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Editorial:तालिबान की क्रूरताएं

4-1-2022

ये उम्मीद ध्वस्त हो गई है कि गुजरे दो दशकों में तालिबान ने कोई सीख ली है और इस बार उसका अपेक्षाकृत उदार चेहरा देखने को मिलेगा। फिलहाल दुनिया उसकी क्रूरताओं के आगे खुद को जैसे लाचार महसूस कर रही है। अफगानिस्तान में तालिबान सरकार फिर से उसी रंग में आ गई है, जो उसने 1990 के दशक के आखिर में दिखाया था। इस तरह ये उम्मीद ध्वस्त हो गई है कि गुजरे दो दशकों में उसने कोई सीख ली है और इस बार उसका अपेक्षाकृत उदार चेहरा देखने को मिलेगा। तालिबानी शासन की क्रूरताओं का हाल यह है कि अब इस्लामी दुनिया भी उससे असहज महसूस करने लगी है। यूनिवर्सिटी में महिलाओं की पढ़ाई प्रतिबंधित करने के सवाल पर दुनिया के बाकी हिस्सों के साथ-साथ इस्लामी देशों में भी उसकी कड़ी निंदा हुई है। इसी हफ्ते इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी ने इस कदम के हो रहे विरोध में अपना स्वर जोड़ा।

 ओआईसी के महासचिव हिसेन ब्राहिम ताहा ने कहा कि इस फैसले से न सिर्फ अफगान महिलाएं आजीविका के अवसरों से वंचित हो जाएंगी, बल्कि तालिबान के ताजा फैसले का असर अफगानिस्तान में चलने वाले अंतरराष्ट्रीय मानवीय सहायता कार्यक्रमों पर भी पड़ेगा। गौरतलब है कि तालिबान ने अफगानिस्तान में कार्यरत सभी स्थानीय और विदशी गैर-सरकारी संगठनों को आदेश दिया था कि वे अपने सभी महिला कर्मचारियों का काम आना रोक दें।तालिबान ने धमकी दी है कि अगर इस संगठनों ने ऐसा नहीं किया, तो उन्हें अफगानिस्तान में काम करने के लिए मिले लाइसेंस रद्द कर दिए जाएंगे। सऊदी अरब और पाकिस्तान ने भी इन तालिबानी फैसलों की आलोचना की है। सऊदी अरब के विदेश मंत्री फैसल बिन फहरान अल साउद और पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी की फोन पर हुई वार्ता के बाद जारी एक बयान में बताया गया कि दोनों देश ने महिलाओं के सभी अधिकारों और जीवन के हर क्षेत्र में उनकी समान भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जाहिर है, सऊदी अरब और पाकिस्तान उदार देश नहीं हैं। उनके यहां मजहबी आधार पर होने दमन की अपनी कहानियां चर्चित रही हैं। लेकिन अफगानिस्तान में हालात ऐसे हो गए हैं कि उसकी आलोचना करने के लिए वे भी मजबूर हुए हैँ। तालिबान मुजरिमों को सार्वजनिक रूप से सजा देने और महिलाओं को स्कूली शिक्षा से वंचित करने के कदम पहले ही उठा चुका है।