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अखिलेश यादव दोराहे पर, मैनपुरी का रण जीतने की चुनौती…शिवपाल फैक्टर कहीं पड़ न जाए भारी

मैनपुरी: मैनपुरी में चर्चा का माहौल गरमाने लगा है। नेताजी की जगह कौन लेगा? यह सीट मुलायम परिवार की परंपरागत सीट रही है। मैनपुरी विधानसभा सीट को लेकर मुलायम के निधन से पहले ही माहौल गरमाया हुआ है। उनकी सेहत खराब होने के बाद ही शिवपाल यादव ने इस पर अपना हक जमा दिया था। लेकिन, समाजवादी पार्टी की ओर से उन्हें यह सीट दी जाएगी या फिर एक वे अलग-थलग रखे जाएंगे, इसका फैसला अखिलेश यादव को करना है। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव इस समय पितृशोक से गुजर रहे हैं। राजनीतिक बयानबाजी से दूर हैं, लेकिन शिवपाल यादव ने शुद्धिकरण संस्कार के बाद अपने मंसूबे साफ कर दिए हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या अखिलेश यादव मैनपुरी से शिवपाल यादव को चुनावी मैदान में उतारने की घोषणा कर सकते हैं। अगर उन्हें नहीं उतारते हैं तो उनके विद्रोह को वे झेल पाएंगे?

अखिलेश यादव किसी भी स्थिति में मैनपुरी में त्रिकोणीय मुकाबले को टालने का प्रयास करेंगे। आजमगढ़ लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले ने समाजवादी पार्टी का क्या नुकसान कर दिया, सामने है। लोकसभा चुनाव 2019 में इटावा से समाजवादी पार्टी ने अक्षय यादव को चुनावी मैदान में उतारा था। इस सीट पर शिवपाल यादव भी उतर गए। 84 हजार वोट लाकर प्रो. रामगोपाल यादव के बेटे के लोकसभा पहुंचने की उम्मीदों को धूमिल कर दिया। अगर अखिलेश यादव मैनपुरी की सीट से किसी अन्य उम्मीदवार को उतारते हैं तो उनके सामने में शिवपाल यादव की चुनौती खड़ी हो सकती है। मुलायम के निधन के बाद जिस प्रकार से शिवपाल ने अपने रुख में नरमी लाई है। उससे गेंद अखिलेश के पाले में चली गई है।

शिवपाल ने साफ कहा है कि परिवार में हमें जो जिम्मेदारी मिलेगी, उसे निभाएंगे। अगर न मिली तो भी निभाएंगे। ऐसे में अखिलेश यादव अगर उनको ठुकराते हैं तो फिर राजनीतिक मैदान में शिवपाल इसका फायदा उठाएंगे। वे सीधा कहना शुरू करेंगे कि हम तो साथ हैं, लेकिन अखिलेश को हमारा साथ नहीं चाहिए।

शिवपाल के सक्रिय होने से बढ़ेगी अखिलेश की टेंशन
शिवपाल यादव को लेकर अखिलेश यादव की दुविधा का कारण उनका कद है। मुलायम सिंह यादव के बाद समाजवादी पार्टी में शिवपाल लंबे समय तक नंबर दो की भूमिका में रहे हैं। मुलायम सिंह यादव के करीबियों के बीच अभी भी शिवपाल की अच्छी पैठ है। मुलायम सिंह यादव के जिंदा रहते ये सभी नेता मुलायम के पाले में ही दिखते रहे। अखिलेश यादव इन लोगों को पूरी तरह से अपने प्रति निष्ठावान बनाने में अब तक कामयाब नहीं हो पाए हैं। यूपी चुनाव 2022 के दौरान भी मुलायम के प्रति वफादारों को उन्हें टिकट देना पड़ा। इनके बीच शिवपाल यादव, अखिलेश से अधिक पॉपुलर हैं। अगर शिवपाल एक बार फिर समाजवादी पार्टी में सक्रिय होते हैं तो टेंशन अखिलेश की बढ़ेगी।

अखिलेश यादव किसी भी स्थिति में पार्टी में दो पावर सेंटर नहीं बनने देना चाहते हैं। इसलिए, उनके सामने आगे चुनौती बढ़ने वाली है। शिवपाल यादव को साधने के साथ-साथ पार्टी को एक धड़े में लाने के लिए उन्हें प्रयास करना होगा। ऐसे में हो सकता है कि आने वाले समय में लोकसभा उप चुनाव की न सोचकर भविष्य की रणनीति पर बड़ा फैसला ले सकते हैं। मैनपुरी में तमाम चर्चाओं के बीच यह भी बात कही जा रही है कि मुलायम के असली वारिश तो अखिलेश यादव ही हैं।