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बिना बात के बतंगड़ में माहिर है कांग्रेस

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ललित गर्ग

भारतीय राजनीति में अक्सर बिना बात के बतंगड़ होते रहे हैं। ऐसे राजनेता चर्चित माने जाते हैं जो वास्तविक उपलब्धियों एवं सकारात्मक आयामों की भी आलोचना एवं छिद्रान्वेषण करने में चतुर होते हैं। बिना बात का बतंगड़ करने में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी एवं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का कोई मुकाबला नहीं है। कांग्रेस ने जी-20 सम्मेलन के लोगो में कमल को चित्रित करने पर आपत्ति जताकर बैठे-ठाले न केवल अपनी प्रतिष्ठा को बटा लगाया है बल्कि इस प्रकार उद्देश्यहीन, उच्छृंखल, विध्वंसात्मक नीति को ही प्रदर्शित किया है। आग्रह, पूर्वाग्रह एवं दुराग्रह से ग्रस्त ऐसे आरोपों एवं आलोचनाओं से किसी का भी हित सधता हो, प्रतीत नहीं होता। ऐसा लगता है कि इस पार्टी एवं उसके नेताओं को मोदी सरकार के हर काम और निर्णय का विरोध करने की आदत पड़ गई है। ऐसा तभी होता है, जब कोई अंधविरोध से ग्रस्त हो जाता है। जो बहुचर्चित होता है उसका विरोध भी होता है। पर विरोध का भी कोई उद्देश्य और स्तर होता है। निरूद्देश्य एवं स्तरहीन विरोध, विरोधी खेमे की स्वार्थ एवं संकीर्णपूर्ण मनोवृत्ति, ईर्ष्या और विध्वंस की नीति का ही स्वयंभू प्रमाण है। भारत के लिये गर्व एवं गौरव करने के जी-20 की अध्यक्षता के क्षणों में भी उसने ईर्ष्या एवं मात्सर्य की भावना से प्रेरित होकर विरोध का स्वर बुलन्द कर अपनी बुद्धि का दिवालियापन ही उजागर किया है। उपलब्धियों का बतंगड़ बनाना सीखना हो तो कांग्रेस से सीखना चाहिए। क्या कांग्रेस पार्टी द्वारा इस तरह तिल का ताड़ बनाना उचित है?
आम जनता को गुमराह करने एवं सत्ता तक पहुंचने के लिए इस प्रकार के राष्ट्रीय उजालों पर कालिख पोतने की मनोवृत्ति निश्चित ही अंधेरे सायों से प्यार करने वालों की ही हो सकती है, ऐसे लोगों की आंखों में किरणें आंज दी जायें तो भी वे यथार्थ को नहीं देख सकते। क्योंकि उन्हें नरेन्द्र मोदी रूपी उजाले के नाम से ही एलर्जी है, तरस आता है ऐसे लोगों की बुद्धि पर, जो सूरज के उजाले पर कालिख पोतने का असफल प्रयास करते हैं, आकाश के पैबंद लगाना चाहते हैं और सछिद्र नाव पर सवार होकर राजनीति रूपी सागर की यात्रा करना चाहते हैं। निश्चित ही इससे सबके मन में अकल्पनीय सम्भावनाओं की सिहरन उठती है। प्रजातंत्र में टकराव होता है। विचार फर्क भी होता है। मन-मुटाव भी होता है पर मर्यादापूर्वक। अब इस आधार को कांग्रेस ने ताक पर रख दिया है। राजनीति में दुश्मन स्थाई नहीं होते। अवसरवादिता दुश्मन को दोस्त और दोस्त को दुश्मन बना देती है। यह भी बडे़ रूप में देखने को मिला। भारतीय संस्कृति में कमल के पुष्प की महत्ता किसी से छिपी नहीं। यह शुभ, श्रेयस्कर, सौंदर्य, समृद्धि का प्रतीक तो है ही, अनेक देवी-देवताओं से भी संबंधित है। इसका उपयोग विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक अनुष्ठानों में शताब्दियों से किया जाता रहा है। चूंकि जी-20 के समृद्ध 20 देशों का नेतृत्व करने का ऐतिहासिक एवं स्वर्णित अवसर भारत को मिला है, इसकी सफलता के लिये कमल पुष्प का लोगों में उपयोग किया जाना दूरगामी सोच से जुड़ा एक सूझबूझभरा निर्णय है।
देश मंे न जाने कितने प्राचीन भवनों और विशेष रूप से मंदिरों में कमल को उकेरा गया है। स्वतंत्रता संग्राम का संदेश देने के लिए रोटी और कमल का वितरण उपयोग किया गया। स्वतंत्रता के उपरांत भी विभिन्न संस्थाओं के प्रतीक चिह्नों, सरकारी आयोजनों के साथ डाक टिकटों में इसका उपयोग किया जाता रहा। आज भी कई सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के लोगो में कमल को शोभायमान देखा जा सकता है। वस्तुतः इसी कारण उसे राष्ट्रीय पुष्प की तरह देखा जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भारतीय संस्कृति में कमल की महत्ता से पूरी तरह अनजान है। यह एक विडंबना ही है कि भारत जोड़ो यात्रा पर निकली कांग्रेस भारतीय संस्कृति में कमल के महत्व को नहीं समझ पा रही है। इस दृष्टि से कांग्रेस के द्वारा भाजपा एवं नरेन्द्र मोदी का विरोध कोई नई बात नहीं है। कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होने लगता है कि भाजपा-विरोध इसकी नियति है। आश्चर्य इस बात का है कि इतने तीव्र, दीर्घ एवं तीक्ष्ण विरोध के बावजूद भाजपा के अस्तित्व पर कोई आंच नहीं आ सकी, बल्कि उसकी हस्ति को और अधिक प्रखर एवं तेजस्वी बनती रही। उल्लेखनीय बात यह है कि निन्दक एवं आलोचक लोगों को सब कुछ गलत ही गलत दिखाई देता है।
एक सफल नेता एवं राजनीति दल होने के लिए आपको अपने लिए समर्थन जुटाना होगा और जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी। इसके लिए नेता को सहृदय, उदार, सकारात्मक और दृढ़ होना चाहिए। लेकिन कांग्रेस में ये विशेषताएं कमतर होती जा रही है। यही कारण है कि  उसे कमल के रूप में केवल भाजपा का चुनाव चिह्न ही देता है। इससे भी बड़ा विचित्र एवं विरोधाभास यह देखने को मिला उसे जी-20 सम्मेलन के लोगो में चित्रित कमल ठीक वैसा ही दिखाई दे रहा है जैसा भाजपा का चुनाव चिन्ह में है। यदि कांग्रेस को यह लगता है कि जी-20 सम्मेलन के लोगो में कमल को दर्शाए जाने से भाजपा को राजनीतिक लाभ मिलेगा तो उसे स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसा कैसे होगा? क्या जी-20 समूह के देशों की भारत में होने वाले चुनावों में कोई भूमिका रहने वाली है? क्या ये देश वोट देकर मोदी को जीताने वाले है? भाजपा में कहीं कोई आहट भी होती है तो कांग्रेस में भूकल्प-सा आ जाता है। मजे की बात तो यह है कि कांग्रेस को भाजपा की एक भी विशेषता दिखाई नहीं देती। उसने कितनी बड़ी-बड़ी उपलब्धियां देश की झोली में डाली है। इनकी तरफ कांग्रेस का ध्यान क्यों नहीं जाता? शरीर कितना ही सुन्दर क्यों न हो, मक्खियों को तो घाव ही अच्छा लगेगा। इसी प्रकार क निन्दक लोगों को तो अच्छाई में भी बुराई का ही दर्शन होगा।
कोई कमल का विरोध कर रहे हैं तो कोई लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर नोटों पर छापने की वकालत कर रहे हैं। जाने-अनजाने इन सबने समय-समय पर यह भी प्रतीति कराई कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति के जो भी प्रतीक हैं, वे इन्हंे स्वीकार्य नहीं। वास्तव में कमल पर आपत्ति खड़ी कर कांग्रेस ने एक बार फिर यह प्रकट किया कि भारत की संस्कृति एवं उसके सांस्कृतिक प्रतीकों से सीधा लाभ भाजपा को मिलता है। इसका अर्थ यह हुआ कि इस राष्ट्रीय दल ने भारत की संस्कृति से कितनी दूरी बना ली है? यह सब उसने भाजपा वालों के लिये मान लिया है, उसकी झोली में डाल दिया है। यदि कांग्रेस देश की संस्कृति के प्रतीकों के प्रति सम्मानभाव नहीं प्रकट कर सकती तो कम से कम उसे उनका विरोध भी नहीं करना चाहिए। इस तरह की सिद्धांत एवं संस्कृतिविहीन राजनीति करके वह भारत को जोड़ने नहीं, तोड़ने का ही काम करेंगी।