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Bahraich News: नदी को प्रदूषणमुक्त रखने में जलचर अहम, कतर्नियाघाट में 244 घड़ियाल के बच्चों को छोड़ा गया

बहराइच: उत्तर प्रदेश के तराई में बहने वाली प्रमुख नदी घाघरा को प्रदूषण से बचाने के लिए वन विभाग ने बहराइच के कतर्नियाघाट में 244 घड़ियाल के बच्चों को गेरुआ नदी में छोड़ा है।

पर्यावरण प्रदूषण आज पूरी दुनिया के लिए समस्या बना हुआ है। कुछ समय पहले सिर्फ वायु प्रदूषण एक समस्या थी, लेकिन अब समुद्र और नदियों का भी प्रदूषण बढ़ने लगा है। इसलिए नदी के पानी को स्वच्छ करने के सरकार तमाम योजनाएं संचालित करती है, लेकिन प्रकृति ने नदी को साफ रखने के लिए ऐसे जलचर पैदा किए हैं, जो नदी के संतुलन को बनाए रखते हैं। इन्ही में एक है, घड़ियाल, जिनके बच्चों को लखनऊ स्थित घड़ियाल पुनर्वास केन्द्र कुकरैल से लाकर गेरुआ नदी में छोड़ा गया है।

प्रभागीय वनाधिकारी आकाश दीप बधावन ने बताया कि घड़ियाल के बच्चों की उम्र लगभग दो से तीन साल है और इनकी लम्बाई 1.2 मीटर है। उन्होंने बताया कि घड़ियाल का मुख्य रूप से भोजन मछलियां होती हैं और यह सड़ी-गली मछलियां भी खा लेता है, जिससे नदी का पानी स्वच्छ हो जाता है। डीएफओ ने बताया कि घड़ियाल मुख्य रूप से उन्हीं नदियों में रहते हैं, जहां साफ सुथरी और प्रदूषण रहित होती हैं, इस लिहाज से गेरुआ इनके विकास के लिए उत्तम स्थान है। गेरुआ नदी में 6 ऐसे ब्रीडिंग पैड्स है, जहां पहले से घड़ियाल हर वर्ष अंडे देते हैं, अंडे से निकले उनके बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए कतर्नियाघाट में भी एक घड़ियाल पुनर्वास केंद्र है, जिसमें कुछ दिन बच्चों को पालने के बाद गेरुआ में छोड़ दिया जाता है। इस तरह छोड़े गए और पहले से नदी में मौजूद घड़ियाल समेत कतर्नियाघाट में इनकी संख्या 500 के करीब है। अभी तक जो सबसे बड़ा घड़ियाल कतर्नियाघाट में देखा गया है उसकी लम्बाई लगभग 12 फिट है।

गेरुआ में नदी का पानी साफ होने के साथ-साथ घड़ियाल के बच्चों के शिकार की बहुत कम सम्भावनाएं हैं, क्योंकि लक्ष्मण और गुलाब नाम के दो वाचर मुख्य रूप से घड़ियाल की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देते हैं। कुछ दिन पूर्व लक्ष्मण ने घड़ियाल के दो अण्डों को नदी में बहने से बचा लिया था। उनके इस कार्य की मीडिया में काफी सराहना भी हुई थी।

टर्टल सर्वाइवल एलाएंस से सम्बद्ध घड़ियाल विशेषज्ञ शैलेन्द्र सिंह का कहना है कि जब तापमान 32 से ऊपर होता है तो घड़ियाल के अण्डों से सिर्फ नर बच्चे निकलते हैं और जब तापमान 30 से कम होता है तो मादा बच्चे निकलते हैं। इनकी यही परिक्रिया जलवायु परिवर्तन के घोतक है और इससे वैज्ञानिकों को यह पता चलता है कि आगे चल कर नदी का क्या भविष्य है। गेरुआ में बच्चों को छोड़ने से एक लाभ यह भी मिलेगा कि यह पूरी घाघरा नदी में फैल जाएंगे, जिससे पूरे नदी के पर्यावरण पर सकात्मक प्रभाव पड़ेगा।
रिपोर्ट-अज़ीम मिर्ज़ा