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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेप के आरोप में 19 वर्ष से अधिक समय से जेल में बंद अभियुक्त को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि मेडिकल और सुबूतों के आधार पर आरोप सिद्ध नहीं होता है। लिहाजा, अभियुक्त को बरी किया जाए। कोर्ट ने मामले में आरोपी को छोड़ने के लिए विचार न करने और हाईकोर्ट के रजिस्ट्री विभाग की ओर से मामले को 14 वर्ष तक सूचीबद्ध नहीं करने पर नाराजगी जाहिर की।
कोर्ट ने आफताफ उर्फ नफीस उर्फ पप्पू की आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए दिया है। मामले में याची पर रेप और एससी/एसटी अधिनियम के तहत कानपुर देहात के अकबरपुर थाने में 2001 में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। सत्र न्यायालय ने सुनवाई करते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि आरोपी पर रेप की पुष्टि नहीं हो रही है। कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद सुबूतों को खारिज करते हुए कहा कि डॉक्टर के साक्ष्य और मेडिकल रिपोर्ट में किसी भी शुक्राणु की उपस्थिति नहीं दिखाई देती है। जबकि, प्राथमिकी दर्ज करने के बाद पीड़ित को थाने से सीधे चिकित्सा परीक्षण के लिए ले जाया गया था। अदालत ने यह भी कहा कि पीड़ित के शरीर पर कोई चोट नहीं पाई गई। आरोपी पर एससी/एसटी अधिनियम के तहत भी आरोप सिद्ध नहीं होता है। लिहाजा, सत्र न्यायालय का फैसला एकतरफा और सही नहीं है।
कोर्ट ने मामले में हाईकोर्ट के रजिस्ट्री विभाग की ओर से वर्ष 2008 से 2022 तक सूचीबद्ध नहीं किए जाने पर अफसोस जताया। कोर्ट ने रजिस्ट्री विभाग को विष्णु बनाम यूपी राज्य के मामले में दिए गए फैसले के अनुपालन का आदेश दिया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के सौदान सिंह के मामले का हवाला देते हुए यूपी सरकार की ओर से मामले में विचार न करने पर नाराजगी जताई। कहा, इससे जेल अधिकारियों का उदासीन रवैये भी पता चलता है।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेप के आरोप में 19 वर्ष से अधिक समय से जेल में बंद अभियुक्त को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि मेडिकल और सुबूतों के आधार पर आरोप सिद्ध नहीं होता है। लिहाजा, अभियुक्त को बरी किया जाए। कोर्ट ने मामले में आरोपी को छोड़ने के लिए विचार न करने और हाईकोर्ट के रजिस्ट्री विभाग की ओर से मामले को 14 वर्ष तक सूचीबद्ध नहीं करने पर नाराजगी जाहिर की।
कोर्ट ने आफताफ उर्फ नफीस उर्फ पप्पू की आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए दिया है। मामले में याची पर रेप और एससी/एसटी अधिनियम के तहत कानपुर देहात के अकबरपुर थाने में 2001 में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। सत्र न्यायालय ने सुनवाई करते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
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