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मेरी भांजी तन्वी की कविता (मूल रचना) प्रकाशनार्थ भेज रहा हूँ। तन्वी पीजी की विद्यार्थी है अंग्रेजी की विद्यार्थी है लेकिन हिन्दी में गज़ब की पकड़ है।

समय*

ॠतुपर्ण दवे

कभी चलूं धीरे, कभी चलूं तेज़,जीवन के दौर मे, लगी है रेस।कोई जीता मुझसे, कोई मुझसे हारा,तेरे जीवन का मै ही सहारा ।कौन कहता है, समय कुछ नहीं दिखाता,जो कोई नहीं दिखाता, वो मैं दिखालाता।सही के साथ सही, बुरे के साथ बुरा,ये जीवन का दौर नया।कभी मैं बलवान, कभी मैं कमज़ोर,मैने ही थामी तेरे जीवन की डोर।कभी हसाऊं, कभी मै रुलाऊं,नहीं रहूं एक जैसा, कहता हूं हर बार।बन मेरे जैसा,रुका ना कभी किसी के कहने से, चला न कभी तेज़।मै हूं बलवान, दिखाता हूं सबके भेस,जीवन के दौर मे लगी है रेस।कोई कहे बलवान, कोई बोले नादान,एक पल में बनाऊं पहचान,मैं ही बिगाडूं शान।रखूं तुझे मौज में ज़िंदगी की दौड में,कर खुद को बुलंद इतना, तेरी कश्ती पार कराऊंगा,तेरा सखा कहलाऊंगा।तेरा अपना दिखलाऊंगा, तेरा दुश्मन बतलाऊंगा।जीवन की दौड में तुझे जीना सिखलाऊंगा।क्योंकि जीवन के दौर मे लगी है रेस।