भिलाई। स्वच्छ भारत अभियान के तहत प्लांट और उसके बाहर झाड़ू तो खूब लगाए जा रहे हैं। कचरे को डस्टबीन में भी डाल रहे हैं। पर किसी का ध्यान उस कचरे पर नहीं पड़ रहा है, जो अरबों का मुनाफा कमाने का मौका देने को बेताब है। बीएसपी में कबाड़ के रूप में स्क्रैप डंप पड़ा है। कोक ओवन से ही 200 ट्रक से अधिक स्क्रैप निकलेगा।
प्लांट में करीब तीन हजार करोड़ से ज्यादा का स्क्रैप कचरे की ढेर में तब्दील हो चुका है। अकेले कोक ओवन में करीब 80 करोड़ का कचरा पड़ा हुआ है। इसकी सफाई के लिए विभाग के पास गाड़ियां ही नहीं है।
ठेकेदार का इंतजार हो रहा है। एक्सपांशन प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद किसी की नजर इस पर पड़े, शायद इसी इंतजार में अमला हाथ पर हाथ धरे बैठा है। 200 ट्रक से ज्यादा का स्क्रैप यहां बताया जा रहा है।
स्वच्छ भारत अभियान के तहत ही अगर बीएसपी प्रबंधन इस कचरे की सफाई में जुट जाए तो अरबों का सौदा घर बैठे ही कर सकता है। निश्चित रूप से कंपनी के लिए इससे बेहतर और सटिक कोई और रास्ता नहीं हो सका।
बताया जा रहा है कि कोक ओवन में करीब दस साल से कचरा पड़ा है। बैटरी बनती है, पुरानी टूटती है, लेकिन कचरा जस का तस वहीं पड़ा है। यह लोहे के स्ट्रक्चर, मशीन, उपकरण आदि सब कुछ इसमें बेकार पड़ा हुआ है। इसे बेचकर या प्लांट में ही गलाकर नए प्रोडक्ट के रूप में इस्तेमाल करने का प्रावधान है, लेकिन अमल ही नहीं हो रहा है।
बीएसपी में करोड़ों के स्क्रैप हर डिपार्टमेंट में डंप है। स्क्रैप व इक्यूपमेंट को बाहर निकाला जाए तो करीब एक साल तक कार्मिकों का वेतन इसी से अदा किया जा सकता है। बीएसपी के कबाड़ की बात की जाए तो मशीनों के रिप्लेसमेंट, गाड़ियां, स्ट्रक्चर, टीन शेड, एंगल-चैनल, क्रेन व मेटेरियल हैं।
इसे बेचकर पैसा जुटाने की बात सेल लंबे समय से करता रहा है। हर प्लांट के लिए आदेश भी पूर्व में जारी हो चुके हैं। पिछले साल सेल स्तर पर गोपनीय बैठक में ही यह स्पष्ट कर दिया गया था कि बैंकों का कर्ज जमा करने के लिए नया कर्ज लेना पड़ता है।
ऐसी स्थिति में प्लांट को चलाने के लिए बेकार पड़े संसाधनों का समुचित उपयोग करने के साथ नए स्रोतों की तलाश की जाए, जिससे घाटा कम हो सके। इसके लिए स्क्रैप को भी बेचने का रास्ता दिखाया गया था।
सेल इकाइयों के हर सीईओ को मिला था फरमान
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) पर बैंक का 5649 करोड़ का कर्ज अतिरिक्त होने के कारण पिछले साल सख्त कदम उठाने का आदेश प्रबंधन ने दिया था। सेल ने सभी यूनिट के सीईओ को कहा था कि वे अपने-अपने प्लांट के स्क्रैप, बेकार इक्विपमेंट आदि को बेचकर हालात को सुधारें। बावजूद, अब तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई है।
करोड़ों के मोटर सड़ रहे हैं
बीएसपी के स्क्रैप व अन्य कबाड़ को बेचने के मामले में ढिलाई का खामिया प्रबंधन को आर्थिक रूप से उठाना पड़ रहा है। पैसा फंसा हुआ है। प्लांट में कई ऐसी इकाइयां हैं , जो बंद हो चुके हैं, लेकिन यहां पड़ी मशीनों का निस्तारण नहीं हो सका है। बताया जा रहा है कि एक-एक मोटर की कीमत तीन करोड़ से ज्यादा है। करीब दो दर्जन से ज्यादा मोटर सड़ रही हैं। एक दर्जन से ज्यादा मशीनों की कीमत 10 करोड़ रुपए से ज्यादा की बताई जा रही है। यह सब अनुमानित आंकड़े हैं। इसकी पुष्टि जिम्मेदार अधिकारी नहीं कर रहे हैं।
स्क्रैप के धंधे में अक्सर आरोप भी लगते रहे
बीएसपी के स्क्रैप को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। विवादों से पुराना रिश्ता रहा है। अधिकारियों पर आरोप लगते रहे हैं। मोटी रकम के फायदे में स्क्रैप का आंकलन ही गलत होने से करोड़ों के माल को लाखों में दिखाकर हेराफेरी के आरोप लगे हैं। जमीन के ऊपर के अलावा जमीन के अंदर के स्क्रैप का आंकलन भी विवादित ही रहा है। बताया जा रहा है कि बीएसपी में जमीन के अंदर सबसे ज्यादा स्क्रैप है।
मिल एरिया में भी करते हैं यूज
वॉयर रॉड मिल, मर्चेंट मिल, रेल मिल आदि के फ्रेश स्क्रैप को दोबारा उपयोग किया जाता है। रोलिंग के दौरान खराब होने वाले प्रोडक्ट को हटाकर डंपिंग यार्ड में रखते हैं। इसको दोबारा एसएमएस व फर्नेस में इस्तेमाल कर प्रोडक्ट तैयार करते हैं। फ्रेश स्क्रैप को इसलिए दोबारा इस्तेमाल करना संभव होता है, क्योंकि रसायनिक मिश्रण यहीं होता है।
बाकी स्क्रैप में कौन-कौन से रसायनिक मिश्रण किए गए, यह बता पाना संभव नहीं। इसको इस्तेमाल करने से क्वालिटी पर सवाल उठते हैं। इससे बचने के लिए बाकी स्क्रैप को इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसी वजह से लगातार कबाड़ बढ़ता जा रहा है। और उसका किसी और काम में उपयोग नहीं किया जा रहा है। इसका सीधा असर बीएसपी के मुनाफे में हो रहा है।
स्क्रैप निकालने की कोशिश जारी है
स्क्रैप की सफाई में विभाग जुटा हुआ है। हर स्तर पर कोशिश की जा रही है। जल्द ही कोक ओवन से ही अकेले दो सौ ट्रक स्क्रैप निकाला जाएगा। – मनोज शर्मा, हाउस कीपिंग इंचार्ज, बीएसपी
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