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Editorial:बिहार में कमल खिलाने भाजपा की रणनीति देखें

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26-9-2022

राजनीति का खेल बहुत निराला है और उसमें भी अगर बात बिहार की राजनीति की करें तो कहानी जटिल जान पड़ती है। यहां विचारों की लड़ाई अधिक होती है, जो किसी भी दल के नहीं मिलते। बावजूद इसके यहां सियासी गणित अपने अनुकूल बनाते हुआ राजनेता मत भिन्न होते हुए भी साथ आते हैं और सत्ता का स्वाद चखते हैं। यह भी दिलचस्प बात है कि यहां सरकार पांच साल न चलने का भयंकर रिकॉर्ड है। जहां पहले सरकार बन जाती है पर साथ ही जब विचार मेल नहीं खाते जो वास्तव में सरकार बनाते समय भी नहीं मिलते थे। फिर सरकार टूटती है और बिहार फिर से नया गठबंधन देखता है।

राजद और जदयू बिहार की राजनीतिक गतिशीलता में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले दलों में से एक हैं, जो नेतृत्व संकट और दिशाहीन राजनीति के कारण शीघ्र ही अपने पतन की पटकथा लिखेंगे। इस बीच भाजपा के पास यह अवसर है कि वो अब तक जिस मामले में कमज़ोर रही उस नेतृत्व को खोजे और स्वयं का एक नेता बिहार की राजनीति को दें।दरअसल, बिहार ने एक बार फिर से नीतीश कुमार को अपनी पुरानी आदत दोहराते हुए देख लिया है। बीते माह उन्होंने एनडीए गठबंधन छोड़ आरजेडी की ओर रुख किया। इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह ने पहली बार बिहार के पूर्णिया में एक रैली को संबोधित करते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के एकल चुनाव अभियान को प्रभावी ढंग से शुरू किया। उन्होंने जनता के जनादेश के साथ विश्वासघात करने के लिए जनता दल (यूनाइटेड) के नेता नीतीश कुमार को जमकर लताड़ लगाई। उन्होंने आक्रामक होते हुए कहा कि नीतीश कुमार ने अपनी प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षा के लिए अपने सदाबहार प्रतिद्वंद्वी राजद के साथ गठबंधन किया। ‘जन भावना महासभा में उन्होंने स्पष्ट रूप से भाजपा के उदार भाव पर प्रकाश डाला और नीतीश के वादाखिलाफी पर उन्हें जमकर फटकार लगाई।

अब बात नीतीश कुमार की करें तो उन्होंने हर पल गठबंधन साथी बदलकर अपनी छवि की मिट्टी पलित कर ली है। जनता और मतदाताओं के बीच जितना भी विश्वास हासिल किया, वह खो दिया है। अपनी पार्टी की हालत तो पहले ही विधानसभा चुनाव में बारह आने की कर ली है। जैसा कि पिछले विधानसभा चुनाव में देखने मिला ही उनकी पार्टी बिहार में केवल 43 सीटों पर सिमटकर रह गई है। पीएम बनने निकले नीतीश बाबू एकमात्र राज्य से भी अपना जनाधार खोते जा रहे हैं। अभी भले ही नीतीश और तेजस्वी में सब ठीक लग रहा है पर जल्द ही दोनों दलों और उनके नेता-कार्यकर्ताओं के बीच जूतम-पैजार शुरू हो जाएगी। इसके अलावा उन्हें अपने गठबंधन सहयोगी के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोपों के लिए भी परिणाम भुगतना पड़ेंगे। जहां तक राजद और उसके शीर्ष नेतृत्व का सवाल है, उसे अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के ढेरों आरोपों पर सफाई देनी होगी। नहीं तो इन गंभीर मामलों का बोझ तले सरकार भी गिरेगी और फजीहत होगी सो अलग।

वही भाजपा को देखें तो वो बिहार में लगातार मजबूत होती जा रही है। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई थी, वो बात अलग है कि अब 1 विधायक के साथ आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन जनता का निर्णय तो 2020 के चुनावों में ही भाजपा के पक्ष में था यह परिणाम बता चुके हैं। इन परिणामों ने आगामी चुनावों में भाजपा को अकेले जाने का दृढ़ संकल्प दिलाया है। यही परिणाम दोहराए गए तो बिहार में उत्तर प्रदेश पार्ट 2 होने से कोई नहीं रोक सकता, जहां 2017 में महागठबंधन (एसपी-बीएसपी) के खिलाफ 50त्न से अधिक वोट बैंक का लक्ष्य रखा और जीत हासिल हुई। ऐसे में बिहार की राजनीति निकटतम भविष्य में आमूलचूल बदलाव देख सकती है, बस यह तब ही संभव हो पाएगा जब भाजपा नेतृत्व त्रास को ख़त्म कर एक अच्छा चेहरा चुनती है।