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राजनीतिक नींव एवं मील के पत्थर थे शरद यादव

ललित गर्ग

नए साल ने अभी अपनी गति पूरी तरह से पकड़ी भी नहीं है, लेकिन हिंदुस्तान की सियासत ने अपना एक धुरंधर, जांबाज, कद्दावर का नेता जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव को हमसे छीन लिया। बिहार से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में एक संभावनाओं भरा राजनीति सफर ठहर गया, उनका निधन न केवल बिहार के लिये बल्कि भारतीय राजनीति के लिये एक गहरा आघात है, अपूरणीय क्षति है। वे निश्चित ही भारतीय राजनीति के नींव के पत्थर थे, मील के पत्थर थे। समाजवाद की बुलंद आवाज थे, डॉ. लोहिया के विचारों से प्रभावित प्रखर समाजवादी नेता थे। उन्होंने बिहार के मधेपुरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चार बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया था, दो बार मध्यप्रदेश के जबलपुर से सांसद चुने गये थे, एक बार उत्तर प्रदेश के बदायूं से लोकसभा के लिए चुने गए और शरद यादव संभवतः भारत के पहले ऐसे राजनेता हैं जो तीन राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार से लोकसभा के सदस्य के लिए चुने गए थे। देशहित में नीतियां बनाने एवं राजनीति की नयी दिशाएं तलाशने में माहिर शरद यादव का 76 वर्ष का जीवन सफर राजनीतिक आदर्शों की ऊंची मीनार हैं, राजनीति का एक प्रकाश है। उनका निधन एक युग की समाप्ति है। उन्हें हम समाजवादी सोच एवं भारतीय राजनीति का अक्षयकोष कह सकते हैं, वे गहन मानवीय चेतना के चितेरे जुझारु, नीडर, साहसिक एवं प्रखर व्यक्तित्व थे।
मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के बंदाई गांव के एक किसान परिवार में उनका जन्म 1 जुलाई 1947 को हुआ और प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इसके लिए वह जबलपुर गए थे, लेकिन अगले कुछ साल में जबलपुर उनके लिए राजनीति की जमीन तैयार कर रहा था। असल में उन्होंने यहीं इंजीनियरिंग कॉलेज से ही छात्र राजनीति में कदम रखा और 52 वर्षीय सफल एवं धारदार राजनीतिक पारी खेली। पहली बार जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में छात्र संघ के प्रसीडेंट चुने गए। युवा छात्र रहते हुए राजनीति में उनकी मजबूत पकड़ हो गई थी। इसी दौरान शरद कई क्रांतिकारी आंदोलन का हिस्सा भी रहे थे। जिनमंे मिसा आंदोलन के तहत साल 1969, 1970, 1972 और 1975 में कई बार जेल भी जाना पड़ा। साल 1974 में, उन्होंने जबलपुर से लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। और 27 साल की उम्र में सांसद बने। जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ उनकी राजनीतिक लड़ाई को और मजबूत किया। आपातकाल विरोधी आंदोलन के दौरान कई नेताओं ने संघर्ष कर अपनी एक अलग पहचान बनाई थी, शरद यादव उनमें से एक थे। एक ऐसी छवि जिसने उन्हें कई सालों तक सांसद बने रहने के दौरान जनता के सामने खुद को अच्छी एवं प्रखर राजनीतिक स्थिति में रखा।
बहुत कम लोग जानते हैं कि शरद यादव इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट थे। उन्होंने रॉबर्ट्सन मॉडल साइंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री भी हासिल की थी। शरद यादव बचपन से ही पढ़ने-लिखने में होनहार थे। शरद यादव को राजनीतिक लेख पढ़ना और संगीत सुनना बेहद पसंद था। खेल की बात करें तो हॉकी, कबड्डी और कुश्ती उनके पसंदीदा खेल थे। वे छात्र राजनीति से राजनीति में अपनी उपस्थिति का अहसास कराने वाले नेताओं में से एक थे। देश के समाजवादी नेताओं के तौर पर उनकी भी गिनती होती रही है। समाजवादी आंदोलन में वे अग्रणी भूमिका में रहे। राजनीति में खासा दखल रखने वाले वे देश के उन दिग्गज जमीनी नेताओं में शुमार किए जाते हैं जिन्होंने अपने बल पर राजनीति में नया मुकाम हासिल किया और राजनीति की नयी परिभाषाएं गढ़ी। उन्हें पिछड़ी जातियों का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। उनकी पहचान ऐसे राजनेता की रही है जो साधारण किसान परिवार से निकलकर राजनीति में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, एचडी देवगौड़ा और गुरुदास दासगुप्ता के साथ की थी।
शरद यादव केन्द्र सरकार में अनेक मंत्रालयों में मंत्री रहे। सबसे पहले उन्हें केंद्रीय कैबिनेट कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री बनाया गया। यूपी में राजनीतिक रंग जमाने के बाद 1991 से 2014 तक शरद यादव ने बिहार की जमीन पर पहुंचे। इस दौरान वो बिहार की मधेपुरा सीट से सांसद रहे। वर्ष 1995 में उन्हें जनता दल का कार्यकारी अध्यक्ष भी चुना गया। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने लालू यादव को मात दे दी। 1998 में जनता दल यूनाइटेड पार्टी बनाई। साल  2004 में दूसरी बार राज्यसभा पहुंचे। इससे पहले 1999 में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री और सितम्बर 2001 से 30 जून 2002 तक केंद्रीय श्रम मंत्री भी रहे। 1 जुलाई 2002 से 15 मई 2004 तक शरद यादव केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्री, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री भी बनाए गए। साल 2012 में संसद में उनके बेहतरीन योगदान के लिए उन्हें ‘उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार 2012’ से नवाजा गया। साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें बिहार की मधेपुरा सीट से हार मिली और यहीं से उनका राजनीतिक कैरियर ढलान पर उतरता गया।
शरद यादव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक थे परन्तु उनकी पार्टी द्वारा गठबंधन से सम्बन्ध विच्छेद कर लेने के कारण उन्होंने संयोजक पद से त्याग पत्र दे दिया। राजनीतिक गठजोड़ के माहिर खिलाड़ी शरद यादव को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक गुरु माना जाता है। उनका निधन राजनीति के सूर्य का अवसान है। उन्होंने सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने में साहसिक योगदान किया। यादव जब विद्यार्थी थे तभी से उनके मन-मस्तिष्क पर डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों की गहरी छाप पड़ी। डॉ. लोहिया के विचारों ने ही उनके विशिष्ट व्यक्तित्व का निर्माण किया और उनका स्वतंत्र चिंतन, कथनी और करनी में समानता का सिद्धांत निरन्तर प्रेरणा का काम करता रहा है। डॉ. लोहिया के विशाल व्यक्तित्व की छाया में ही शरद यादव के सामाजिक, राजनीतिक विचारों ने गति और दिशा पाई। उसमें सत्य और निष्ठा का भाव तो होता ही था साथ ही उसमें विश्वास और चारित्रिक प्रामाणिकता भी होती थी। वे केवल राजनीतिक लाभ-हानि अथवा चुनावी हार-जीत के वशीभूत होकर ही बात नहीं करते थे बल्कि गरीबों के दुख-दर्द के सहभागी बनकर उसे महसूस भी करते थे। उनका अनूठा चरित्र सभी को आकर्षित करता रहा। विरोधी भी उनकी साफगोई कंठ से प्रशंसा करते हैं।
शरद यादव ने 90 के दशक के अंत में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में काम किया। वर्ष 1989 में वीपी सिंह सरकार में कपड़ा एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बने थे। साल 1990 में शरद वापिस बिहार की तरफ चले गए। इसके बाद 23 साल के लंबे अरसे तक शरद का बिहार से ऐसा नाता रहा कि ज्यादातर लोग उन्हें बिहारी ही मानते थे। शरद यादव की शादी तब हुई जब उनकी उम्र 40 साल से अधिक के हो गई थी। उनकी पत्नी का नाम डॉ रेखा यादव है। शरद यादव की दो संतानें हैं। उनके बेटे का नाम शांतनु और बेटी का नाम सुभाषिनी है। बेटी की शादी गुरुग्राम के एक राजनीतिक परिवार में हुई है और बेटा अभी अविवाहित है।

भारत में समाजवादी होना कठिन तपस्या रही है। वैसे भी हमारे देश में समाजवादी प्रतिभा, चिंतन और कार्यशैली स्वतंत्र रही है। वास्तव में शरद यादव ऐसे समाजवादी रहे हैं जिन्होंने न केवल डॉ. लोहिया के विचारों और उनकी समाजवादी नीतियों को व्यावहारिकता के धरातल पर उतार कर समाजवादी आंदोलन को सही मायनों में नई ऊंचाइयां प्रदान की हैं बल्कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए वह निरंतर प्रयत्नरत रहे हैं। समाजवादी नेताओं में शरद यादव सर्वश्रेष्ठ, कर्मठ और महत्वपूर्ण राजनेता थे। उनमें जुझारूपन और विपरीति परिस्थितियों से निरंतर संघर्ष करने का कृषक वाला अद्भुत साहसिक गुण था। उन्होंने कभी विपरीत परिस्थितियों से समझौता नहीं किया, निरंतर उनसे जूझते रहे और अंततः सफलता पाई। वास्तव में हमारे देश एवं समाज को शरद यादव से जो अपेक्षाएं थी उन पर तो वह खरे उतरे ही, बल्कि उससे ज्यादा भी बहुत कुछ करके दिखाया है। बेशक शरद यादव अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अपने सफल राजनीतिक जीवन के दम पर वे हमेशा भारतीय राजनीति के आसमान में एक सितारे की तरह टिमटिमाते रहेंगे।