हों को स्थापित करते हुए हम प्रधानमंत्री के मुख से नये भारत-सशक्त भारत को आकार लेने के संकल्पों की बात सुनते हैं। गणतंत्र दिवस का उत्सव मनाते हुए यही कामना है कि पुरुषार्थ के हाथों भाग्य बदलने का गहरा आत्मविश्वास सुरक्षा पाये। एक के लिए सब, सबके लिए एक की विकास गंगा प्रवहमान हो।