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Editorial:विपक्ष के लिए संदेश

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13-11-2022

विपक्ष को यह स्वीकार करना चाहिए कि भाजपा ने अपने लिए एक मजबूत सामाजिक आधार तैयार कर लिया है। उसने 1990 के दशक में उपजे अनेक समीकरणों को खुद में समाहित कर लिया है।

भाजपा विरोधी दलों और समूह अगर चाहें, तो रविवार को आए उप चुनाव नतीजों से एक खास संदेश ग्रहण कर सकते हैँ। संदेश यह है कि भाजपा से निपटने की जिस रणनीति के भरोसे वे बैठे हैं, वह कारगर नहीं हो रही है। बल्कि केंद्र की सत्ता में आने के आठ साल बाद आज भी पहल भाजपा के हाथ में ही बनी हुई है। वरना, दक्षिण के तेलंगाना से लेकर पूरब में ओडीशा तक उसके समर्थन आधार में विस्तार होता नजर नहीं आता। वैसे विपक्ष को सबसे बड़ा झटका बिहार की गोपालगंज सीट पर मिला। पिछले अगस्त में जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पाला बदला था, तब राजनीति के दो दशक पुराने व्याकरण में अब तक उलझे समीक्षकों ने एक स्वर से कह दिया था कि अब कम से कम बिहार में तो सियासी सूरत बिल्कुल पलट जाएगी। तुरंत 2024 के आम चुनाव के लिए भविष्यवाणी करते हुए कहा गया था कि उसमें 2019 की तरह ही एकतरफा, लेकिन उलटी दिशा में नतीजा आएगा। लेकिन नीतीश कुमार के पाला बदल वोटों के कथित रूप से अपेक्षित ‘क्वांटम शिफ्टÓ के विपरीत भाजपा गोपालगंज सीट बचाने में सफल रही।

अब विपक्ष के लिए यह सिर्फ ढाढस बंधाने के तर्क हैं कि 2020 की तुनाल में भाजपा की जीत का अंतर 36 हजार से घट कर दो हजार पर आ गया। या यह कि अगर ओवैसी की पार्टी और साधू यादव की पत्नी ने मिल कर 19 हजार वोट नहीं काट दिए होते, तो कहानी उलटी होती। यह अगर हर चुनाव का स्थायी अगर है। बहरहाल, इस नतीजे का सबक यह है कि बिहार में भाजपा अपने बूते एक मजबूत ध्रुव बन चुकी है। बेशक ऐसा होने के पीछे उसके पास मौजूद अकूत संसाधान और प्रचार माध्यमों पर उसका पूरा नियंत्रण एक पहलू है। लेकिन इसके साथ ही विपक्ष को यह स्वीकार करना चाहिए कि भाजपा ने अपने लिए एक बेहद मजबूत सामाजिक आधार भी तैयार कर लिया है। उसने 1990 के दशक में उपजे अनेक तर्कों और समीकरणों को खुद में समाहित कर लिया है। जब तक इस सच को स्वीकार विपक्षी समूह अपनी रणनीति नहीं बनाएंगे, वे हर चुनाव का नतीजा आने के बाद मायूस होने के लिए अभिशप्त बने रहेंगे।

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